26 अगस्त। उत्तर प्रदेश के औद्योगिक केंद्र कानपुर में एक ऑटो-रिक्शा चालक असरार अहमद को कुछ लोगों ने अनायास घर से निकालकर बुरी तरह से पीटा और जबरदस्ती ‘जय श्रीराम’ कहने के लिए मजबूर किया। उनके घर के बाहर बारावफात के लिए लगाये गये एक हरे झंडे को जलाया। असरार अहमद की पांच बरस की बच्ची द्वारा पिता को छोड़ देने की गुहार करने पर हिंसक गिरोह ने उसे भी मारा। इस घटना से आतंकित पड़ोसियों के सूचना देने पर पुलिस पहुंची और उपद्रवियों को गिरफ्तार किया। इसपर बजरंग दल के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने थाने पर एकत्रित होकर गिरफ्तारी के खिलाफ नारेबाजी की और धरना दिया। कानपुर के नागरिक मंच ने इसके बारे में एक जांच रपट जारी करते हुए मांग की है कि 1. इस शर्मनाक घटना की न्यायिक जांच की जाए; 2. बजरंग दल पर प्रतिबन्ध लगाया जाए; तथा 3. श्री असरार अहमद की क्षतिपूर्ति की जाए और पुलिस सुरक्षा दी जाए।
इस बारे में प्रदेश सहित पूरे देश में सवाल उठाये जा रहे हैं कि क्या हमारे देश और प्रशासन ने धर्म की आड़ लेकर भारत की एकता को तोड़नेवाली जमातों के आगे घुटने टेक दिये हैं? क्या हम नागरिक, सामाजिक शांति को भंग करने में जुटे साम्प्रदायिक गिरोहों के बारे में चुप रहने की नीति अपना रहे हैं? न्याय-व्यवस्था के लिए सत्ता में बिठाये गये दलों द्वारा निर्दोष नागरिकों को सतानेवाले संगठनों को संरक्षण देना राष्ट्रद्रोह नहीं तो क्या है? क्या सर्वधर्म सद्भाव भारतीय राष्ट्रीयता, संस्कृति और समाज की आधारशिला नहीं रह गयी है?
इन्हीं सवालों के बारे में सोसायटी फॉर कम्यूनल हार्मोनी (साम्प्रदायिक एकता समाज) के 22 अगस्त को आयोजित आभासीय परिसंवाद (वेबिनार) में बोलते हुए वयोवृद्ध समाज-सुधारक श्री सुब्बाराव (बेंगलुरु) ने देश के कई हिस्सों में व्यक्तिगत विवादों को हिन्दू-मुसलिम टकराव में बदलने की प्रवृत्ति को आजादी के 75 साल बाद की सबसे खतरनाक बीमारी बताया। कांग्रेस सेवा दल से लेकर सर्वोदय और राष्ट्रीय युवा कार्यक्रम में छह दशकों से जुटे सुब्बाराव ने कहा कि अबतक लाखों युवाओं को राष्ट्रनिर्माण और सर्वधर्म समभाव के लिए प्रशिक्षित करने में सफलता के बावजूद जगह-जगह असामाजिक तत्त्वों का निडर होकर हिंसा फैलाना एक नयी पहेली है।
योजना आयोग और अल्पसंख्यक आयोग की पूर्व सदस्य सैयदा हामिद (दिल्ली) ने याद दिलाया कि भारत जैसे बहुधर्मी राष्ट्र के लिए सामाजिक शांति प्रगति की पहली शर्त है। इसके लिए शान्ति और सहयोग में भरोसा रखनेवाले व्यक्तियों के बीच परस्पर सहयोग और सरोकार बनाये रखना ही टिकाऊ समाधान है। क्योंकि ऐसी भयानक घटनाओं के बाद पुलिस की मदद से स्थिति को काबू में लाना एक कामचलाऊ तरीका हो चुका है।
किसान नेता अखिलेन्द्र प्रताप (इलाहाबाद) ने हिन्दू-मुस्लिम के बीच के बढ़ते अविश्वास और तनाव को समाज की बजाय राजनीति से जोड़ते हुए देखने पर जोर दिया और कहा कि धर्म और जातिगत विवाद गरीबों के सामुदायिक जीवन के मुख्य अंतर्विरोध हैं। इसलिए हर नागरिक के लोकतांत्रिक अधिकारों की बिना किसी भेदभाव के सुरक्षा ही आज की जरूरत है।
मैग्सेसे पुरस्कार से विभूषित डॉ. संदीप पांडे (सोशलिस्ट पार्टी) ने कानपुर कांड को उत्तर प्रदेश के शासन में बढ़ रहे साम्प्रदायिक जहर का परिणाम माना और‘हिन्दू रक्षकों’ की बढ़ती मनमानी को काबू में लाने के लिए समता और भाईचारे की राह दिखानेवाले कबीर, रैदास, मीरा, रहीम जैसे संतों की सिखावन के सदुपयोग का आह्वान किया।
महिला शक्ति संवर्धन से जुटी अरुंधति धुरु (लखनऊ) ने ‘गांधी-आंबेडकर के रास्ते, देश-संविधान के वास्ते!’ से युवाशक्ति को जोड़ने में ही बेहतर भविष्य की सम्भावना बतायी। उन्होंने ‘धर्म परिवर्तन’ के प्रति जनसाधारण की संवेदनशीलता के बढ़ते दोहन को नयी राजनीति की मुख्य प्रवृत्ति बताया।
नेशनल यूथ प्रोजेक्ट और मैत्री अभियान से जुड़े संजय राय ने देश की नयी पीढ़ी में और जनसाधारण में राष्ट्रीय आन्दोलन से पैदा ‘साझी शहादत-साझी विरासत’ की परम्परा के प्रति सम्मान के सच की याद दिलाते हुए सोशल मीडिया से लेकर प्रभातफेरी जैसे सामाजिक जागरण उपायों का सदुपयोग जरूरी बताया।
इस संवाद में कानपुर के कृष्णमुरारी यादव (सोशलिस्ट पार्टी), कुलदीप सक्सेना (सम्पादक, विवेकशक्ति) औरछोटूभाई नोरोन्हा ने स्थानीय परिस्थिति का विस्तार से परिचय देकर इसे महत्वपूर्ण बनाने में योगदान किया।