प्रधानमंत्री के नाम आईआईएम के छात्रों का खुला खत, देश में भय की भावना है

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8 जनवरी। भारतीय प्रबंधन संस्थान यानी आईआईएम बेंगलुरु और अमदाबाद के 180 से अधिक छात्रों और पाँच प्रोफेसरों ने प्रधानमंत्री को एक खुला पत्र लिख कर नफरत भड़काने वाले भाषणों पर चिंता जतायी है। पत्र में कहा गया है कि हमारा संविधान भले हर किसी को अपने धर्म का स्वतंत्रतापूर्वक पालन करने और सभी को समान अधिकार देता है पर आज देश में भय का वातावरण है।

समझा जा सकता है कि यह पत्र पिछले दिनों धर्म संसद के नाम से हुए आयोजनों की पृष्ठभूमि में लिखा गया है। इन कथित धर्म संसदों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को गालियाँ दी गयीं और उनके हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन किया गया। इसके साथ ही एक समुदाय विशेष के जनसंहार का आह्वान किया गया। इससे पूरा देश स्तब्ध रह गया। देश से बाहर भी इस पर चिंता जतायी गयी कि भारत में यह सब क्या हो रहा है और भारत किस दिशा में जा रहा है। लेकिन भाजपा के मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री के कान पर जूँ नहीं रेंगी।

प्रधानमंत्री अब तक एक सोची-समझी खामोशी अख्तियार किये हुए हैं मानो उन्हें कुछ पता ही न हो। आईआईएम के छात्रों और प्राध्यापकों के खुले पत्र में इस पर अफसोस जताते हुए कहा गया है कि सहिष्णुता और विविधता की संस्कृति ही भारत को परिभाषित करती है, इसलिए इनकी रक्षा के लिए प्रधानमंत्री आगे आएँ। पत्र में कहा गया है कि हमारा संविधान सभी को गरिमा के साथ जीने का अधिकार देता है इसलिए किसी जाति, समुदाय के खिलाफ नफरत तथा हिंसा भड़काने वाले भाषण स्वीकार नहीं किये जा सकते। पत्र में प्रधानमंत्री से अनुरोध किया गया है कि ऐसे तत्त्वों के खिलाफ चुप्पी तोड़ें और कार्रवाई करें, वरना देश को इस सब का गंभीर नुकसान भुगतना होगा।

इससे पहले कई पूर्व सेनाध्यक्ष और बहुत से पूर्व आला नौकरशाह तथा बुद्धिजीवी भी इसी आशय के बयान दे चुके हैं। लेकिन प्रधानमंत्री चुप हैं तो चुप हैं!

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