12 दिसंबर। लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित युवा संगठन ‘छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी’ से जुड़े रहे सदस्यों का जुटान इस बार बुद्ध की भूमि बोधगया (बिहार) में होने जा रहा है। उल्लेखनीय है कि संघर्ष वाहिनी की स्थापना एक जनवरी 1975 को हुई थी। इसी कारण यह आयोजन एक जनवरी को किया जाता है। बोधगया में यह समारोह 30, 31 दिसम्बर 2021और 1 जनवरी 2022 को होगा।
संघर्ष वाहिनी की स्थापना
जेपी को जल्द ही महसूस हो गया था कि आंदोलन में शामिल सभी राजनीतिक दलों और उनके युवा संगठनों की प्राथमिकता सत्ता हासिल करना और अपने संगठन का आधार बढ़ाना है। जेपी जिस समग्र बदलाव का, संपूर्ण क्रांति का सपना देख रहे थे, उसमें उन दलाश्रयी युवा संगठनों की खास रुचि नहीं थी। इसी कारण जेपी को संपूर्ण क्रांति के लिए प्रतिबद्ध एक युवा संगठन की जरूरत महसूस हुई। इस तरह छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी का जन्म हुआ। चौदह से तीस वर्ष की उम्र सीमा थी। तीस वर्ष के बाद सदस्यता स्वत: समाप्त हो जाती है। इसकी सदस्यता की एक शर्त यह थी कि किसी राजनीतिक दल से जुड़े युवा सदस्य नहीं बन सकते थे। इसके अलावा वाहिनी के सदस्य पर किसी चुनाव में हिस्सा लेने पर रोक थी। इन कठिन शर्तों के कारण दलों से जुड़े युवा तो इससे स्वत: दूर रह गये। तब के अनेक स्थापित छात्र नेताओं ने परोक्ष रूप से इसका विरोध भी किया। यह भी कहा गया कि जेपी अपना जेबी संगठन बनाना चाहते हैं। यह लोकतांत्रिक भी नहीं होगा।
जन्मगत जातीय पहचान से मुक्त होने, नाम में उपाधि न लगाने की शर्त भी उस समय युवाओं के लिए कठिन थी। स्त्री-पुरुष समानता भी अपरिहार्य शर्त थी। फिर भी धीरे-धीरे संघर्ष वाहिनी आकार लेने लगी। लेकिन कुछ महीने बाद जून 1975 में इमरजेंसी लगने पर सब कुछ थम गया। बड़ी संख्या में गिरफ्तारी हुई। लेकिन तब जेल ही संघर्ष वाहिनी के प्रशिक्षण केंद्र बन गये। जनता पार्टी सरकार बनने के बाद जेपी ने उस सरकार को कम से कम एक वर्ष का मौका देने की बात की। वाहिनी को गांवों में जाने, फैलने का निर्देश दिया। जनता को जागरूक और संगठित कर सत्ता पर अंकुश रखने की बात कही। यह भी कि जहां भी अन्याय होता है, लोगों को उसके खिलाफ लड़ने के लिए तैयार करें।
इसी क्रम में 1978 में बोधगया मठ के अवैध कब्जे में पड़ी हजारों एकड़ जमीन की मुक्ति के लिए संघर्ष वाहिनी ने शांतिपूर्ण भूमि आंदोलन शुरू किया।
‘जो जमीन को जोते बोये, वो जमीन का मालिक होवे’ इसका केंद्रीय नारा बना। यह अब देश के एक ऐतिहासिक और सफल भूमि आंदोलन के रूप में इतिहास में दर्ज है। सैकड़ों लोग, कार्यकर्ता झूठे मुकदमों में गिरफ्तार हुए। दो मजदूरों की शहादत हुई। तीन वर्ष के अंदर गया जिले के चार प्रखंडों में फैली बोधगया मठ की ‘जमींदारी’ ध्वस्त हो गयी। करीब दस हजार एकड़ जमीन पर मजदूरों का नियंत्रण हो गया; अंततः सरकार ने उन जमीनों का वितरण भूमिहीनों के बीच किया। इसमें भी एक खास और नयी बात यह हुई कि आंदोलन की मांग और दबाव में अनेक गांवों में जमीन का पट्टा महिलाओं के नाम पर बना।
