— डॉ सुरेश खैरनार —
भागलपुर दंगे को 32 साल हो रहे हैं। 24 अक्टूबर 1989 के दिन दंगे की शुरुआत हुई थी। मैं उस समय कलकत्तावासी था। कलकत्ता और भागलपुर का फासला 400 किलोमीटर का है। भागलपुर कभी बंगाल प्रोविन्स का हिस्सा था। आज बिहार में है। वहाँ बंगालियों की जनसंख्या भी है। शरतचंद्र चटर्जी का ननिहाल यहीं पर था। उनके ‘श्रीकांत’ उपन्यास का लेखन भागलपुर-कलकत्ता की गंगा नदी के किनारे और उसकी जलयात्रा पर आधारित है। बांग्ला भाषा के कवि-लेखक बनफूल, मशहूर विचारकों में से एक आशिष नंदी, फिल्म निर्माता तपन सिन्हा जी यहीं के थे, जो बाद में काम के सिलसिले में बाहर गये।
वैसे भागलपुर महाभारतकालीन शहर है। इसके बगल का चंपानगर यही पुराना भागलपुर और अंगप्रदेश यानी महान योध्दा कर्ण की राजधानी, और इसीलिए भागलपुर की लोकल डायलेक्ट (बोली-भाषा) अंगिका है ! गंगा नदी के किनारे, और सबसे बड़ी विशेषता यह कि यहीं से गंगा 90 डिग्री के कोण से बंगाल की तरफ मुड़ती है। बहुत ही विशाल पाट है। और डालफिन मछलियों की भरमार है! रात में डालफिन मछलियों की उछलकूद देखकर मन विभोर हो जाता है!
भागलपुर की जनसंख्या आज दस लाख के आसपास होगी, 1989 में पाँच-छह लाख रही होगी। जिसमें मुसलमानों का अनुपात 15 फीसद है जो कि उनका राष्ट्रीय अनुपात भी है। तातारपुर, चंपानगर आदि मुस्लिम बहुल इलाके हैं। और उनका मुख्य व्यवसाय भागलपुर का मशहूर सिल्क! जो भारत में कम, विदेशों में ज्यादा बिकता है। ज्यादातर मशीनरी के मालिक हिन्दू मारवाड़ी हैं। मेहनत और हुनर के कारण कुछ मुसलमानों के भी साज-सामान होने लगे थे! जो दंगे में चुन -चुन कर जलाये गये ! और मारवाड़ी समाज ने परदे के पीछे से बाकायदा पैसे देकर मुसलमानों के ऊपर आक्रमण कराने का काम किया! और लगभग सभी मारवाड़ी संघ के समर्थक हैं ! और आज उसी संघ की राजनीतिक इकाई बीजेपी के समर्थक हैं!
वैसे गंगा नदी के किनारे हजारों-हजार साल गंगा की मिट्टी से तैयार जमीन से इस शहर के अगल-बगल में खेती भी अच्छी-खासी होती है। चावल, दलहन तथा अन्य जरूरत की चीजें, सब कुछ यहीं उगाया जाता है। सब्जियों में हर तरह की सब्जी होती है। परवल, खीरा, अन्य सभी तरह की पत्तेवाली सब्जियाँ; फलों में आम, केला, कुछ हद तक लीची भी होती है। एक तरह से सुजलाम् सुफलाम् इलाका है! बारह महीने हरियाली दिखती रहती है।
ज्यादातर मुसलमानों का बुनकरों में समावेश होता है। अन्य उससे संबंधित व्यवसाय जैसे धागा, मशीन और मशीनरी के लिए उसका साजो-सामान, रिपेयरिंग, बुने हुए कपड़े की खरीद-फरोख्त। हालांकि इसमें सबसे ज्यादा मारवाड़ियों की दखलंदाजी है। वजह पूँजी! उनके पास लागत लगाने के लिए बेतहाशा पैसा है। सो उन्हीं का दबदबा इस धंधे में है। इसलिए ज्यादातर मालिकों में मारवाड़ी हैं। इक्का-दुक्का मुसलमानों में से कोई है। और लगभग सभी मारवाड़ी शुरू से ही संघ परिवार के सदस्यों में रहे हैं! या इन्हीं की वजह से संघ भागलपुर में है। यह सिलसिला कमोबेश पूरे भारत में है। और अविभाजित भारत में भी था। एक खास बात है कि दंगे को परदे के पीछे से जरूर संघ ने हवा दी लेकिन डायरेक्ट एक्शन में संपूर्ण मंडल कैटेगरी के लोग शामिल थे!
