— प्रेरणा —
मैं इस उलझन में हूं कि किसी को यह कैसे समझाऊं कि आपकी समझ कोई 80-90 साल पुरानी है; और इतनी खतरनाक है कि यह हिंदुस्तान के टुकड़े फिर वैसे ही कर सकती है जैसे 1947 में किया था। कैसे समझाऊं? चलिए, एक बार फिर कोशिश करती हूं।
मैं देख रही हूं कि तब जो ताकतें देश का विभाजन करने में जुटी थीं, वे ही ताकतें आज भी वही काम, उसी तरह कर रही हैं जैसे तब किया था जब देश टूटा नहीं था। तब भी गुमराह करनेवाले थोड़े ही थे, गुमराह होनेवाले बहुत सारे थे। तब समझाने व सावधान करने के लिए महात्मा गांधी जैसी हस्ती थी, आज हम जैसे साधारण लोग हैं। लेकिन समझ का क्या, वह हो, तो इशारों में आसमान बदल जाता है।
आज नहीं, सालों पहले भी ऐसा ही होता था कि भारत-पाकिस्तान का क्रिकेट मैच जब भी होता था, यही बात उछाली जाती थी कि देश में कई जगहों पर मुसलमानों ने पाकिस्तान की जीत का जश्न मनाया और पटाखे फोड़े। फिर यह आवाज बंद हो गयी, क्योंकि भारत-पाकिस्तान के संबंध ऐसे बिगड़े कि इन दोनों के बीच खेल भी बंद हो गया। लेकिन अभी-अभी टी-20 के विश्वकप ने फिर एक बार बात उछालने वालों को मौका दे दिया! इस बार पाकिस्तान ने हमें बुरी तरह हरा दिया। हार का जहर ज्यादा ही कड़वा होता है। राजनीति के बने-बनाये फार्मूले की तरह ही अफवाहों का भी फार्मूला होता है। तो इस फार्मूले के तहत यह अफवाह उड़ायी गयी कि मुसलमानों ने खुशी के पटाखे फोड़े। बात कोरी गप्प नहीं थी। ऐसे मौकों पर पटाखे फोड़नेवाले और उन फूटे पटाखों पर राजनीति करनेवाले अकसर एक ही कुल-गोत्र के लोग होते हैं। ऐसे लोग इधर भी हैं, उधर भी! तो उन लोगों ने अपना खेल किया और पटाखे फूटे – कश्मीर में तो खास तौर पर फूटे!
कश्मीर में अगर पटाखे फूटे तो इसमें किसी को आश्चर्य होना चाहिए क्या? भारत सरकार ने कश्मीर की जनता को, वहां के राजनीतिज्ञों और अलगाववादियों को अपमानित करने की जैसी कोशिशें पिछले वर्षों में की हैं, उसके बाद पटाखे भी न फूटें, ऐसा आप सोच सकते हैं क्या? उनकी राजनीतिक हैसियत को कुचलना, उनके नौजवानों को मार देना, उनके उद्योगों का बहिष्कार करना और देश में कश्मीरियों के प्रति नफरत फैलाना क्या पटाखे फोड़ने से कम खतरनाक है? आप संविधान फाड़ते हैं, वे पटाखे, तो किसे अपराधी माना जाए? जब कश्मीरियों से नफरत का पूरा आयोजन किया रहा है तो कश्मीरी हमसे प्रेम करें, यह संभव है क्या? कश्मीर में पटाखे इसलिए फूटे कि उनका दिल जला हुआ है और उनकी आत्मा रौंदी हुई है।
अब आते हैं देश के दूसरे हिस्सों की तरफ। पूरे देश में मुसलमानों के खिलाफ वर्षों से, कंगना जी को जब से आजादी मिली है तब से ही, वातावरण बनाया जा रहा है। नागरिकता का कानून, गो-मांस, मॉब लिंचिंग, लव जिहाद आदि कितने ही नामों व कानूनों से मुसलमानों के प्रति नफरत फैलाई जा रही है। खुलेआम उनकी हत्याएं हुई हैं और किसी ने उसकी दखल भी नहीं ली है। मुसलमानों को प्रताड़ित करनेवालों का सम्मान हो रहा है। विडंबना यह है कि ऐसे करतबों के लिए जिन हिंदुओं को सरकार सम्मानित व प्रतिष्ठित करती है, वे अधिकांशत: पेशेवर अपराधी हैं। ऐसी गुंडागर्दी, हत्या कोई सभ्य आदमी कर सकता है क्या? तो मुकाबला हिंदू गुंडों और मुसलमान गुंडों के बीच का बनता जा रहा है।
इसके दो परिणाम होंगे। मुसलमान फिर एक बार उसी तरह कोने में घेर लिये जाएंगे जैसे बंद कमरे में बिल्ली! वह तो हमला करेगी ही। फिर होगा यह कि घिरे मुसलमानों का रक्षक बन कर कोई जिन्ना आगे आएगा। आगे की कहानी कहने की जरूरत नहीं है। यही कहानी पढ़ते-जानते हम आजाद हुए हैं। अब तो हमारे बीच कोई गांधी महात्मा भी नहीं हैं कि जिनके सर सारा ठीकरा फोड़ा जा सके। यह बात बड़ी आसानी से समझ में आती है कि जो हो रहा है, उससे महात्मा का अपना केस ही मजबूत बनता है। आखिर क्यों गोडसे ने एक ऐसे आदमी को गोली मारी थी जो देश में एकता, समता और न्याय की बात करता था? वह तो पाकिस्तान भी नहीं चाहता था, मुसलमानों का राज भी नहीं चाहता था। हां, वह हिंदुओं का राज भी नहीं चाहता था। वह चाहता था कि आजाद भारत में संविधान का राज हो। संविधान का राज तो गुंडों का राज हो नहीं सकता है। इसलिए हम समझें कि उसपर चली पिस्तौल किसी हिंदू के हाथ में जरूर थी लेकिन उसमें गोली सावरकर व जिन्ना ने मिलकर भरी थी। यह समझना कोई रॉकेट साइंस तो नहीं है न!
