19 अक्टूबर। आईटीएम यूनिवर्सिटी, ग्वालियर ने वर्ष 2021 के बादशाह ख़ान स्मृति अलंकरण से देश के ख्यात गांधीवादी समाजवादी, मुंबई से प्रकाशित होनेवाली समाजवादी पत्रिका ‘जनता’ साप्ताहिक के प्रधान संपादक और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ जी.जी. पारीख को नवाजा है। यूनिवर्सिटी के समकुलपति प्रो. खेड़कर ने मुंबई में हुए एक सादे समारोह में अभिनंदन पत्र और सम्मान राशि का चैक डॉ पारीख को प्रदान किया। हर साल यह अलंकरण आईटीएम यूनिवर्सिटी के ग्वालियर स्थित परिसर में दिया जाता रहा है। हालांकि डॉ पारीख 97 वर्ष की आयु में भी सक्रिय हैं पर उनकी सुविधा को देखते हुए यह अलंकरण मुंबई में ही जाकर देने का निर्णय करना पड़ा।
97 वर्षीय डॉ जी.जी. पारीख देश के वरिष्ठतम समाजवादी और स्वतंत्रता सेनानी हैं। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय वह विद्यार्थी थे और आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। इस कारण उन्हें दस माह जेल में भी रहना पड़ा। लेकिन वह ऐसे स्वतंत्रता सेनानी नहीं हैं जो देश के आजाद होने के बाद चुप बैठ गये या सुख-आराम से रहने लगे। आजाद भारत में भी वह किसानों, मजदूरों, विद्यार्थियों के संघर्षों से जुड़े रहे। जेपी आंदोलन में सक्रिय रहे। आपातकाल विरोधी प्रदर्शनों में भाग लिया। हाल में सीएए के विरोध में भी सक्रिय हुए।
डॉ.पारीख आजादी के बाद से हर साल मुंबई में चौपाटी से गवालिया टैंक मैदान (जो अब अगस्त क्रांति मैदान कहा जाता है) तक पैदल मार्च करते हैं। लंबे अरसे से समाजवादी पत्रिका जनता के प्रकाशन का दायित्व उठाते रहे हैं। और इस सब के साथ-साथ चिकित्सक के तौर पर भी अपनी सेवाएं समाज को देते रहे हैं। डॉ. जी.जी. पारीख खादी ग्रामोद्योग आंदोलन से भी जुड़े रहे हैं। तारागांव, पनवेल स्थित यूसुफ मेहर अली सेंटर के वह कर्ता-धर्ता, संरक्षक और मार्गदर्शक हैं। यह संस्था दशकों से ग्रामीण सशक्तीकरण के कार्य में जुटी है और कई तरह की रचनात्मक गतिविधियां चलाती है।
डॉ जीजी पारीख को मित्र और करीबी लोग सिर्फ जी.जी. कहते हैं। जी.जी. 97 साल की आयु में भी, वार्धक्यजनित कमजोरी और कठिनाइयों के बावजूद सक्रिय रहते हैं, देश-दुनिया की घटनाओं पर नियमित रूप से पैनी नजर रखते हैं और बड़ी स्पष्टता व बेबाकी से अपनी राय रखते हैं। उन्हें इस बात का गहरा दुख है कि आज देश में सांप्रदायिक और फासिस्ट ताकतें सत्ता में हैं और देश को हिटलरी उन्माद व बर्बादी की तरफ ले जाना चाहती हैं। संविधान और लोकतंत्र गहरे संकट में हैं। वे कहते हैं कि आज देश को और लोकतंत्र को बचाने के लिए फिर उसी तरह बहुत-से लोगों को जेल जाने के लिए तैयार होना पड़ेगा जिस तरह आजादी की लड़ाई के समय लाखों लोग जेल गये थे। जी.जी. कहते हैं कि किसान आंदोलन ने देश में एक नयी उम्मीद जगायी है, पर अनेक मोर्चों पर बहुत कुछ करने की जरूरत है। जी.जी. से हर मुलाकात और हर बातचीत में स्वतंत्रता सेनानी का उनका जज्बा और साथ ही देश के मौजूदा हाल पर उनकी व्यथा झलक आती है। हर तरह से वह एक प्रेरक उपस्थिति हैं। बादशाह ख़ान अलंकरण से विभूषित किये जाने के अवसर पर समता मार्ग की ओर से उनका अभिनंदन।