— डॉ सुनीलम —
नर्मदा बचाओ आंदोलन के, नर्मदा घाटी में काम करते हुए, 17 अगस्त को 36 वर्ष पूरे हो गये। इस अवसर पर बड़वानी (मप्र) में ‘नर्मदा किसान- मजदूर जन संसद’ का आयोजन किया गया। किसान मजदूर जन संसद को किसान नेता हनान मौला, राकेश टिकैत, योगेंद्र यादव, गुरजीत कौर तथा पूनम पंडित ने भारी बारिश के बीच उत्साहपूर्ण वातावरण में, बड़वानी शहर में रैली निकालने के बाद, संबोधित किया।
सभी वक्ताओं ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा का नेतृत्व नर्मदा घाटी के लोगों को विशेषकर नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं को बधाई देने आया है, जिनकी प्रेरणा ने संयुक्त किसान मोर्चा के आंदोलन को सतत ऊर्जा प्राप्त होती रहती है। किसान नेताओं ने यह तक कहा कि केंद्र सरकार नर्मदा बचाओ आंदोलन के अनुभव से यह समझ ले कि किसान 36 वर्षों तक अपने संघर्ष के लिए संकल्पित हैं।
नर्मदा बचाओ आंदोलन 1985 में नर्मदा घाटी में शुरू हुआ था। 1969 से 1979 तक नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान के नुमाइंदों की सुनवाई हुई थी। महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में 10 सालों तक सरदार सरोवर बांध का विरोध चला, आखिर में मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री बनने पर फैसला गुजरात के पक्ष में आया और 138.68 मीटर का बाँध स्वीकृत हुआ। नर्मदा बचाओ आंदोलन के चलते विश्व बैंक ने 1993 में सरदार सरोवर की आर्थिक सहायता रोक दी।
सरदार सरोवर से 40 हजार हेक्टेयर क्षेत्र डूबनेवाला था जिसमें एक शहर और 244 गांव शामिल थे। 13,385 हेक्टेयर का जंगल भी डूब क्षेत्र में शामिल था, जिसके खिलाफ मुंबई में 1993 में मेधा पाटकर और उनके कुछ साथियों ने 18 दिन का उपवास किया। तब केंद्र सरकार ने पाँच विशेषज्ञों की कमेटी बनायी। 1994 से 2019 तक सर्वोच्च न्यायालय में विस्थापन, पुनर्वास, पर्यावरणीय क्षति, आर्थिक मूल्यांकन में धांधली, बांध से होनेवाले लाभ और हानि के मुद्दों पर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने जनहित याचिका प्रस्तुत की। सन 2000, 2005 और 2017 में न्यायालय द्वारा तमाम निर्देश दिये गये। 8 फरवरी 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने मध्यप्रदेश सरकार को तीन महीने में कार्य पूरा करने तथा 31 जुलाई 2017 को बलपूर्वक हटाने का निर्देश दिया। साथ ही जिन्हें जमीन या नगद राशि नहीं मिली थी उन्हें साठ लाख रुपये देने का निर्देश भी हुआ।
27 जुलाई 2017 को मेधा पाटकर ने 12 विस्थापितों के साथ 17 दिन का उपवास किया। पुलिस द्वारा आंदोलनकारियों पर हमला कर मेधा पाटकर को गिरफ्तार कर धार जेल में रखा गया। 31 जुलाई 2018 को नर्मदा बचाओ आंदोलन ने विशाल रैली करके न हटने का संकल्प लिया।
आंदोलन की उपलब्धियां कम नहीं हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन के चलते 50 हजार से अधिक विस्थापितों को मकान के लिए भूखंड मिले, 20 हजार से अधिक परिवारों को 2 हेक्टेयर जमीन मिली। गुजरात में 300, मध्यप्रदेश में 83 और महाराष्ट्र में 14 पुनर्वास स्थल स्थापित हुए। आंदोलन के चलते किसानों के साथ-साथ भूमिहीनों तथा किसानों के वयस्क पुत्र-पुत्रियों को भी जमीन मिली, 35 सहकारी सोसायटियों को लंबे संघर्ष के बाद मछली पकड़ने का अधिकार मिला।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की शिकायत पर उच्च न्यायालय ने जांच आयोग गठित किया। सात साल तक जांच चली जिसमें 1600 फर्जी रजिस्ट्रियां पायी गयीं। हालांकि सरकार के संरक्षण के चलते भ्रष्टाचारी आज भी छुट्टा घूम रहे हैं।
जब मोदी सरकार ने 138.68 मीटर तक पानी भरने का निर्णय लिया तब सर्वोच्च न्यायालय ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की याचिका पर चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों को बैठक कर इस संबंध में निर्णय लेने का निर्देश 24 अक्टूबर 2019 को दिया। 18 नवंबर 2020 को ऑनलाइन मीटिंग हुई जिसमें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने पुनर्वास अधूरा होने के कारण पानी ना भरने, मध्यप्रदेश सरकार ने सात हजार करोड़ रु. खर्च की वापसी तथा बचे हुए कार्य के लिए ग्यारह सौ करोड़ की मांग गुजरात सरकार के सामने रखी परंतु पुनर्वास के मामले में चुप्पी साध ली।
