— चंचल —
प्रकृति में नारी ,सौन्दर्य की अद्भुत प्रस्तुति समझ कर परे हो जाना , नारी के आधे अधूरे ब्यक्तित्व का बखान होगा । नारी एक मात्र रचना है जो अपने निर्माता से भी ज्यादा पूर्ण और विकसित है । अदिति पुत्र ब्रह्मा जिस नारी का चरित्र गढ़ते हैं उसी पर आशक्त हो जाते हैं । ‘ ‘ एको अहं बहुस्याम प्रजाएय ‘ यह विस्तृत इच्छा किसी पुरुष की नही है , हो भी नही सकती , यह नारी मन की महानतम प्रस्फुटित करुणा है – ‘एक हूं अनेक हो जाऊं।’
सृष्टि इसी इच्छा का प्रतिफल है । उतपत्ति मूल से चली यात्रा मात्र सुख और तृप्ति रस से ही पालित नही है , यह हर रस के संयोग से गुजरती है, इसका उत्तरार्ध ‘ पीड़ा ‘ तक आता है, पर इस पीड़ा के ही प्रतिफल पर श्रष्टि की परिकल्पना पूर्ण होती है । माँ से पूछिए । उसे याद नही होता इसलिए कि पीड़ा थी नही , बल्कि इसलिए कि उसे जो प्रतिफल मिला है उसमें सब कुछ समाहित होने का गुण है ।
ईश्वर जो आखिरी सत्ता है , वह पित्र वंश का अंश नही है । अगर उसके पित्र वंश की पुष्टि हो जाय तो फिर वह ईश्वर कैसे रह जाएगा ? लेकिन उसके उतपत्ति का स्रोत है ही और वह है माँ । माँ अदिति । अकेले थी , अनेक होने की कामना इसी अदिति ने की है । तीन अंश में विस्तार हुआ । मिथक ने इनका नाम दिया ब्रह्मा , विष्णु , महेश ।
अदिति में तीनों अंश है । मिथक कथा और भी दिलचस्प है । अदिति ने ब्रह्मा से कहा – हमारे साथ संभोग करो , कैसे संभव था ? ब्रह्मा ने मना कर दिया , अदिति ने ब्रह्मा को भष्म कर दिया । फिर विष्णु के साथ यही हुआ । अंत मे शिव आये । ब्रह्मा और विष्णु की गति देख कर खड़े थे । संभोग के लिए तैयार हो गए पर दो शर्त – एक दोनो सहोदरों को पुनर्जीवित कर दो और दूसरा – अपनी साधना और शक्ति हमे दे दो । अदिति दोनो शर्त स्वीकारती है । ब्रह्मा , विष्णु , जीवन पाते हैं और महेश साधना में लीन हो जाते है अदिति छली जाती है अब वह शक्ति भी दे चुकी है । शिव की तंद्रा टूटती है जब कामदेव स्वयं आते हैं बसंत में । पार्वती वही शक्ति है , वही अदिति है ।
अदिति आदि शक्ति है , अदिति आदि दानी है , अदिति करुणा का स्रोत है । यह अदिति किसी बन्धन में नही है , जब तक सृष्टि है यह अपने विस्तार में रहेगी , इसे किसी तिथि में मत बांधो । नारी प्रतिपल की सुगंध है ।