1.
पूछ रहा हर दहकां तख़्तनशीनों से,
बेदखली क्यों श्रम की हुई ज़मीनों से।
अपनी आँखों-देखी को बिसराएं क्यों,
क्योंकर पूछें सच्चाई नाबीनों से ।
उन्नत खेती बाँझ रही हम खेत रहे,
लोन परोसा बाँधा हमें मशीनों से ।
खेती खेत फसल सब कुछ तो अपना है,
फिर भी हम ही वंचित हैं इन तीनों से।
बेशक नहीं गुलाम यहाँ आज़ाद सभी,
तो भी शेष लड़ाई कुछ स्वाधीनों से ।
2.
कैसे किसान हैं ये भरपेट खा रहे हैं,
खाकर पुलाव-पिज्जा हमको चिढ़ा रहे हैं।
डर लग रहा हमें अब संसद ये घेर लेंगे,
गाँवों को छोड़ अपने सड़कों पे आ रहे हैं।
धरती के लाड़ले ये धरती के हम लुटेरे,
हो लूट में इजाफा कानून ला रहे हैं ।
खाएँ ये अन्न अपना खाएँ तो साथ लेकिन,
रीझे नहीं हैं इन पर इनको रिझा रहे हैं ।
जो थे शहीद कल के ज़िंदा हैं आज भी जो,
मंचों से अब भी उनके ये गीत गा रहे हैं।
सोचा था अब मशालें फिर जल नहीं सकेंगी,
लेकिन ये फिर से उठकर उनको जला रहे हैं।
3.
बैठे हैं विज्ञान-भवन में ज्ञान चाहिए,
खेती के सच का उनको ईमान चाहिए।
ठिठुर रहे हैं जो सड़कों पर रात और दिन,
उनको उनके तापमान का मान चाहिए।
कृषिमंत्र जपते आखिर तो मंत्री जी हैं,
हर खेतीहर का उनको बलिदान चाहिए ।
बड़के मंत्री जी भी हक़ में हैं किसान के,
कहते, मिल-मालिक से बड़ा किसान चाहिए।
खेती करनी अब उनको धरती से ऊपर,
ज्वार बाजरा मक्का गेहूँ धान चाहिए।
खाते खुले खजाने सब कुछ ओपन ही है,
सिर्फ़ उन्हें आगत का कुछ अनुमान चाहिए।
मंडी नहीं चाहिए कोई भी अब उनको,
बाज़ारों के लिए गुप्त गोदाम चाहिए ।
खेल खुला फ़र्रूख़ाबादी खेल रहे वो,
खुलकर लूटें , भरे हुए खलिहान चाहिए।
धरम सनातन परम एकता के वे हामी,
हिंदू हैं हिंदू ही ‘हिंदुस्थान’ चाहिए।
देश दलाली की दलदल में बेशक डूबे,
उनको उनका भारत देश महान चाहिए।
4.
अनगिन पेट रोटियों का दिन पर दिन टोटा,
भरे पेट कहते हैं मत करना दिल छोटा।
दूध-दही जिनके हाथों वे स्वयं तरसते,
खुलकर खाता दूध-मलाई एक बिलौटा।
जो रक्षण-आरक्षण की बातें करते हैं,
घर बैठे मिल जाता उनको उनका कोटा।
राहें जो मंज़िल तक हमको ले जाएंगी,
छल से बल से रोक उन्हें वे करते खोटा।
इन्क़लाब को ज़िंदाबाद किया गर हमने,
रातों-रात लगा देंगे वे हम पर पोटा ।
5.
मैं किसान मुझसे टकराओ,
गणित किसानी का समझाओ।
जिन्सें मेरी भाव तुम्हारा ,
इसका क्या कारण बतलाओ ।
लागत से कम पर खरीदकर,
शौक तुम्हारा लूटो – खाओ ।
संविधान की कसमें खाकर,
संविधान को ही झुठलाओ।
मनमाने कानून पास कर,
कोट- कचहरी तक दौड़ाओ।
मैं कहता मैं भगतसिंह हूँ
तुम कहते फाँसी चढ़ जाओ।