4 जनवरी। सात दिनों के हिंदी मेला का 1 जनवरी को मातृभाषा और साहित्य के प्रति प्रेम व्यक्त करते हुए और नए साल का एक नए अंदाज में अभिनंदन करते हुए समापन हुआ।
28 साल पहले शुरू हुए इस मेले को युवाओं का समर्थन बढ़ता ही गया है। इसकी एक खूबी यह है कि लेखक, शिक्षक और विद्वान मुख्यतः दर्शक होते हैं, युवा ही काव्य आवृत्ति करते हैं, कविताओं को गाते हैं, विभिन्न भारतीय भाषाओं के गीत व नृत्य प्रस्तुत करते हैं, कविताओं पर चित्र बनाते हैं। हिंदी मेला युवाओं का मंच है। इसके जरिए साहित्य को कलाओं से जोड़ने के अभियान को कोलकाता के हिंदी मेले ने लघु स्तर पर निरंतर जारी रखा है।
27वें हिंदी मेला में ‘स्वतंत्रता का 75वां वर्ष : साहित्य, संस्कृति और मीडिया’ पर बड़ी ही ठोस चर्चा हुई। इस पर चिंता व्यक्त की गई कि आखिरकार 75वीं वर्षगांठ पर 1947 के महत्त्व पर हर तरफ सन्नाटा क्यों है। स्वाधीनता के मूल्यों पर चर्चा क्यों नहीं हो रही है? इसपर चुप्पी क्यों है —1947 में हमें क्या मिला था और हम क्या खो रहे हैं?
– डॉ शंभुनाथ