आर्यन के बहाने

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— कुमार कुलानंद मणि —

किंग ऑफ बालीवुड शाहरुख ख़ान पुत्र आर्यन ख़ान पिछले कुछ दिनों से भारत के मुख्य समाचार बने हुए हैं। उनके बारे में तथा उनकी गिरफ्तारी के बारे में, जमानत के बारे में बहुत कुछ कहा जा रहा है। साथ ही बालीवुड तथा मायानगरी मुंबई शहर के बारे में भी। हम सब विस्मृति के बादशाह हैं। आज जैसे रिया चक्रवर्ती के साथ घटित घटना भूल गये वैसे ही कल आर्यन के वर्तमान को भुलाकर हम आगे बढ़ जाएंगे। जैसे कुछ हुआ ही नहीं था।

लेकिन अख़लाक़ से आर्यन तक का घटनाक्रम देश को अशांति, असुरक्षा, भय, आंतरिक विभाजन के दावानल की ओर ले जा रहा है। मेरा न तो अख़लाक़ से रिश्ता था और न आर्यन या उसके बाप से। मैं सालों पूर्व फिल्मों का दिवाना था, जो काम के जुनून में छूट गया। इन अत्यंत व्यथित करनेवाले घटनाक्रमों पर सोचता हूं तो बरबस पारंपरिक ईरान, आधुनिक ईरान और फिर इस्लामिक रिपब्लिक ईरान सामने दीखता है। अफगानिस्तान तथा सीरिया भी दीखता है। समस्त अफ्रीकन तथा कई लैटिन अमेरिकन मुल्क भी दीखते हैं। एकाध अपवाद छोड़कर इन तमाम मुल्कों में से भारत का भी सूत्र जुड़ता दीखता है। यहां भी कृषि आधारित समाज था। यहां भी आजादी का आंदोलन चला। यहां भी स्वदेशी राज आया। यहां भी विकास तथा आधुनिकता आयी। यहां भी विकास के घोड़े पर बैठकर विश्व बैंक, आईएमएफ आदि फैला। यहाँ भी धार्मिक चेतना धर्मान्धता बनी। यहाँ भी धर्मान्ध सत्ता कायम होती चली गयी। पूँजीवाद ने धर्मान्धता से शादी रचायी। यदि शादी न टिकी, न बनी तो पूंजीवाद ने मीडिया के माध्यम से सैन्य आक्रमण का बहाना शिक्षितों में सत्य बनाया। सब कुछ एक दिन में नहीं हुआ, लेकिन नियोजित रूप से होता रहा और शांत, सभ्य, न्यायोचित समाज का सपना बिखरता रहा। इन मुल्कों के अपने ही पूँजीवादी अपने ही मुल्क को खरोंच-खरोंच कर  अमरीका, यूरोप के बैंकों, आर्थिक व्यवस्थापनों में पैसा भरते रहे और गले के पास फाँसी का फंदा करीब आते देख देश का त्याग किया और छोड़ गये कंगाल और घोर अशांत मुल्क।

मेरा एक गुजराती मित्र जो तीन दशक से  अधिक समय से अमरीका में है उसने फोन पर व्यथा सुनायी। मैंने अमरीका में जो कमाया, सब भारत में लगाया। भारत की नागरिकता नहीं छोड़ी। लेकिन अब नहीं। भारत से गये मध्यमवर्गीय उन्हीं मुल्कों में भविष्य की इमारत खड़ी कर रहे हैं। खरबपति भी देश खखोर कर बड़े आराम से देश छोड़ रहे हैं। पानामा या पंडोरा सूची बढ़ती जा रही है। यानी देश खखोर कर अपने भविष्य की व्यवस्था कर ली गयी है। इन खखोरने वालों पर सत्ता भी मंत्रमुग्ध है। इसलिए इनके बैग में जनता की कंपनी सौंप दी गयी है। तुम संपत्ति सँभालो और मेरे लिए सत्ता आरक्षित रखो। धर्म है तो भय काहे का।

एक दिन सुबह-सुबह जाना कि हैदराबाद में कथित चार बलात्कारियों को गोली से उड़ा दिया गया और देश के एक समूह ने आकंठ ताली बजाने का काम किया। एक वरिष्ठ आईईएस अधिकारी ने इस इनकाउंटर के पक्ष में फेसबुक पर बड़ा पोस्ट लिख डाला, सैकड़ों ने उनकी वाहवाही की। क्यों चाहिए संविधान, न्यायालय और सभ्य समाज? पकड़ो और भून डालो! बस, इतनी आसानी से न्याय होगा। एनकाउंटर, पानामा तथा पेंडोरा सूची के साथ साथ एक खबर और पढ़ी कि अभिनेता, अभिनेत्रियों के बच्चे भी आर्यन प्रकरण के बाद देश छोड़ सकते हैं। खरबपति गये, कुछ साधु भी गये, पनामा, पेंडोरा की भी व्यवस्था है, अब स्टार किड भी कई दूरदर्शी स्टार तो पहले से ही भारत की नागरिकता छोड़ चुके हैं।

बस देश में बचेंगे गीता, कुरान, बाइबल, आदि ग्रंथ और धम्म, जो अपने वजूद के लिए कोहराम मचाएंगे।

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