तेरह साल बाद के गुजरात दंगे में भी यही हुआ ! ब्राह्मणों के संघ को हमारे प्रगतिशील मित्र पानी पी-पीकर कोसते रहते हैं लेकिन खैरलांजी से लेकर भागलपुर व गुजरात दंगों में प्रत्यक्ष रूप से भागीदारी ज्यादातर पिछड़ी जातियों के लोगों की रही, और इस बात का संज्ञान जब तक जातिनिर्मूलन करनेवाले लोग नहीं लेते तब तक दंगे करने की परंपरा जारी रहनेवाली है!
बिहार में स्वतंत्रता के बाद 1967 तक लगातार कांग्रेसी सरकारें रहीं। 1967से डॉ राममनोहर लोहिया की गैरकांग्रेस नीति के कारण भारत में पहली बार मिलीजुली सरकारें बनने की शुरुआत हुई। जिसका नतीजा 1977 की जनता पार्टी की सरकार थी। इसकी जमीन 10 साल पहले से तैयार हो रही थी। उस बीच 1974 के बिहार व गुजरात के नवनिर्माण आन्दोलन ने रही-सही कसर भी पूरी कर दी। इन सब आन्दोलनों में संघ परिवार सबसे संगठित होने के कारण सबसे ज्यादा लाभान्वित रहा है। जिसकी वजह से आज केन्द्र में और कई-कई राज्यों में उसकी सरकार है। आज बिहार के मुख्यमंत्री भले नीतीश कुमार हैं, पर वह हैं बीजेपी की कृपा से!
लेकिन यह सब अनायास नहीं मिला। इसके पीछे संघ परिवारवालों की सौ साल की मेहनत और लगातार अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ दुष्प्रचार करके देश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को आसान बनाना है। नतीजतन इतनी नालायक सरकार और उसको चलानेवाले घोर सांप्रदायिक मानसिकता वाले लोगों के हाथों में पूरा देश जा चुका है! हर मोर्चे पर वर्तमान सरकार के नाकाम होने के बावजूद, सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके, दोबारा सत्ता में आने के कारण! भागलपुर दंगे से शुरू हुई ध्रुवीकरण की प्रक्रिया दिन-प्रतिदिन बढ़ाते-बढ़ाते आज रोजमर्रा की जिंदगी के सवाल बद से बदतर होते हुए भी दोबारा इतनी बड़ी संख्या में लोकसभा का चुनाव जीतने की और कोई वजह मुझे नजर नहीं आती! कार्ल मार्क्स की धर्म को अफीम माननेवाली बात मुझे पहले कभी पसंद नहीं थी। लेकिन भागलपुर दंगे के बाद के मेरे अनुभव में धर्म के अफीम वाली बात मुझे सच लगने लगी !
दंगे के बाद मैं और हमारे शांतिनिकेतन के मित्र वीणा आलासे, श्यामली खस्तगिर, बाणी सिन्हा और मनीषा, मंदिरा जैसी छात्राओं के साथ बाबूपूर नाम की जगह पर गये थे। मैं और मनीषा (उसकी चप्पल खो जाने के कारण) पीछे छूट गये थे, तो बाबूपुर के एक फटेहाल सज्जन ने हमें रोक कर पूछा कि हम लोग कौन हैं और कहाँ से आए हैं और क्यों आए? एकसाथ सवालों की झड़ी लगा दी ! तो मैंने कहा कि मैं कलकत्ता से हूँ और यह लड़की शांतिनिकेतन से है और आगे जो लोग निकले हैं वे भी शांतिनिकेतन से हैं। तो उसने पूछा, यहाँ काहे को आए हो? मैंने कहा कि यह जो दंगे में चुन-चुन कर मुसलमानों के मकान मटियामेट किये हैं यह सब देखने आए हैं। तो वह तपाक से बोला कि बहुत ही अच्छा हुआ! तो मैंने पूछा, कैसा अच्छा हुआ? वह बोला कि हमारे रामजी के मंदिर को मियाँ लोग विरोध किया है इसलिए उनके सब मकान तोड़ दिया है !
