उस्ताद और शागिर्द की खूबसूरत कहानी है लपूझन्ना

0


— हिमांशु जोशी —

किताब का आवरण चित्र अंग्रेजी की कहावत डोंट जज ए बुक बाई इट्स कवरको झुठला देता है, यह किताब के प्रति एक उमंग सी जगा देता है, इस उमंग को पहचानने की कोशिश करो तो यह वही जान पड़ती है जो बचपन के दिनों दिनभर नंगे पैर क्रिकेट खेलते, एल्युमिनियम के तार वाली गाड़ी चलाते महसूस होती थी। पिछले आवरण में लेखक के फोटो के साथ उनका परिचय दिया गया है, जो जरूरी था।

किताब की शुरुआत संजय चतुर्वेदी के लिखे पत्र से होती है। जिसमें सादिक, मख्लूक जैसे अरबी शब्दों का इस्तेमाल किया गया है, पत्र से पता चलता है कि क़िताब उत्तराखंड के छोटे से कस्बे रामनगर की पृष्ठभूमि पर लिखी गयी है।

इसके बाद मंज़रों में था जो शहर बसाकिस्सा शुरू होता है, लेखक ने देशज और विदेशज शब्दों के मिश्रण का प्रयोग कर कमाल लिखा है।

अशोक पाण्डे

लेखक पाठकों को अपने बचपन की कहानी बताते  किताब आगे बढ़ाते हैं, बाल मन के अंदर दूसरे धर्म और दूसरे लिंग के प्रति उमड़ते सवालों को जानते आपका मन किताब में लगना शुरू हो जाएगा।

बागड़ बिल्ले का टौंचाजैसा शीर्षक पढ़ आपको बच्चों के खुराफाती दिमाग की याद आने लगेगी तो पदायाशब्द आपकी भूली-बिसरी डिक्शनरी में फिर जुड़ जाएगा। लेखक पाठकों को क़िताब पढ़ाते उनके दिमाग और ज़ुबान के साथ खेलते भी दिखते हैं।

एक तरफ़ अपने दोस्त लफत्तू की तुतलाती ज़ुबान से निकला पैतै काटो अंकलजी औल अपना काम कलौ वाक्य हूबहू लिख लेखक पाठकों को तुतला बनाते हैं तो दूसरी तरफ़ बागड़बिल्ले की आँख का वर्णन जिस तरह किया गया है वह ऐसी आँखों की तस्वीर सचमुच मन में बना देता है।रामनगर की भौगोलिक स्थिति का खाका भी बेहतरीन तरीके से खींचा गया है।

इंटरनेट युग में जब हम अपने आसपड़ोस में रहनेवाले लोगों को जानते तक नही हैं। तब लेखक के उनके बचपन में पड़ोसियों से सम्बंध के बारे में पढ़ना, घर से दूर तक की जानकारी रखना, रामलीला जाना, क्रिकेट खेलना एक परीकथा सा लगता है।

लेखक अपने जीवन के किस्सों को पाठ का रूप देते पाठकों को किताब से जोड़े रखते हैं। चोट्टे लफत्तूशब्द के साथ बौने की साइकिल और उसकी जिंदगी की कहानी आपको हँसा देगी।

ऐसा नही है कि किताब पाठकों को सिर्फ़ हँसाने भर के लिए ही लिखी गयी है टांडा फिटबाल किलब और पेले का बड़ा भाईखिलाड़ियों की बदहाली बताने के साथ शुरू होता है और मौका न मिलनेवाले खिलाड़ियों की आँखों देखी दास्तान सुनाने के साथ खत्म होता है।

नौ फुट की खाट और ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रपति का आगमनपढ़ आपका मन रामनगर घूम आने को करने लगेगा। क्रिकेट के बारे में लिखा पढ़ आपको हाल ही में आयी फिल्म ‘83’ भी याद आ जाएगी। ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रपति के आगमन का दृश्य तो पाठकों को उसी समय में वापस ले जाएगा। अब तक पाठक किताब की देशज-विदेशज भाषा में रम जाएंगे।