यह गौरतलब है कि जब सरदार सरोवर बांध बनाने की 1984 में मांग उठी थी तब उसकी लागत 4,200 करोड़ रुपए थी, जो बढ़कर अब 60 हजार करोड़ तक पहुंच गयी है। बांध बनाते समय यह दावा किया था कि 18 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई का लाभ मिलेगा लेकिन एक तिहाई क्षेत्र में ही सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध कराया जा सका। कच्छ और सौराष्ट्र को लाभ नहीं मिला, गुजरात में छोटे गांवों और कस्बों को पानी देने की बजाय 3 बड़े शहरों को पानी दे दिया गया। नर्मदा नदी पर बाँध दिये जाने के चलते 2013 से 2020 तक अरब सागर का खारा पानी 80 किलोमीटर तक अंदर आ गया है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन अवैध रेत उत्खनन के खिलाफ भी संघर्ष करता रहा है। सर्वोच्च न्यायालय, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय, हरित न्यायाधिकरण से, इनमें याचिकाएं लगाकर, नर्मदा बचाओ आंदोलन ने अनेक आदेश प्राप्त किए हैं। लेकिन इन आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन ने 1894 में अंग्रेजों द्वारा बनाये गये भूमि अधिग्रहण कानून में तब्दीली कराने में सफलता हासिल की है। देश में आज भूमि अधिग्रहण का जो कानून लागू है उस कानून को बनवाने में नर्मदा बचाओ आंदोलन की अहम भूमिका रही है। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने संघर्ष के साथ-साथ निर्माण का कार्य भी किया है।
नर्मदा नव निर्माण के तहत महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में आदिवासी बच्चों के लिए 1991 में जीवन शालाएं शुरू की गयीं, जिनमें पढ़कर अब तक 5,000 बच्चे निकल चुके हैं। महाराष्ट्र में 7 और मध्यप्रदेश में 2 जीवनशालाएं चलती हैं, जिनमें 1000 आदिवासी बच्चे पढ़ते हैं।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को संघर्ष और निर्माण के प्रतीक के तौर पर देश और दुनिया में देखा जाता है। वे समाजवादी परिवार से आती हैं। उनके पिता हिंद मजदूर सभा के श्रमिक नेता थे तथा माँ ने मुंबई में सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किये हैं। मेधा पाटकर ने ‘घर बचाओ, घर बनाओ’ आंदोलन के माध्यम से मुंबई की झोंपड़पट्टी में रहनेवाले हजारों गरीबों को आवास दिलाये हैं। वे पिछले साढ़े चार साल से मध्यप्रदेश के खरगोन जिले में सेंचुरी (यार्न और डेनिम) टेक्सटाइल्स मिल के एक हजार से अधिक श्रमिकों के रोजगार को बचाने के आंदोलन में सतत रूप से सक्रिय हैं।
मैंने मेधा पाटकर जी के साथ देशभर में कई यात्राएं की हैं जिसके आधार पर यह कह सकता हूं कि मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में उनकी जो लोकप्रियता है, उससे कम लोकप्रिय वे केरल व तमिलनाडु में नहीं हैं। उन्हें देश और दुनिया के अनेक बड़े पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने देश के जन आंदोलनों का समन्वय बनाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम.) का कार्य करते हुए मेधा जी को तीस वर्ष हो चुके हैं। साढ़े तीन सौ से अधिक जन आंदोलन इस समन्वय के साथ जुड़े हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भूमि अधिकार आंदोलन, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति तथा संयुक्त किसान मोर्चे के गठन में अहम भूमिका का निर्वाह किया है। संयुक्त किसान मोर्चा का नेतृत्व मेधा दीदी के अनुभव और समझ का उपयोग करते हुए आगे बढ़ रहा है।
दुनिया के इतिहास में जमीनी स्तर पर विस्थापन और पुनर्वास के मुद्दे पर इतना लंबा, प्रभावशाली और अहिंसक कोई दूसरा आंदोलन नहीं चला है। इस आंदोलन ने देश और दुनिया में वैकल्पिक विकास के मॉडल की ओर ध्यान आकृष्ट किया है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन की बड़ी सफलता यह है कि उसे सरकारों का गोलीचालन नहीं झेलना पड़ा। मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार का मुलताई गोलीकांड और भाजपा सरकार का मंदसौर गोलीकांड बहुचर्चित रहे हैं। मध्यप्रदेश गठन के बाद इस राज्य में सैकड़ों गोलीचालन हुए हैं लेकिन नर्मदा बचाओ आंदोलन पर फायरिंग की हिम्मत किसी सरकार की नहीं हुई। नर्मदा बचाओ आंदोलन के 36 वर्ष पूरे होने पर मैं आंदोलन में शामिल सभी कार्यकर्ताओं और नेतृत्वकर्ताओं का हार्दिक अभिनंदन करता हूं।