
यास्लो के निकट अकाल शिविर
यह लिख लो, मामूली कागज़ पर
मामूली स्याही से लिख लो- उन्हें खाना नहीं दिया गया
वे सब भूख से मर गये– हाँ! सबके सब मर गये। मगर वे कितने थे?
यह एक बड़ा घास का मैदान है- हर आदमी के हिस्से में कितनी घास आएगी?
लिख लो : मैं नहीं जानता
इतिहास में कंकालों की गिनती शून्य को पूर्णांक मानकर की जाती है।
वहां एक हजार एक को केवल एक हजार माना जाता है
वह एक आदमी वहां ऐसे होता है गोया वह कभी था ही नहीं
क्या पेट में वह बच्चा फर्ज़ी था?
उस पालने में क्या कोई नहीं था?
क्या किसी के लिए प्रवेशिका की किताब के सफ़े नहीं खोले गये थे?
क्या हवा में कोई किलकारी नहीं गूँजी थी और न ही कोई रोया था?
क्या कोई बड़ा नहीं हुआ था?
बगीचे में खुलनेवाली सुनसान सीढ़ियों के
किसी पायदान पर क्या किसी ने उसे नहीं देखा था?
इसी घास के मैदान पर
वह हाड़मांस का आदमी बना
लेकिन घास का मैदान
उस गवाह की तरह ख़ामोश है जिसे खरीदा जा चुका हो
धूप है, हरियाली है
लकड़ियाँ चबाने के लिए
पास में जंगल है
पीने के लिए
दरख्तों की छाल से रिसती बूँदें हैं
यह नज़ारा दिन-रात चलता रहता है
जब तक कि तुम अंधे न हो जाओ
ऊपर उड़ते एक परिंदे के मज़बूत पंखों की छाया
उनके होंठों पर फड़फड़ा रही है
जबड़े नीचे लटक गये हैं
दांत खटखट कर रहे हैं
रात में एक हंसिया आसमान में चमक रहा था
रोटी का सपना देखनेवालों के लिए
अँधेरे की फसल काट रहा था
काले बुतों जैसे आदमियों के हाथ लहरा रहे थे
हर हाथ में एक खाली कटोरा था
कँटीले तारों के जंगले पर
एक आदमी झूल रहा था
धूल भरे मुंह से कुछ लोगों ने गाना गाया
ज़ंग के खिलाफ़ वही प्यारा सा गाना
जो सीधे दिल पर लगता है
लिखो! इसमें कितनी शांति है
हाँ ! शांति !

गुब्बारे के साथ जिन्दगी
क्या तुम स्मृतियों में लौटना चाहती हो
नहीं, मैं इसके बदले
खोयी हुई चीज़ों को पाना चाहूंगी
दस्ताने
कोट सूटकेस, छातों की बाढ़ आएगी
और आख़िर में, मैं कहूंगी
ये सब सामान किस काम के हैं?
सेफ्टी पिन, अलग-अलग ढब के दो कंघे
एक पेपर रोज़, एक चाक़ू
कुछ छल्ले आएंगे और
आख़िर में, मैं कहूंगी
तुम्हारी कमी मुझे जरा भी नहीं खली
कुंजी
कृपया घूमिए, बाहर आइए
अब तक तुम कहाँ छिपी हुई थी
अब मेरे कहने का समय है
तुममें जंग लग चुकी है, मेरे दोस्त
हलफनामों
परमिटों और प्रश्नावलियों की
मूसलाधार बारिश होगी
और मैं कहूंगी
मैं तुम्हारे पीछे खिलता सूरज देख रही हूँ
मेरी घड़ी नदी में गिर गयी
ऊपर उतराते ही मैं उसे पकड़ लूंगी
और फिर उससे रूबरू कहूंगी
तुम्हारा तथाकथित समय खत्म हो चुका है
आख़िर में
एक गुब्बारा घर आएगा
जो हवा में पहले उड़ गया था
और मैं कहूंगी
यहाँ कोई बच्चा नहीं है
खुली खिड़की से
तुम बाहर उड़कर एक बहुत बड़ी दुनिया में चली जाओ
तुम्हें देखकर कोई और चीखे : वो देखो !
और मैं तब रोऊंगा
अनुवाद : विनोद दास
(पोलैंड की विश्वविख्यात कवयित्री विस्वावा शिम्बोर्स्का को 1996 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार दिया गया था। )
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आभार आपका
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