तब तक वहाँ अच्छी-खासी भीड़ इकट्ठा हो गयी थी। तो मैंने उसके अधनंगे शरीर की तरफ इशारा करते हुए कहा कि मंदिर बनने से आपके शरीर पर नया कपड़ा आ जाएगा? बगल में ही एक टूटी–फूटी झोंपड़ी थी, तो मैंने पूछा कि यह मकान आपका है? वह बोला कि हमारा है तो मैंने कहा कि अगर यह मकान नया बना या इसके अंदर आपको खाने-पीने का सामान अगर मंदिर बनने से आ जाएगा तो हम-आप मिलकर दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर बनाने के लिए लग जाएंगे ! तो वह बोला कि ऐसा कैसे होगा? मैंने कहा कि अगर आप लोगों की और जिनके मकान तोड़ दिये गये हैं उनकी माली हालत में कुछ भी बदलाव नहीं होता है तो ऐसे मंदिर और मस्जिद के झगड़े को तूल देना कहाँ तक ठीक है? तो भीड़ में से कोई बोला कि ऐसे बात करनेवाले आप पहले लोग आए हो ! अबतक मंदिर-मस्जिद की बात करनेवाले आते रहे हैं। क्या आप लोग और नहीं आओगे? यह बाबूपुर के एक फटेहाल सज्जन ने हमें रोक कर भागलपुर के हमारे भावी कार्यक्रम की दिशा तय करने में योगदान किया!
वापसी के सफर में हम सभी कलकत्ता, शांतिनिकेतन के साथी भागलपुर में भविष्य में भी आने का संकल्प करने के बाद ही ट्रेन में सो सके। आज बत्तीस साल हो रहे हैं, हमारे शांतिनिकेतन के और कुछ स्थानीय साथियों की मदद से लगातार भागलपुर में शांति-सदूभावना का काम जारी है ! अब तो परिधि और गंगा मुक्ति, झुग्गी-झोपड़ी संगठनों के साथियों के अलावा और कुछ शिक्षक तथा जेपी आंदोलन के साथी रामशरण, उदय, ललन, डॉ योगेन्द्र, रामपूजन, अनिरुद्ध,रिजवान, हुदा साहब, संगीता, राहुल, उसकी पत्नी तथा कला केंद्र के गुरुजी और उनके शिष्य की मदद से लगातार काम कर रहे हैं! तथा शांतिनिकेतन से मनीषा बैनर्जी और उसके दोस्तों के साथ, भागलपुर दंगे के बत्तीस साल बाद भी, लगातार शांति बहाली प्रक्रिया जारी है। इन बत्तीस सालों में देशभर में 1992 में और अन्य वर्षों में भी कई सारे दंगे हुए हैं ! लेकिन हमें फख्र है कि भागलपुर मे एक कंकड़ भी नहीं उठा। यह हमारे सभी साथियों के अथक प्रयासों से ही संभव हुआ है !
सन 1985–86 के शाहबानो के केस में मुसलमान कट्टरपंथियों ने संघ परिवार के राममन्दिर-बाबरी मस्जिद विवाद के विमान के लिए लॉन्चिग पैड उपलब्ध करा दिया था! और सवाल कानून का नहीं है, आस्था का है, इस नारे को मान्यता शाहबानो केस से शुरू होती है!
लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी रथयात्रा राजनीति इससे शुरू कर 6 दिसम्बर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस कराया। उसके तीन साल पहले भागलपुर में शिलापूजन जुलूस के समय 24 अक्टूबर 1989 के दिन जो दंगा शुरू हुआ वह सिर्फ भागलपुर शहर तक सीमित नहीं रहा, वह अगल-बगल के बाँका, मुंगेर,गोड्डा, साहेबगंज, दुमका यानी लगभग पूरी भागलपुर कमिशनरी के क्षेत्रों में फैल गया। इसकी एकमात्र वजह संघ परिवार के द्वारा फैलायी गयी अफवाहें थीं! पहली अफवाह थी भागलपुर के महिला कॉलेज की 400 छात्राओं पर बलात्कार की, और दूसरी अफवाह थी, भागलपुर यूनिवर्सिटी के छात्रों के बारे में, जो विभिन्न प्राइवेट हॉस्टलों में रहते थे (ज्यादातर मुसलमानों के घरों में, क्योंकि यूनिवर्सिटी का इलाका मुस्लिम बस्ती में पडता है)। चार सौविद्यार्थियों की हत्या की अफवाह, अगल-बगल के गाँवों में हीरो होण्डा मोटर साइकिल पर सवार भेजकर फैलायी गयी। (उस समय मोबाइल फोन नहीं आए थे!) इनमें से एक भी अफवाह सही नहीं पायी गयी।
यह दंगा तीन सौ से अधिक गाँवों में आग की तरह फैला। क्योंकि जिनके बच्चे भागलपुर में पढ़ रहे थे उन्हें कोई और खबरें नहीं मिल रही थीं। तो यही सुनी-सुनायी बातों पर विश्वास करते हुए हजारों की संख्या में लोगों ने पारम्परिक हथियार उठाये और मुसलमानों के खिलाफ कार्रवाई करने में कोई कसर नहीं छोड़ी! तीन सौ से अधिक गाँवों में रहनेवाले मुसलमानों के मकान, उनकी रेशम बुनाई की मशीनरी जलाकर राख कर दिये गये। और तीन हजारसे ज्यादा लोगों की हत्या कर दी गयी!