बाद में आंदोलन शिथिल हुआ। थम-सा गया। हालांकि बाद में कुछ नये इलाकों में, खासकर मोहनपुर प्रखंड में, इसका विस्तार भी हुआ। वनाधिकार कानून के तहत वनक्षेत्र में बसे गांवों में भूमि स्वामित्व हासिल करने का यह संघर्ष अब भी जारी है।
आंदोलन की इस पृष्ठभूमि के कारण भी इस बार मित्र मिलन वहीं करने का निर्णय हुआ। इस मौके पर आंदोलन से जुड़े गांवों में भी इस आयोजन को लेकर उत्साह है।
मित्र मिलन की पृष्ठभूमि
संघर्ष वाहिनी में उम्र की सीमा के कारण वाहिनी से अलग हुए अनेक सदस्य अलग अलग काम और पेशे से जुड़ने लगे। अनेक अलग संगठन बनाकर सामाजिक काम में लगे रहे। मगर संघर्ष वाहिनी के समय की मित्रता और आत्मीयता के सूत्र में बंधे भी रहे। इसी सूत्र को और मजबूत करने के लिए ‘मित्र मिलन’ की शुरुआत हुई। अपेक्षा की जाती है कि वाहिनी के साथी अपने परिवार के साथ आएं, ताकि उनकी बाद की पीढ़ी भी देख-समझ सके कि वाहिनी की परंपरा कैसी रही है। हमारे बीच कितना अपनापन रहा है। साथ ही हम वर्तमान चुनौतियों में अपनी भूमिका तलाश करने पर विचार करें, यह मकसद भी होता है। कुछ लोग घूमने-फिरने के दोहरे मकसद से भी आते हैं। जैसे भी हो, मित्र मिलन पुराने मित्रों, उनके परिवारों के मिलन का एक अनूठा आयोजन होता है। किसी अन्य युवा राजनीतिक संगठन का ऐसा खुशनुमा और आत्मीयता से भरा आयोजन शायद ही होता है।
यह आयोजन अमूमन एक वर्ष के अंतराल पर देश के अलग अलग स्थानों पर होता है। पिछ्ला मित्र मिलन पुरी (ओड़िशा) में हुआ था, 2018 में। कोरोना संकट के कारण 2020 में नहीं हो पाया। इस बीच ‘वाहिनी मित्र मिलन’ नाम के वाट्सऐप ग्रुप के जरिये संपर्क बना रहा। वहीं हुई चर्चा में आयोजन करना तय हुआ।
इसी क्रम में बीते दिनों छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के वर्तमान और पूर्व सदस्यों की एक बैठक मधुपुर में हुई। बैठक में मित्र मिलन की तैयारी पर चर्चा हुई। सम्मेलन बोधगया में हो, इस पर अनौपचारिक सहमति तो बन ही चुकी थी। मधुपुर की बैठक में विधिवत फैसला हो गया। यह वाहिनी मित्र मिलन का 11वां कार्यक्रम है। इसमें देश भर के वाहिनी के मित्रों के अलावा अनेक सहमना राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता भी हिस्सा लेंगे।
मधुपुर की बैठक में बिहार और झारखंड के 16 वरिष्ठ कार्यकर्ता शामिल हुए। बैठक में मित्र मिलन कार्यक्रम की तैयारी समिति का गठन हुआ। यह भी तय हुआ कि बोधगया के मित्र मिलन कार्यक्रम में आगे की रणनीति पर विचार किया जाएगा। मित्र मिलन संचालन समिति के संयोजक सतीश कुंदन (गिरिडीह) ने दी है।
बैठक में देश में बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और शिक्षा आदि समस्याओं पर गंभीर चर्चा हुई। देश में चल रहे किसान आन्दोलन (जिसे अब जीत के साथ खत्म करने की घोषणा हो गयी है) की सफलता और उसके पूरे देश में विस्तार पर गंभीर चिंतन किया गया। सभी मित्रों की आम राय थी कि देश में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर किसानों का शांतिपूर्ण आन्दोलन चला और अपने अंजाम तक पहुंचा। इस तरह किसानों के आन्दोलन ने भविष्य में सकारात्मक परिवर्तन की उम्मीदें जगायी हैं।
ऐसे में बोधगया मित्र मिलन भविष्य की एक नयी शुरुआत का आधार बन सकता है।
– श्रीनिवास
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