पिछले दिनों हरिद्वार से लेकर दिल्ली और रायपुर तक तथाकथित ‘धर्म संसद’ की ओर से कराये गये बेहद आपत्तिजनक भाषणों और उनका मीडिया के एक हिस्से द्वारा प्रचार को ‘नफरत के सौदागरों का हमारे धर्मों और देश पर हमला’ घोषित करते हुए सोसायटी फॉर कम्यूनल हारमनी (अंतर-धार्मिक सद्भाव समिति) ने 2 जनवरी को एक राष्ट्रीय संवाद आयोजित किया। इस कार्यक्रम में सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी, पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, कल्कि आश्रम, किसान संघर्ष समन्वय समिति, समाजवादी समागम, बहुजन संवाद, पीसफुल सोसायटी, खुदाई खिदमतगार, लायर्स फॉर डेमोक्रेसी, उत्तराखंड संघर्ष समिति, छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी, नागरिक मंच आदि नागरिक संगठनों का प्रतिनिधित्व हुआ। दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया विश्वविद्यालय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर विश्वविद्यालय, आई.आई.टी.(दिल्ली), जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से जुड़े बुद्धिजीवियों की भी हिस्सेदारी थी।
इस संवाद में ऐसी खतरनाक हरकतों के बारे में केन्द्रीय सरकार, कुछ राजनीतिक दलों और पुलिस की भूमिका पर भी चिंता प्रकट की गयी। यह आह्वान किया गया कि धर्मों और देश पर हमले को नाकाम करने के लिए नागरिक एकता और सर्वधर्म सद्भाव को मजबूती दी जाए। इसके लिए पूरे साल स्थानीय समुदायों में धार्मिक संगठनों, शिक्षा केन्द्रों, सोशल मीडिया और सांस्कृतिक मंचों के माध्यम से लोकशिक्षण और जन-सहयोग के रचनात्मक कार्यक्रमों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए। राष्ट्रीय एकता और सर्वधर्म-समभाव के लिए शहीद हुए राष्ट्रपिता गांधी के विचार और कर्म से प्रेरणा ली जाए। देश को न्याय, शांति और प्रगति के रास्ते पर आगे बढ़ने में जुटे संगठनों का स्थानीय, प्रांतीय और राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त मोर्चा बनाया जाए।
‘धर्मसंसद’ देश की एकता, हिन्दू धर्म और संसद को चुनौती
ऑनलाइन विचार-विमर्श की भूमिका के रूप में प्रो. आनंद कुमार ने कहा कि‘हिन्दू राष्ट्र’ के नाम पर नफरत फैलाने के लिए ‘धर्म-संसद’ के आयोजन का दुस्साहस करनेवाले राष्ट्रीय एकता, हिन्दू धर्म और देश की संसद तीनों के लिए खतरा हैं। चुनाव जीतने के लिए भारत में अमरीका और यूरोप की नकल करके इस्लाम का आतंक फैलाना (‘इस्लामोफोबिया’) साँप को दूध पिलाने जैसी आत्मघाती कोशिश है। द पीसफुल सोसायटी के संस्थापक कलानंद मणि ने स्वतंत्रता आन्दोलन और राष्ट्रनिर्माण के पूरे इतिहास के बारे में बढ़ते अज्ञान पर चिंता प्रकट की। इसे दूर करने के लिए सर्वधर्म समभाव के पक्षधरों की एकजुटता और सक्रियता को नफरत के सौदागरों का सही इलाज बताया।
नागरिक अधिकारों के लिए संघर्षरत एडवोकेट कविता श्रीवास्तव के अनुसार जनसाधारण में बढ़ते असंतोष और आंदोलनों से घबराये सत्ताप्रतिष्ठान द्वारा सांप्रदायिक नफरत की ताकतों को सामाजिक हिंसा के लिए उकसाया जाया रहा है। इसके विरुद्ध जनसंवाद और सद्भावना यात्राएँ सार्थक समाधान हैं। उत्तराखंड आन्दोलन की अगली कतार के नायक पी.सी. तिवारी ने हरिद्वार में आयोजित ‘धर्म-संसद’ को सत्ता के बिचौलियों द्वारा जनसाधारण की आस्था के साथ खिलवाड़ बताते हुए बेरोजगारी, पलायन और प्रकृति-विनाश से त्रस्त लोगों को गुमराह करने की हास्यास्पद कोशिश कहा।
आध्यात्मिकता बनाम साम्प्रदायिकता