बँटवारे के बाद 75 साल में भारत के विभिन्न शहरों में काफी दंगे हुए हैं।लेकिन भागलपुर दंगे की तीव्रता को देखते हुए मुझे लगता है कि इसके पहले के सभी दंगे कुछ चंद गली-मुहल्ले के दंगे हुए हैं लेकिन भागलपुर का दंगा पहला दंगा है जिसमें काफी बड़ा क्षेत्र चपेट में आया और बहुत बड़ी संख्या में लोग मारे गये! और वह भी गुजरात के 2002 के दंगे के तेरह साल पहले। राजनैतिक रूप में तब कोई मोदी-शाह नहीं पैदा हुआ था!
उस दंगे की तीव्रता को देखते हुए मैंने देशभर में बोला, लिखा कि आजादी के बाद के दिनों में भागलपुर दंगे का स्वरूप देखकर मुझे लगता है कि भारतीय राजनीति का आनेवाले 50 साल का केंद्रबिंदु साम्प्रदायिकता ही रहेगी। हमारे रोजमर्रा के सवाल और शोषण, गैरबराबरी, विस्थापन, पर्यावरण, जल, जंगल और जमीन के सवाल हशिये पर चले जाएंगे! अभी से हमारे सभी साथियों को चेत कर साम्प्रदायिकता के खिलाफ मोर्चा खोलने की जरूरत है!
और सबसे महत्त्वपूर्ण बात राष्ट्र सेवा दल की है। मुझे राष्ट्र सेवा दल के सैनिक के नाते पचास से ज्यादा साल हो रहे हैं। और मैं कह सकता हूँ कि आरएसएस का मुकाबला सिर्फ राष्ट्र सेवा दल ही कर सकता है ! और इसीलिए मैंने 1990–91 में प्रमिला ठाकुर के सहयोग से सबौर के कृषि महाविद्यालय में एक सप्ताह का सवा सौ बच्चे-बच्चियों का एक प्रशिक्षण शिविर लोगों के घरों से खाना माँग कर आयोजित किया था। और उसी के कारण शंकर नाम के एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता की मदद से एक दर्जन शाखाओं की शुरुआत हुई और इससे दंगे की दहशत का माहौल कम करने में काफी मदद मिली।
बाद में 115 मोहल्ला समितियों का गठन किया गया, जिसमें सभी तरह के नागरिकों को शामिल किया था, और 6 दिसम्बर 1992 के दिन मैं खुद भागलपुर में ही कैंप करके बैठा था, और हमारी मोहल्ला समितियों का उपयोग उस समय बहुत ही कारगर साबित हुआ। यही कारण है कि भारत में कई-कई जगहों पर दंगे हुए लेकिन भागलपुर में एक कंकड़ भी नहीं उठा ! इसलिए राष्ट्र सेवा दल का और मोहल्ला समितियों का प्रयोग बहुत ही महत्त्वपूर्ण है और उसे हर जगह करने की आवश्यकता है !
कुछ साथी जरूर इस काम में लगे, पर 135 करोड़ आबादी वाले देश में यह बहुत अधूरा प्रयास रहा है! इसके उलट संघ परिवार के अधिकृत रूप से 2करोड़ सदस्य, सवा लाख से अधिक शाखाएँ, और उससे ज्यादा सरस्वती शिशु मंदिर के स्कूलों के साथ, वनवासी सेवा आश्रम, शायद ही जीवन का कोई क्षेत्र होगा जिसमें उनकी पैठ नहीं है! इसलिए उस तुलना में, उनके खिलाफ काम करनेवाले लोगों की तादाद बहुत बिखरी हुई आज दिख रही है। और आज वे (संघ के लोग) सत्ता में आ बैठे हैं! इसलिए समय की नजाकत को देखते हुए मुझे यह जरूरी लगा कि इस साल, जब भागलपुर दंगे को 32 साल हो रहे हैं, मैं यह मुक्तचिंतन आप लोगों के साथ साझा करूँ।