29 अप्रैल। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि आँगनवाड़ी केंद्रों में काम करने के लिए नियुक्त आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायक, ग्रेच्युटी भुगतान कानून-1972 के तहत ग्रेच्युटी के हकदार हैं। कोर्ट के इस फैसले के बाद देश भर की आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सेविकाओं में खुशी की लहर है। स्कीम वर्कर्स यूनियन ने भी इस आदेश का स्वागत किया है।
न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका की पीठ ने कहा कि आँगनवाड़ी केंद्र भी वैधानिक कर्तव्यों का पालन करते हैं, तथा वे सरकार की विस्तारित इकाई बन गए हैं। पीठ ने कहा कि, 1972 (ग्रेच्युटी का भुगतान) कानून आँगनवाड़ी केंद्रों और आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायकों पर लागू होगा।
पीठ ने कहा कि इन अपीलों में शामिल विषय यह हैं, कि क्या एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के तहत स्थापित आँगनवाड़ी केंद्रों में काम करने के लिए नियुक्त आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और सहायक ग्रेच्युटी भुगतान कानून-1972 के तहत ग्रेच्युटी के हकदार हैं।
पीठ ने कहा कि गुजरात उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने इस निष्कर्ष की पुष्टि की लेकिन उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने जिला विकास अधिकारी द्वारा दायर अपीलों पर एकल पीठ के फैसले को खारिज करते हुए निर्णय दिया गया, कि आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को 1972 के कानून की धारा 2(ई) के अनुसार कर्मचारी नहीं कहा जा सकता तथा आईसीडीएस परियोजना को उद्योग नहीं कहा जा सकता है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा, कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून-2013 के प्रावधानों और शिक्षा का अधिकार कानून की धारा 11 के कारण आँगनवाड़ी केंद्र भी वैधानिक कर्तव्यों का पालन करते हैं।
न्यायमूर्ति ओका ने एक अलग फैसले में कहा कि इस प्रकार आँगनवाड़ी केंद्र राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून और गुजरात सरकार द्वारा बनाए गए नियमों के मद्देनजर सरकार की एक विस्तारित शाखा बन गए हैं। उन्होंने कहा, कि संविधान के अनुच्छेद 47 के तहत परिभाषित राज्य के दायित्वों को प्रभावी बनाने के लिए आँगनवाड़ी केंद्रों की स्थापना की गयी है, और ऐसे में कहा जा सकता है, कि आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और आँगनवाड़ी सहायक के पद वैधानिक हैं।
गुजरात स्टेट आँगनवाड़ी वर्कर्स ऐंड हेल्पर्स यूनियन के अध्यक्ष अरुण मेहता ने न्यूजक्लिक से बात करते हुए इस फैसले को ऐतिहासिक बताया और इसे आँगनबाड़ी कर्मियों के लिए एक मील का पत्थर बताया।
आप इसे ऐसे समझिए अगर कोई आँगनवाड़ी कर्मी दस साल पहले सेवानिवृत हो गयी थी, उन्हें भी इस निर्णय का लाभ होगा। उन्हें ग्रेच्युटी के तहत दस महीने का वेतन मिलेगा और उस पर 10 फीसदी ब्याज भी मिलेगा।
आँगनवाड़ी कर्मियों की लंबे समय से माँग रही है कि उन्हें दशकों काम करने के बाद दूध से मक्खी की तरह निकालकर फेंक दिया जाता है, न उन्हें कोई पेंशन और न ही ग्रेच्युटी का कोई पैसा दिया जाता है। अभी वर्तमान में अलग-अलग राज्यों में दस हजार से लेकर तीन हजार तक में ये सभी आँगनवाड़ी कर्मी काम कर रही हैं।
अरुण मेहता ने कहा, ये सिर्फ ग्रेच्युटी का मामला नहीं है। इस आदेश ने स्पष्ट कर दिया कि आँगनवाड़ी केंद्र में काम करनेवाली सहायिका और सेविका कार्यकर्ता नहीं बल्कि कर्मचारी हैं, और सरकार इनकी नियोक्ता है। इसके साथ कोर्ट ने यह भी कहा कि इनकी हालत बहुत खराब है इसलिए सरकार इनके मानदेय को बढ़ाए।
(‘संघर्ष संवाद’ से साभार)