8 फरवरी। मनरेगा ग्रामीण भारत में रोजगार मुहैया कराने की सबसे बड़ी योजना है। फिर यह देश की पहली रोजगार योजना है जिसमें रोजगार पाने की कानूनी गारंटी दी गयी है, अलबत्ता यह गारंटी साल में सौ दिनों की ही है। लेकिन यह गारंटी कमजोर पड़ती जा रही है। दैनिक भास्कर के 8 फरवरी के अंक में छपी एक खबर ग्रामीण विकास मंत्रालय के आँकड़ों के हवाले से बताती है कि वित्तवर्ष 2021-22 (जनवरी 2022 तक) में देश भर में कुल 1.89 करोड़ लोगों को मनरेगा के तहत काम माँगने पर भी नहीं मिल पाया। यह संख्या पंजीकरण करानेवालों का 16.3 फीसद है। यह औसत पिछले चार साल में सर्वाधिक है जब देश में ‘अमृत काल’ चल रहा है।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के मुताबिक मनरेगा के तहत काम न पानेवालों का सबसे ज्यादा औसत गुजरात, बिहार और मध्यप्रदेश में है। गुजरात में पिछले साल 25.45 लाख लोगों ने काम माँगा था, इनमें से 8.84 लाख (34.7 फीसद) को काम नहीं मिला।
यह भी गौरतलब है कि माँगने के बावजूद काम न मिलने का औसत साल-दर-साल बढ़ रहा है। मसलन, वित्तवर्ष 2018-19 में मनरेगा के तहत काम से वंचित रह जानेवालों की संख्या 1.34 करोड़ थी, जो कि 2019-20 में 1.45 करोड़ और 2020-21 में 2.14 करोड़ हो गयी।
मनरेगा का बजट इस बार सरकार ने 25 फीसद घटा दिया है। जाहिर है, मनरेगा के तहत काम न पानेवालों की तादाद और भी बढ़ेगी, तथा ग्रामीण भारत में बेरोजगारी और भी विकट हो जाएगी।