शिवराज सरकार ने इक्कीस महीनों में क्या किया?

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— डॉ सुनीलम —

ध्यप्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में प्रदेश के मतदाताओं ने कांग्रेस को बहुमत दिया था। कांग्रेस की सरकार 17 दिसंबर 2018 से 20 मार्च 2020 तक 15 माह चली। भाजपा द्वारा की गयी खरीद-फरोख्त और कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी के चलते कांग्रेस के 22 विधायकों ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में भाजपा का दामन थाम लिया। 23 मार्च 2020 को दल-बदल कानून को ठेंगा दिखाते हुए शिवराज सिंह ने मुख्यमंत्री की सत्ता संभाली। 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुआ, जिसमें 19 सीटों पर भाजपा जीत गई।

भाजपा ने 2018 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश के 10 लाख बेरोजगारों को रोजगार दिलाने का वायदा किया था लेकिन भाजपा सरकार 21 महीनों में एक लाख रोजगार भी मुहैया नहीं करा सकी। प्रदेश में इस समय पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 32 लाख है। दो लाख से ज्यादा पद खाली हैं लेकिन उन्हें भरा नहीं जा रहा है ।

भाजपा ने हायर सेकेंडरी में 75 फीसद अंक लानेवाली छात्राओं और कॉलेज जानेवाली छात्राओं को मुफ्त में स्कूटी देने और कॉलेज जाने के लिए मुफ्त परिवहन का वायदा किया था, जो आज तक पूरा नहीं हुआ। कॉलेज की छात्राओं को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग और गर्ल्स हॉस्टल की क्षमता दुगुनी करना भी कागजों तक ही सीमित रह गया। भाजपा ने फूड प्रोसेसिंग, टूरिज्म यूनिवर्सिटी, कारीगर यूनिवर्सिटी खोलने, नॉलेज कारपोरेशन बनाने तथा नये वेतन आयोग की स्थापना करने का वायदा किया था जिस पर अमल नहीं किया। गरीबों के चार लाख आवास प्रदेश सरकार द्वारा बजट आवंटन के अभाव में नहीं बन पा रहे हैं। भाजपा की घोषणा के अनुसार स्वसहायता समूह को ब्याज-मुक्त कर्ज देने की घोषणा भी हवा में ही है।

भाजपा सरकार ने वायदा किया था कि वह किसानों को केंद्र सरकार द्वारा दी जानेवाली किसान सम्मान निधि के साथ-साथ चार हजार रुपये (मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना) राज्य सरकार की ओर से देगी। लेकिन प्रदेश के सभी किसानों को ना तो केंद्र सरकार द्वारा घोषित 3 साल की 18,000 रुपये सम्मान निधि की राशि मिली है ना ही राज्य सरकार द्वारा 2020 में घोषित 4000 रुपये मुख्यमंत्री किसान कल्याण योजना की राशि मिली है। किसानों को खाद के लिए लाइन में लगकर डंडे खाने पड़ रहे हैं। एमएसपी पर खरीद नहीं होने के कारण किसानों को 1960 रुपए के बजाय धान 1300 रुपये, 2738 की ज्वार 1500 रुपये,1870 का मक्का 1400 रुपये, 2250 का बाजरा 1400 रुपये प्रति क्विंटल पर बेचना पड़ा है।

स्वास्थ्य सेवाओं की हालत चरमराई हुई है। जिला अस्पतालों में पांच हजार से ज्यादा डॉक्टरों और विशेषज्ञों के पद रिक्त हैं। राज्य सरकार का बजट 2 लाख 41हजार करोड़ का है जबकि कर्ज 2 लाख 53 हजार करोड़ हो गया है। केंद्र सरकार ने 52 हजार करोड़ रुपया राज्यांश देने की बजाय 46 हजार करोड़ ही दिया है। राजस्व घाटा 46 फीसदी हो गया है।

मध्यप्रदेश अपराध में देशभर में चौथे नंबर पर है। 2018 में कुल 2, 48 , 354 अपराध दर्ज हुए थे, जो बढ़कर 2020 में 2, 83, 881 हो गए हैं।

प्रदेश में जनजातीय आबादी 21 फीसद है। मध्यप्रदेश सरकार जनजातियों के लिए रोज नयी घोषणाएं करती है परंतु वन विभाग आदिवासियों को जंगलों से उजाड़ने का काम करता है और उन्हें लगातार पुलिस दमन का शिकार होना पड़ रहा है। प्रदेश में बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता लगातार अल्पसंख्यकों के पूजा स्थलों, स्कूलों पर हमले कर रहे हैं। कुल मिलाकर प्रदेश की जनता को विकास के नाम पर केवल भाषण और घोषणा ही हाथ लगी है।

उक्त अनुभव के आधार पर जिन पांच राज्यों में आनेवाले समय में चुनाव हो रहे हैं, वहां के मतदाताओं को पार्टियों के घोषणापत्र को लागू कराने के उपाय तलाशने चाहिए। किसी भी राज्य में चुनी हुई सरकार को खरीद-फरोख्त के माध्यम से ना गिराया जाए और ना बदला जा सके। यह सुनिश्चित करने के लिए उपयुक्त उम्मीदवारों का चयन करना चाहिए। जनप्रतिनिधि चुने जाने के बाद यदि वह मतदाताओं के हितों के खिलाफ कार्य करता है तो उसे वापस बुलाने के अधिकार (राइट टु रिकाल) की लड़ाई लड़नी पड़ेगी अन्यथा मध्यप्रदेश में भाजपा की तरह पार्टियों के नेता मतदाता को ठगते रहेंगे।

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