कल्कि आध्यात्मिक प्रतिष्ठान के मार्गदर्शक आचार्य प्रमोद कृष्णम ने चर्चा को नया मोड़ देते हुए याद दिलाया कि हर समाज में संस्कृति और धर्म की धुरी पर जीवन संगठित होता है और कोई भी धर्म नफरत और नर-संहार की शिक्षा नहीं देता। लेकिन भारतीय राजनीति में हिन्दू धर्म को लेकर नासमझी और मुसलमानों के बारे में गलतफहमी बढ़ी है। इसका लाभ लेकर अवसरवादी ताकतें और राजनीतिक जमातें सत्ता की राजनीति के लिए उठा रही हैं। जबकि किसी भी आतंकवादी को अच्छा हिन्दू या मुसलमान मानना ही दोषपूर्ण है।
सद्भाव मिशन के संस्थापक प्रो. विपिन कुमार त्रिपाठी ने 1992 से 2021 के कई प्रसंगों के अनुभवों के जरिये नागरिक एकता और सर्वधर्म संवाद में योगदान के लिए आगे आने को प्रेम और शांतिपूर्ण प्रगति की सबसे बड़ी आवश्यकता बताया। सोसायटी फॉर कम्यूनल हारमनी के डा. सय्यद फारुक ने धर्म रक्षा के बहाने समाजविरोधी ताकतों के सामने आने को बेहद चिंताजनक सच बताया और इंसाफ और इंसानियत के आदर्शों में विश्वास करनेवालों की असरदार सक्रियता का सुझाव दिया।
गाँव-शहर में बढ़ती साम्प्रदायिक दूरी
नागरिक मंच के संयोजक ने गाँवों में इधर के दशकों में बढ़ती साम्प्रदायिक दूरी के उदाहरण देते हुए नकली धर्मरक्षकों के षड्यंत्रों से हिन्दू और मुस्लिम स्त्री-पुरुषों को बचाने के लिए गांधी की तरह मानवतावादी आध्यात्मिकता के आचरण को अपनाने की सलाह दी। किसान आन्दोलन के महत्त्वपूर्ण नायक डा. सुनीलम ने किसानों के बीच शांतिपूर्ण आन्दोलन के कारण साम्प्रदायिकता के घटते प्रभाव की चर्चा करते हुए सुझाया कि हमारे धर्मों से नयी पीढ़ी को अवगत कराने के लिए कबीर, रैदास, नानक से लेकर बुल्लेशाह, निज़ामुद्दीन औलिया, विवेकानंद, गांधी, ख़ान अब्दुल गफ्फार ख़ान और डा. आम्बेडकर के विचार और कर्म की जानकारी फैलानी चाहिए।
प्रोफेसर बादशाह आलम के अनुसार विद्यार्थियों में अपने अनिश्चित भविष्य को लेकर चिंता और उसका असामाजिक ताकतों द्वारा साम्प्रदायिकता के लिए इस्तेमाल पूरे देश के लिए चुनौती है। खुदाई खिदमतगार के अगुवा फैसल ख़ान ने इस बात का खंडन किया कि समाज में साम्प्रदायिकता के जहर का फैलाव हो चुका है। उनके अनुसार संवाद और सहानुभूति की कोशिश का बहुत अनुकूल नतीजा मिलता है। वरिष्ठ पत्रकार क़ुरबान अली के अनुसार पिछले कुछ बरसों में सरकारी तंत्र के हर अंग पर धार्मिक भेदभाव को बढ़ानेवाली ताकतों का असर बढ़ा है। इसपर समाज के बड़े हिस्से में चुप्पी से अल्पसंख्यकों में निराशा और नाराजगी भी बढ़ी है।
संविधान और कानून का पालन ही समाधान
सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और नागरिक अधिकार आन्दोलन के वरिष्ठ व्यक्तित्व एन.डी. पांचोली ने हिन्दू साम्प्रदायिकता की लहर पैदा करने और भारतीय मुसलमानों के बारे में नफरत फैलानेवालों को देश की एकता और प्रगति का दुश्मन बताया। इसके समाधान के लिए संविधान और कानून के बताये रास्ते पर चलने की माँग की और चेतावनी दी कि तथाकथित धर्म-संसद देश की संसद को खुली चुनौती है। यह उत्तराखंड, दिल्ली और देश की सरकार को चला रहे लोगों और दलों के लिए परीक्षा की घड़ी है। उनकी चुप्पी को देश का जनसाधारण माफ नहीं करेगा क्योंकि हिंसा को भड़काना हर नागरिक के लिए खतरे की घंटी है।
गांधी-जे.पी. अनुयायी रामशरण, हिंदी के प्राध्यापक डा. अरमान, कबीर की सिखावन के प्रसार से जुड़ीं डा. मेधा, लायर्स फॉर डेमोक्रेसी के अमित श्रीवास्तव, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के शोधछात्र दिलीप कुमार, समाजकर्मी रिजवान अहमद ख़ान, युवानेता प्रदीप बंसल, ग्रामीण युवा संगठनकर्ता दीपरंजन कुमार और नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट के समर बागची ने भी संवाद में योगदान किया। कार्यक्रम का समापन जे.पी. प्रतिष्ठान के सचिव डा. संतप्रकाश द्वारा चर्चा समीक्षा और धन्यवाद प्रकाश से हुआ।