— मुनीष कुमार —
वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा प्रस्तुत बजट पर मोदी सरकार स्वयं ही अपनी पीठ ठोंकने में लगी है। वित्तमंत्री द्वारा प्रस्तुत बजट का साइज पिछले वर्ष के बजट से 35.4 प्रतिशत बड़ा बताया जा रहा है।
कर्ज के जाल में भारतीय अर्थव्यवस्था
सरकार इस बजट (बजट 2022) में जो एक रुपया खर्च करेगी उसका सबसे बड़ा हिस्सा ब्याज की अदायगी पर खर्च होगा। सितम्बर 2021 में जारी आंकड़ों के अनुसार देश पर 593 अरब डॉलर (रुपयों में 42 लाख करोड़, यानी कि देश के कुल बजटीय खर्च से भी ज्यादा) से भी अधिक का विदेशी कर्ज है। पिछले दिनों राज्यसभा में वित्त राज्यमंत्री पंकज चौधरी ने बताया कि देश की सरकार पर कुल आंतरिक कर्ज की राशि 95,83,366 करोड़ रु का है। इस तरह देश पर कुल आंतरिक व विदेशी कर्ज मिलाकर 138 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक है। आज देश में प्रत्येक देशवासी 1 लाख रुपये से भी अधिक के कर्ज के बोझ के नीचे दबा है।
सरकार इस कर्ज की अदायगी देश के गरीबों का पेट काटकर कर रही है। वित्तमंत्री द्वारा पेश बजट (बजट 2022) के अनुसार कुल 39.44 लाख करोड़ रुपये के बजटीय खर्च में से 9.40 लाख करोड़ रुपये ब्याज के भुगतान में खर्च कर दिये जाएंगे। सरकार ने इस ब्याज के भुगतान व बजटीय घाटे की पूर्ति के लिए बजट में 16.61 लाख करोड़ रुपयों के नये कर्ज लेने का प्रावधान किया है। मतलब कर्ज चुकाने के लिए नया कर्ज लिया जाएगा। कर्ज को चुकाने के लिए नया कर्ज लेना भारतीय अर्थव्यवस्था की भयावह तस्वीर पेश करता है। भारत पर कुल देशी व विदेशी कर्ज मिलाकर कर्ज देश के कुल सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 60 प्रतिशत से भी अधिक पहुंच गया है। चाहे सरकार इसके लिए अपनी कितनी भी पीठ ठोंक ले।
साम्राज्यवादियों के निर्देश पर बन रही हैं नीतियॉं
इस बजट पर अंतरराष्ट्रीय साम्राज्यवादी संस्थाओं- विश्व व्यापार संगठन, विश्व बैंक व अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष- की स्पष्ट छाप है। इनका मूल मंत्र है सब्सिडी में कटौती, जनकल्याणकारी योजनाओं की समाप्ति, अर्थव्यवस्था से राज्य के नियंत्रण का खात्मा, देश में विदेशी पूंजीनिवेश और बहुराष्ट्रीय निगमों को व्यापार करने की खुली छूट। यही कारण है कि 39.4 लाख करोड़ रुपयों के इस बजट में भाजपा सरकार ने जन कल्याणकारी योजनाओं के खर्च में 170220 करोड़ रुपये की भारी कटौती की है। (देखें तालिका) इस बजट में रक्षा बजट में भारी बढ़ोत्तरी की है। सरकार ने 525166 रु. रक्षा मंत्रालय के लिए आवंटित किए हैं और शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कृषि आदि जरूरी मदों पर किये जानेवाले खर्च को एक बार पुनः हाशिए पर डाल दिया है।
किसानों की बर्बादी बढ़ानेवाला बजट
