क्या किसान आंदोलन केंद्र से भाजपा की विदाई का सबब बनेगा?

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— डॉ सुनीलम —

(19 विपक्षी दलों ने आगामी 20 सितंबर से 30 सितंबर के बीच किसान आंदोलन के समर्थन में विरोध प्रदर्शन का एलान किया है तथा कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने सभी विपक्षी दलों से 2024 का चुनाव मिलकर लड़ने की अपील की है। संसद सत्र के दौरान भी संपूर्ण विपक्ष किसान आंदोलन के समर्थन में खड़ा दिखाई पड़ा। क्या इस एकता से 2022 में उत्तर प्रदेश तथा 2024 में केंद्र सरकार बदली जा सकेगीइसी का जवाब तलाशता यह लेख।)

संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा नौ महीने से चलाये जा रहे किसान आंदोलन को दुनिया का सबसे लंबा और प्रभावशाली आंदोलन बताया जा रहा है। विश्वप्रसिद्ध चिंतक नोम चोम्स्की ने इसे दुनिया का एक मॉडल आंदोलन बताया है, जिससे दुनिया के तमाम आंदोलनों को सीख लेनी चाहिए।

यह सच है कि संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चल रहा किसान आंदोलन आजादी मिलने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर चलनेवाला सबसे बड़ा आंदोलन है। कई बार इस आंदोलन की तुलना जेपी आंदोलन और अन्ना आंदोलन से की जाती है। हालांकि किन्हीं दो आंदोलनों की तुलना नहीं की जानी चाहिए। परन्तु बुद्धिजीवी ही नहीं, आम  आदमी भी तुलना करता है।

दोनों आंदोलनों और किसान आंदोलन में सबसे बड़ा अंतर यह है कि दोनों ही आंदोलनों में व्यक्तित्व हावी था। बिहार आंदोलन के केंद्र में जेपी थे तो इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आंदोलन में अन्ना हजारे। जबकि किसान आंदोलन का कोई एक नेता नहीं है। सामूहिक नेतृत्व में आंदोलन नौ महीनों से चलाया जा रहा है।

दोनों ही आंदोलनों (जेपी आंदोलन और अन्ना आंदोलन) के दौरान लाखों आंदोलनकारी 9 महीनों तक देश की राजधानी दिल्ली को घेरे नहीं बैठे थे, ना ही आंदोलन के दौरान 600 से अधिक शहादतें हुई थीं। दोनों ही आंदोलनों में किसी भी राज्य में ऐसी स्थिति नहीं बनी थी कि पक्ष-विपक्ष दोनों आंदोलन के समर्थन में खड़े होने की होड़ करते दिखे हों, जैसा कि पंजाब में किसान आंदोलन को लेकर दिख रहा है।

दोनों ही आंदोलनों में यह नहीं हुआ था कि विभिन्न विचारधारा वाले और मजबूत आधार वाले साढ़े पाँच सौ वाले संगठन एकजुट हुए हों और सामूहिक रूप से डटे रहे हों।

अन्ना आंदोलन के दौरान तो सरकार द्वारा कोई बड़ी दमनात्मक कार्रवाई भी नहीं की गयी थी। जेपी आंदोलन के दौरान विपक्ष के लाखों नेताओं-कार्यकर्ताओं को 19 महीने जेल में डाल दिया गया था।

संयुक्त किसान मोर्चा के नेतृत्व में चल रहे किसान आंदोलन पर पंजाब में, जहां आंदोलन का सबसे अधिक जोर है, आज तक कोई बड़ी दमनात्मक कार्रवाई नहीं हुई है। हरियाणा की भाजपा सरकार ने जरूर तमाम जिलों में दमनात्मक कार्रवाई की है, 50 हजार किसानों पर फर्जी मुकदमे दर्ज किये हैं लेकिन दिल्ली में बॉर्डरों पर जहां किसानों का अनिश्चितकालीन धरना चल रहा है वहां कोई बड़ी दमनात्मक कार्रवाई करने की हिम्मत सरकार की नहीं पड़ी है। इसी तरह से उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान में कोई बड़ी दमनात्मक कार्रवाई नहीं देखी गयी है।

जेपी आंदोलन और अन्ना आंदोलन का विपक्ष समर्थन कर रहा था लेकिन कुछ अपवादों को छोड़कर सभी वामपंथी पार्टियां दोनों आंदोलनों के साथ खड़ी नहीं थीं, जो आज संयुक्त किसान मोर्चा के साथ पूरी शिद्दत से खड़ी दिखाई दे रही हैं।

संयुक्त किसान मोर्चा बार-बार जनता के बीच अपनी ताकत दिखाता रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने बार-बार दिल्ली के बॉर्डरों पर तथा विभिन्न राज्यों में किसान महापंचायतें करके अपनी जन-शक्ति का प्रदर्शन किया है।

दोनों ही आंदोलनों की तरह किसान आंदोलन को भी बदनाम करने और बाँटने की कोशिश की गयी, और इसपर विदेशी फंडिंग से संचालित होने तथा विपक्ष के इशारे पर आंदोलन चलाये जाने के आरोप लगाये जाते रहे हैं।

