संसद में प्रवेश पर रोक के खिलाफ पत्रकारों ने खोला मोर्चा

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2 दिसंबर। दिल्ली में सैकड़ों पत्रकारों ने गुरुवार को सरकार के तानाशाही रवैये के खिलाफ संसद तक मार्च किया। इससे पहले पत्रकारों ने प्रेस क्लब के भीतर एक सम्मेलन भी किया जिसमें प्रेस एसोसिएशन के अध्यक्ष जयशंकर गुप्त, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव संजय कपूर, वरिष्ठ पत्रकार सतीश जैकब, राजदीप सरदेसाई ,आशुतोष, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष उमाकांत लखेड़ा, महासचिव विनय कुमार, भारतीय महिला प्रेस कोर की विनीता पांडेय, दिल्ली पत्रकार संघ के एसके पांडे आदि ने सरकार के इस रवैये की तीखी आलोचना की और किसान आंदोलन की तरह पत्रकारों का आंदोलन छेड़ने का आह्वान किया।

वक्ताओं का कहना था कि कोविड के नाम पर सरकार पत्रकारों के संसद में प्रवेश पर रोक लगा रही है ताकि विपक्ष की खबरें न आएं और केवल सरकारी खबरें आएं।
उनका कहना था कि पहले सरकार ने सेंट्रल हॉल का पास बन्द किया ताकि पत्रकार सांसदों, नेताओं से मिलकर सरकार विरोधी खबर न दे सकें।

वक्ताओं ने कहा कि अब वे पत्रकारों को पहले की तरह प्रवेश नहीं दे रहे जबकि सांसद और संसद के कर्मचारी आ रहे हैं। एक तरफ तो सरकार ने सिनेमा हॉल, रेस्तरां, मॉल खोल दिये, दूसरी तरफ पत्रकारों पर रोक क्यों? गिने-चुने पत्रकार कोरोना का टेस्ट कराकर जा रहे तो सबको प्रवेश क्यों नहीं?

वक्ताओं का कहना था कि लोकसभा और राज्यसभा की दर्शक दीर्घा, राजनयिक दीर्घा और सभापति तथा अध्यक्ष की दीर्घाएँ खाली हैं तो वहां पत्रकारों को बिठाया जा सकता है लेकिन सरकार की मंशा कुछ और है।
सरकार ने पहले ही पीटीआई, यूएनआई की सेवा बंद कर रखी है। उसे केवल सरकारी खबरें चाहिए। इसलिए पत्रकारों के प्रवेश पर रोक। इतना ही नहीं, प्रेस सूचना कार्यालय द्वारा पत्रकारों के कार्ड का नवीनीकरण नहीं हो रहा है।

पत्रकारों ने सभा के अंत में एक प्रस्ताव भी पारित किया जिसमें इस लड़ाई को अंजाम देने तक लड़ने की सबसे अपील की गयी।

पत्रकारों का कहना था कि यह केवल संसद में प्रवेश की लड़ाई नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई है क्योंकि बिना स्वतंत्र मीडिया के लोकतंत्र जिंदा नहीं रह सकता।

इससे पहले देश के जाने-माने संपादक, पत्रकार, फोटो जर्नालिस्ट और संसद के दोनों सदनों को कवर करनेवाले रिपोर्टर अपनी मांगों को लेकर गुरुवार को एक बजे प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एकत्र हुए। उन्होंने संसद के स्थायी पास-धारक पत्रकारों के संसद परिसर तथा दोनों सदनों की प्रेस गैलरी में प्रवेश की मांग को लेकर पुरजोर आवाज उठायी। प्रेस क्लब से बाहर जब सैकड़ों पत्रकार तख्तियां लिये आगे बढ़े तो संसद के गोलचक्कर के पास पुलिस ने नाकेबंदी कर दी जिससे पत्रकार संसद के गेट के पास नहीं जा सके। पत्रकारों ने जमकर नारेबाजी की और अपनी एकजुटता का इजहार किया।

पत्रकारों की मांग इस प्रकार है –

“हमारी मांग है कि जिन पत्रकारों के पास स्थायी पास है, उन्हें संसद परिसर तथा राज्यसभा और लोकसभा की पत्रकार दीर्घा में प्रवेश की अनुमति दी जाए ताकि वे पहले की तरह सदन की कार्यवाही नियमित रूप से कवर कर सकें।

हमारी मांग है कि जुलाई में लोकसभा अध्यक्ष ने यह निर्णय लिया था कि स्थायी पास-धारकों को संसद कवर करने के लिए पत्रकार दीर्घा के पास पहले की तरह बनेंगे, उस फैसले को लागू किया जाय।

हम यह भी मांग करते हैं कि संसद के सेंट्रल हॉल के पास बनने पर जो पाबंदी लगी है उसे हटाकर पहले की तरह नए पास बनाए जाएं। वरिष्ठ पत्रकारों की लंबी सेवाओं को देखते हुए इस सुविधा को बहाल किया जाए।

हमारी यह भी मांग है कि दीर्घावधि समय तक संसद कवर करनेवाले पत्रकारों के विशेष स्थायी पास फिर से पहले की तरह बनें जो उनके पेशे की गरिमा और सम्मान के अनुरूप है। फिलहाल सरकार ने इसपर भी रोक लगा रखी है।

हमारी यह भी मांग है कि जिन पत्रकारों के सत्र की पूरी अवधि के लिए जो पास बनते थे, उन्हें पहले की तरह पास बनाए जाएं ताकि वे सदन की कार्यवाही कवर कर सकें क्योंकि सरकार द्वारा पत्रकारों के प्रवेश पर रोक लगाने से उनकी नौकरी और सेवा पर भी असर पड़ा है जिससे उन्हें
छंटनी का भी सामना करना पड़ा है।

हम यह भी माँग करते हैं कि दोनों सदनों की प्रेस सलाहकार समितियों का नए सिरे से गठन हो क्योंकि दो साल के बाद भी उनका गठन नहीं हुआ।

सभी संपादकों, ब्यूरो चीफ तथा पत्रकारों, संवाददाताओं प्रेस छायाकारों से अपील है कि वे अधिक से अधिक संख्या में आकर इस मार्च को सफल बनाएं ताकि सरकार पर दवाब डाला जा सके और हमें हमारा अधिकार मिले।लोकतंत्र को मजबूत बनाने और प्रेस की स्वतंत्रता के लिए पत्रकारों को संसद कवर करने का अवसर पहले की तरह मिले।”

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, प्रेस एसोसिएशन, इंडियन वीमेन्स प्रेस कोर, दिल्ली पत्रकार संघ और वर्किंग न्यूज कैमरामैन एसोसिएशन द्वारा जारी।

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