मोदी सरकार ने विगत नवंबर माह में किसान आंदोलन के दबाव में तीनों कृषि कानून तो वापस ले लिये हैं परन्तु बजट में सरकार ने किसानों को राहत देने की जगह उनके पेट पर लात मारने का ही काम किया है। पिछले वित्तवर्ष में सरकार ने उर्वरकों पर कुल 140122 करोड़ रुपये खर्च किये थे। जिसमें कम करके वर्तमान बजट में 105222 करोड़ रुपये कर दिया है। इसके अंतर्गत यूरिया सब्सिडी के मद में 75930 करोड़ रुपये में से 12708 करोड़ की कटौती कर, इस वर्ष मात्र 63222 करोड़ रुपये ही आवंटित किये गये हैं। पोषक तत्त्व सब्सिडी में भी 22192 करोड़ की कटौती कर इसके लिए मात्र 42000 करोड़ रुपये ही आवंटित किए गये हैं। फसल बीमा योजना के मद में भी पिछले वर्ष के 15989 करोड़ रुपये के मुकाबले 489 करोड़ रुपये घटाकर मात्र 15500 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। हरित क्रांति के मद में पिछले बजट में 8889 करोड़ रु. आवंटित किए गये थे जिसे इस बजट में बिल्कुल ही नदारद कर दिया गया है। फसल विज्ञान पर भी पिछले बजट में आवंटित 708 करोड़ रु के मुकाबले घटाकर मात्र 526 करोड़ रु ही आवंटित किए गये हैं।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के अंतर्गत भारतीय खाद्य निगम को दी जानेवाली सब्सिडी के मद में भी मोदी सरकार ने कुठाराघात करते हुए पिछले वर्ष के बजटीय खर्च 210928 करोड़ रुपये में 65009 करोड़ रुपयों की भारी कटौती करके इस मद में मात्र 145920 करोड़ रुपये आवंटित किये हैं। जिसका मतलब है कि सरकार किसानों की फसल जो एमएसपीपर खरीदती है, अब उसकी सरकारी खरीद में कमी की जाएगी।
गरीबों के पेट पर लात
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत खाद्य सहायता के मद में भी सरकार ने कमी कर दी है जिसका मतलब है सस्ते राशन में कटौती।
इस मद में सरकार ने पिछले बजट में किये गये 75290 करोड़ रुपयों के आवंटन के मुकाबले इसमें 14729 करोड़ रु. घटाकर इस मद में मात्र 60561 करोड़ रुपये ही आवंटित किये हैं। ग्रामीण विकास पर खर्च पिछले वर्ष के बजटीय खर्च 206946 करोड़ रुपयों के मुकाबले 655 करोड़ रुपये घटाकर 206293 करोड़ पर ही सीमित कर दिया गया है। मनरेगा पर सरकार ने वर्ष 2020-21 में 111170 करोड़ रुपये खर्च किये थे जिसे पिछले वित्तवर्ष में घटाकर 98 हजार करोड़ रु पर सीमित कर दिया गया था। वर्तमान बजट में इसे और अधिक घटाकर 73,000 करोड़ रुपये ही रखा गया है। मध्याह्न भोजन के मद में 10234 करोड़ रुपये पिछले बजट में खर्च का अनुमान बताया गया है। जो कि इस बजट में गायब है।
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के अंतर्गत अनुसूचित जातियों को विशेष केन्द्रीय सहायता के मद में सरकार ने वर्ष 2020-21 में 387 करोड़ रुपये आवंटित किये थे। जिसे पिछले और इस बजट में इसे शून्य कर दिया गया है।
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम के बजट को भी 2950 करोड़ रुपये से घटाकर 2500 करोड़ रुपये कर दिया गया है। रसोई गैस भी महंगी करने का पूरा इंतजाम भी इस बजट में कर दिया गया है। मोदी सरकार ने पहले कहा कि सिलेंडर बाजार मूल्य पर मिलेगा और सब्सिडी उपभोक्ताओं के बैंक खातों में ट्रांसफर की जाएगी। धीरे-धीरे गैस सिलेंडर पर दी जानेवाली सब्सिडी कम कर दी गयी है और अब ये लगभग नदारद हो चुकी है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में गैस सिलेंडर पर प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के मद में 23667 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे। जिसे घटाकर पिछले बजट में 12480 करोड़ रुपये कर दिया गया था परंतु खर्च मात्र 3400 करोड़ ही किये गये।