जेपी आंदोलन के बाद देश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी थी, तमाम विपक्षी दल एक हुए थे। जनता पार्टी का गठन हुआ था। अन्ना आंदोलन के बाद भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर केंद्र सरकार बदल गयी। केंद्र से कांग्रेस की विदाई हो गयी। दिल्ली राज्य में भी, अन्ना आंदोलन खत्म होने  के बाद, सत्ता परिवर्तन हो गया, यहां आम आदमी पार्टी की सरकार बनी।

इसलिए अनेक राजनैतिक विश्लेषक अन्ना आंदोलन पर मोदी को देश पर थोपने और कांग्रेस को खत्म करने का आरोप भी लगाते हैं। यह भी कहा जाता है कि यह संघ समर्थित आंदोलन था। लेकिन यह आरोप वर्तमान किसान आंदोलन पर नहीं लगाया जा सकता। हालांकि आरएसएस के किसान संघ द्वारा 8 सितंबर को एमएसपी को लेकर आंदोलन की घोषणा कर किसानों को भ्रमित करने की साजिश रची जा रही है।

जेपी आंदोलन को रेलवे की हड़ताल से बहुत बड़ी ताकत मिली थी। आज फिर देश का मजदूर आंदोलन संयुक्त किसान मोर्चा के साथ खड़ा दिखाई पड़ रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा भी निजीकरण तथा चार लेबर कोड के खिलाफ मजदूर संगठनों के संघर्ष में जमीनी स्तर पर समर्थन में  खड़ा है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने चुनाव में भी अपनी ताकत दिखायी है। बंगाल, तमिलनाडु तथा केरल में विधानसभा चुनाव जीतने के पहले भी देश में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के नेतृत्व में संपूर्ण कर्जा मुक्ति और लाभकारी मूल्य की गारंटी को लेकर जो आंदोलन चल रहा था उसके चलते मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार चली गयी थी।

पंजाब और उत्तर प्रदेश के स्थानीय निकाय के चुनाव में भी भाजपा का सफाया जनता ने करके दिखाया है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने अब उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड मिशन की घोषणा की है। उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय चुनाव में पहले जो नतीजे आए थे उनसे यह साफ हो गया था कि उत्तर प्रदेश बदलाव की दिशा में आगे बढ़ रहा है। हालांकि बाद में धनबल, सरकारी मशीनरी और गुंडई का सहारा लेकर भाजपा ने अधिकतर स्थानीय निकायों पर कब्जा जमा लिया लेकिन यह कहा जा सकता है कि  स्थानीय निकायों के चुनाव ने योगी व मोदी की चूलें हिला दीं।

संयुक्त किसान मोर्चा ने किसान संसद आयोजित करके किसान विरोधी कानूनों के संबंध में अपना पक्ष मजबूती से रखा है। जनता का व्हिप जारी करके संयुक्त किसान मोर्चा ने विपक्ष के सांसदों से जो अपील की थी उसका असर भी संसद की कार्यवाही के दौरान देखने को मिला। संपूर्ण विपक्ष ने किसान संसद की कार्यवाही देखकर किसान संसद की गरिमा को बढ़ाया तथा सदन के अंदर और बाहर किसान आंदोलन की सभी मांगों का समर्थन भी किया है।

सोनिया गांधी ने 20 अगस्त को 19 विपक्षी दलों की बैठक कर संयुक्त किसान मोर्चा के समर्थन में 20 सितंबर से 30 सितंबर के बीच पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। सोनिया गांधी ने 2024 का चुनाव विपक्षी दलों से एकजुट होकर लड़ने की अपील की है। क्या संपूर्ण विपक्ष 2024 का चुनाव एकजुट होकर लड़ पाएगा?

क्या जेपी आंदोलन और अन्ना आंदोलन के बाद जिस तरह से केंद्रीय सरकार बदली थी, वैसा ही क्या 2024 में हो पाएगायह कहना तो जल्दबाजी होगी लेकिन यह कहा जा सकता है  कि उत्तर प्रदेश में यदि विपक्ष ने एकजुट होकर चुनाव लड़ा तो  योगी सरकार से छुटकारा दिला सकेगा तथा मोदी सरकार को हटाने का रास्ता साफ हो जाएगा।

जेपी आंदोलन के बाद देश की जनता ने तानाशाही खत्म कर लोकतंत्र की बहाली के लिए वोट दिया था, उसी तरह अन्ना आंदोलन के बाद भ्रष्टाचार से मुक्ति के लिए आम मतदाताओं ने वोट दिया। क्या देश के मतदाता किसानों और मजदूरों को उनका जायज हक दिलाने तथा कॉरपोरेट राज से मुक्ति के लिए वोट देंगे? यह यक्ष प्रश्न है। इसका जवाब आज देना जल्दबाजी होगी  परन्तु बंगाल के अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि यह संभव है।

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