लफत्तू और तिवारी मास्साब का डुओ आपको अपने स्कूली दिन याद दिलाने के साथ हँसाते हुए लोटपोट भी कर देगा। लफत्तू इस किताब का जॉनी लीवर है और उसके महिमामंडन में लिखी यह पंक्ति इसे साबित भी करती है लफत्तू तब तक महाचोर के रूप में इस कदर विख्यात हो चुका था कि अपने घर से उसे एक अखबार तक लाने नहीं दिया जाता था। जब वह एक बार ड्रेस पहनकर रेडी हो जाता तो उसके पिताजी उसे दुबारा पूरी तरह नंगा करते और बस्ता खाली करवाकर जमातलाशी लेते थे।

ब्रेस ब्रेस, ब्रेसू टी थानी जो दल गया वो मल गयामें साईंबाबा की अफवाह और मधुबाला से आशिकी करवा लेखक द्वारा बाल मन के एक अलग खिंचाव की तरफ चमक मारी गयी है। किताब में बाल मन पर फिल्मों से पड़नेवाले प्रभाव को बड़े प्रभावी तरीके से पाठकों को समझाया गया है।

और की अदला बदली वाले खेल में लेखक ने अपनी लेखन कला के झंडे गड़वा दिए हैं। किताब में आपको कम सुनाई देने वाला गुरुपुत्रशब्द भी पढ़ने को मिलता है।

शीर्षक फुच्ची कप्तान की आसिकीपढ़ने से विलुप्त होती लवलैटर प्रथा फ़िर याद आती है तो लफत्तू का अपने पापा को बल्ब को भल्ब कैते हो आप! क्या खाक इंग्लित पलाओगे पापा कहना आपको भी किताब का हिस्सा बनाता है। ये सब किताब के वो हिस्से हैं जो हिंदी किताबों को पढ़ने का ट्रेंड फिर शुरू करा सकते हैं, ‘झुकेगा नहीकहने वाले पुष्पा की तरह लफत्तू भी देश का जाना-माना पात्र बनने की क्षमता रखता है।

गोबर डॉक्टर, जगुआ पौंक जैसे नाम दिए जाने के पीछे की कहानी भी लेखक द्वारा विस्तार से लिखी गयी है। ‘रामनगर का कलापारखी समाज पूर्णमुदित हो जाताजैसी पंक्ति लेखक की हिंदी में मज़बूत पकड़ की तरफ इशारा करती है।

ज्याउल, उरस की मूफल्ली, मोर्रम और ब्रिच्छारौपड़पढ़ते पता चलता है कि बच्चों के मन में कैसे बचपन में ही हिन्दू-मुसलमान के बीच दूरी के बीज उगा दिए जाते हैं। आगे पढ़ते किताब वो दिन भी याद दिलाती है जब अमीर-गरीब के बच्चे साथ ही पढ़ा करते थे।

लफत्तू द्वारा भिखारी को बैरिंगगाड़ी में बैठा घुमाने वाला किस्सा खूब हंसाएगा, तो कुछ समय बाद किताब पाठकों को इमोशनल करना शुरू हो जाएगी। अब एक बेहतरीन कहानी अपने अंत की तरफ़ बढ़ती दिखती है।नसीम अंजुम की एंट्री किसी अभिनेत्री से कम नहीं है।

नसबंदी और लकड़ी का रैककी शुरुआत मुँह में पानी ले आती है। चीनी की सब्ज़ी का किस्सा पाठकों को किताब के आख़िरी पन्नों में भी फिर से गुदगुदाता है।

पृष्ठ 216 में किताब का सार है, क़िताब खत्म करने पर आपका मन जरूर करेगा कि कभी लेखक से मिल उनसे लफत्तू, बागड़बिल्ले के बारे में ढेर सारे सवाल पूछ लिए जाएं और बमपकौड़ा खाने लेखक द्वारा बनाए गए कल्पनाओं के आकाश में पड़े खुले नक्शे अनुसार रामनगर पहुँचा जाए।

लपूझन्ना – अशोक पाण्डे; प्रकाशक- हिंदी युग्म; मूल्य 199 रु.

Leave a Comment