आज जो हो रहा है उसका दूसरा परिणाम यह होगा कि आनेवाले कल पर संविधान का नहीं, गुंडागर्दी का राज होगा। जिस बहुमत पर आप इतरा रहे हैं, वही बहुमत कल गुंडों द्वारा कुचला जाएगा और सुननेवाला कोई नहीं होगा। आज भी हमारा बहुमत ही तो है जो महंगाई, बेरोजगारी, भुखमरी, गुंडागर्दी, बलात्कार, लूट-मार को भुगत रहा है।
पटाखों को देखने का एक नजरिया और भी है। देश के 18 करोड़ मुसलमानों में से कितनों ने पटाखे फोड़ने का काम किया होगा? क्या ख्याल है आपका? करोड़ों ने? लाखों ने? हजारों ने? सैकड़ों ने? दर्जनों ने? कुछ विवेक से काम लें हम ! पांच-दस लोगों ने यह किया होगा जिनमें तीन-चार कश्मीर से रहे होंगे। बाकी के सारे मुसलमान देश की तरक्की के काम में लगे हैं। पुलिस में, सेना में, मजदूरी में और पसीना बहाने में, जैसे देश के सभी जाति-धर्म के लोग लगे हैं, वैसे ही ये भी लगे हैं। दो-चार लोगों की बदमाशी का फायदा राजनीति उठाये और उसमें हम सब बह जाएं, यह गलत भी है और मूढ़ता भी।
कोई एक कंगना कहीं से आकर कह दे कि देश को आजादी भीख में मिली थी, तो क्या हम मानने लगेंगे कि देश के सभी लोग यही मानते हैं? झूठ को सौ बार बोला जाए, तो वह सच बन जाता है, यह बड़ी बोगस बात है। यह झूठ भी झूठ फैलानेवालों ने ही बनाया व फैलाया है। झूठ को हमेशा सच का चोला पहन कर ही हमारे बीच आना पड़ता है। आजादी की लड़ाई तो आपके घर के लोगों ने भी लड़ी होगी! बलिदान किया होगा। कुर्की-जब्ती हुई होगी। लाठी खायी होगी, जेल गये होंगे। कालापानी भी। मारे भी गये होंगे। भीख थी यह सब? कबूल करेंगे आप? कोई कंगना अपनी मूर्खता व स्वार्थ का दायरा नाप कर ऐसा कह दे तो क्या उसे देश का इतिहास मान लिया जाएगा? ऐसा करना उतना ही गलत, नापाक व स्वाभिमानविहीन होगा जितना किसी एक के पटाखे फोड़ने से यह मान लेना कि सारे भारतीय मुसलमान पाकिस्तान के समर्थक हैं। यह मुसलमानों का नहीं, बहुमत की समझ का अपमान है।
जो मुट्ठी भर स्वार्थी व सत्तालोपुप लोग झूठ बोलने और फैलाने के काम में दिन-रात लगे हैं, ये वही हैं जिन्होंने देश का विभाजन करवाया था। देश का विभाजन व विघटन यदि देशद्रोह है तो ये लोग देशद्रोही हैं। ये लोग हैं जो हिंदुओं के बहुमत और मुसलमानों के बहुमत को एकसाथ, एक जैसा ही मूर्ख व कायर समझ रहे हैं। इन्हें मूर्ख व कायर साबित करना आज के हिंदुस्तान की जरूरत है। किसी मूढ़मति का पटाखे फोड़ना देश की किस्मत फोड़ना बन जाता है जब हम उसे बहुमत की आवाज मान लेते हैं। इसलिए सावधान, भारत के हर नागरिक का धर्म है कि वह किसी के पटाखों की नहीं, संविधान की आवाज सुने, संविधान की हिदायत माने और संविधान से बाहर जानेवाली हर आवाज को खारिज कर दे। हम जिस दिन ऐसा करना सीख जाएंगे उस दिन से ही 1947 में मिली आजादी की कीमत समझने लगेंगे और देश के सारे नागरिक उसकी रक्षा में आगे आ जाएंगे।