इस बार का बजटीय आवंटन ही मात्र 4000 करोड़ रुपये का है। देश में घरेलू गैस कनेक्शन की संख्या लगभग 27 करोड़ है। एक परिवार औसतन सालाना 10 सिलेंडर भी खर्च करेगा तो उसके हिस्से में मात्र डेढ़ रुपये प्रति सिलेंडर की सब्सिडी ही आएगी। गरीब परिवारों के एलपीजी कनेक्शन की राशि में भी 816 करोड़ रुपयों की कटौती कर दी गयी है।
शिक्षाक्षेत्र में विदेशियों को मनमानी की खुली छूट
शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर भी मोदी सरकार ने जनता के ऊपर बड़ा हमला किया है। शिक्षा पर सरकार ने 104278 करोड़ रुपये का तथा स्वास्थ्य पर 86606 करोड़ रुपये के बजट का आवंटन किया है। पिछले वर्ष शिक्षा पर 88002 करोड़ व स्वास्थ्य पर 85925 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। इस बार के बजट खर्च में की गयी 35 प्रतिशत धनराशि की वृद्धि की छाप इसमें कहीं नहीं है। शिक्षा के मद में नाममात्र की बढ़ोत्तरी की गयी है तथा शिक्षा के लिए नयी नियुक्ति व नये संस्थान खोलने की जगह 200 टीवी कार्यक्रमों के जरिये शिक्षित करने का शिगूफा छोड़ दिया गया है।
साम्राज्यवादियों-बहुराष्ट्रीय निगमों के साथ पूर्णतः वफादारी निभाते हुए वित्तमंत्री ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय निगमों को पूंजीनिवेश की खुली छूट दे दी है।
वित्तमंत्री ने अपने बजटीय भाषण में कहा कि जीआईएफटी शहरों में (गुजरात इंटरनेशनल फायनेंस टेक सिटी) में विदेशी विश्वविद्यालयों को वित्तीय प्रबंधन, फिनटेक, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित में अपने पाठ्यक्रम चलाने की अनुमति दी जाएगी तथा उन्होंने घोषणा की है कि इसमें चलनेवाले कोर्स आईएफएससी द्वारा चलाये जानेवाले पाठ्यक्रमों को छोड़कर ये घरेलू विनियमों से मुक्त होंगे। जिसका मतलब है कि जीआईएफटी में खुलनेवाले विदेशी शिक्षण संस्थान देश के कानूनों को मानने के लिए बाध्य नहीं होंगे और उन्हें पाठ्यक्रम निर्धारण व फीस वसूलने की खुली छूट होगी।
ये है मादी सरकार का मेक इन इंडिया जिसमें भारत के भीतर ही एक अलग इंडिया बसाया जा रहा है। स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली कायम रहेगी, स्वास्थ्य को लेकर सरकार का बजट आवंटन ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ से ज्यादा कुछ नहीं है। दुनिया के विकसित देश स्वास्थ्य में अपने जीडीपी का 10 प्रतिशत से भी अधिक खर्च करते हैं। कोरोना काल में देश के स्वास्थ्य ढांचे की जर्जरता देश के सामने आ चुकी है। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान देश के लोगों को अस्पताल में बेड, ऑक्सीजन व चिकित्सा किसी भी कीमत पर नहीं मिल पायी थी। परन्तु मोदी सरकार ने इससे भी सबक नहीं लिया है।
मोदी सरकार चाहती तो स्वास्थ्य के लिए 5 लाख करोड़ रुपये का बजटीय आवंटन कर देश के लोगों के लिए अस्पतालों में उपकरणों, चिकित्सकों का इंतजाम कर सकती थी परन्तु वित्तमंत्री ने ऐसा करने की जगह जनता को टेली मेडिसिन जैसा झुनझुना पकड़ा दिया है। कुल मिलाकर यह बजट कॉरपोरेट व साम्राज्यवादियों के लिए बनाया गया बजट है जो कि देश की 80 प्रतिशत जनता की दुख-तकलीफों में और अधिक इजाफा करेगा।
(workersunity.com से साभार)