20 जनवरी। दैनिक भास्कर में छपी एक खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश जस्टिस आर.एफ. नरीमन ने राजद्रोह कानून खत्म करने की वकालत की है। सरकार की आलोचना करनेवालों पर राजद्रोह कानून के तहत कार्रवाई पर चिंता जताते हुए जस्टिस नरीमन ने कहा, “यह समय राजद्रोह कानूनों को पूरी तरह खत्म करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अनुमति देने का है। दुर्भाग्य से हाल के दिनों में सरकार की आलोचना करनेवाले युवा, छात्र व स्टैंडअप कॉमेडियंस पर राजद्रोह कानून के तहत केस दर्ज किये गये। यह कानून औपनिवेशिक प्रवृत्ति का है। देश के संविधान में इसके लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।”
मुंबई के एक लॉ कॉलेज के वेबिनार को संबोधित करते हुए जस्टिस नरीमन ने कहा, एक ओर तो राजद्रोह कानून के तहत केस दर्ज किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ भड़काऊ भाषण देनेवालों से ठीक से निपटा नहीं जा रहा। कुछ लोग एक विशेष समूह के नरसंहार का आह्वान करते हैं लेकिन इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं होती। अधिकारी भी उदासीन हैं। दुर्भाग्य से सत्ता में उच्चस्तर पर बैठे लोग हेट स्पीच पर न केवल खामोश हैं बल्कि उसका लगभग समर्थन कर रहे हैं।
जस्टिस नरीमन ने अपने भाषण में यह सुझाव भी दिया कि संसद को हेट स्पीच के लिए न्यूनतम सजा का प्रावधान करना चाहिए। उन्होंने कहा, हालाँकि हेट स्पीच के आरोपी को तीन साल की सजा दी जा सकती है पर वास्तव में ऐसा होता नहीं है क्योंकि कोई न्यूनतम सजा तय नहीं है। जस्टिस नरीमन ने कहा कि अगर हम कानून का शासन मजबूत करना चाहते हैं तो संसद को न्यूनतम सजा के प्रावधान के लिए कानून लाना चाहिए।