बॅंधुआ मजदूरी में धकेले जा रहे म.प्र. के युवा आदिवासी

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18 फरवरी। गहराते कृषि संकट, बेरोजगारी और महंगाई के कारण अपना गुजारा निकालने के लिए म.प्र. के आदिवासियों को शक्कर कारखानों के ठेकेदारो से भारी कर्ज लेकर, कर्ज को चुकाने के लिए महाराष्ट्र और कर्नाटक में बंधुआ मजदूर बनकर काम करना पड़ रहा है । दशहरा के बाद गन्ने के खेतों में इन आदिवासी परिवारों को पहुंचाया जाता है, जहां कभी 13 घंटे तो कभी 16 से 20 घंटों तक भी काम करवाया जाता है। बहुत छोटे बच्चों के अलावा सभी काम करते हैं। इस कमरतोड़ मेहनत के लिए उन्हें न कोई मजदूरी दी जाती है और न कोई हिसाब, उन्हें बस तब तक काम करना है, जब तक सेठ न तय करे कि उनका कर्ज चुकाया जा चुका है।

18 जनवरी से लगातार आदिवासी बहुल पाटी ब्लॉक के थाने में कर्नाटक और महाराष्ट्र में फंसे मजदूरों और उनके परिजनों द्वारा शिकायतें की गयी थीं कि इन मजदूरों को बिना कोई हिसाब दिये काम करवाया जा रहा है, दिन-रात काम करवाया जा रहा है और जब मजदूर हिसाब मांगते हैं या वापस जाने की बात करते हैं तो उन्हें धमकाया जा रहा है। यहाँ तक कि बेलगावी (कर्नाटक) के ‘निरानी शुगर्स’ नामक फैक्ट्री में हिसाब करने गए तीन मजदूरों को बंधक बनाया गया और प्रशासन से लगातार कार्रवाई की मांग पर ही 6 दिन बाद उन्हें छोड़ा गया। बेलगावी, बागलकोट, कोल्हापुर और सातारा में मजदूरों के फोन छीने गए, ताकि वे किसी को अपनी परिस्थिति के बारे में बता न सकें। बेलगावी में मजदूरों द्वारा कानूनी कार्रवाई नहीं करने के लिए दबाव बनाने की खातिर उन्हें गाँव से बाहर कर दिया गया, सातारा में ठेकेदारों ने मजदूरों को घर जाने से रोकने के लिए भूइंज थाना पर हंगामा किया था। लगातार प्रयासों के बाद, शनिवार 12 फरवरी तक, जागृत आदिवासी दलित संगठन तथा बेलगावी और पुणे के सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रयास और बड़वानी पुलिस के सक्रिय सहयोग से शिकायत करनेवाले लगभग 250 मजदूर ग्राम शिवनी, उबड़गड़, कंडरा, सेमली, बोरखेड़ी में अपने घर लौट गए हैं – परंतु अभी कानूनी कार्रवाई बाकी है ।

बंधुआ मजदूरी, बेगारी : सभी मजदूरों ने एक जैसे अनुभव बयान किए- ठेकेदार एक नौजवान आदिवासी जोड़ी को गर्मियों मे लगभग 40,000 रु के कर्ज देते हैं और बताते हैं कि दशहरा से उन्हें तीन माह काम करना पड़ेगा और कर्ज चुका जाने के बाद वे तगड़ी रकम कमा पाएंगे। परंतु वहाँ पहुँचने पर उन्हें कोई हिसाब दिये बिना, भोर से शाम के लगभग 5–7 बजे तक गन्ना कटाई में लगाया जाता है जिसके बाद वे देर रात तक, कभी 1 बजे रात तक भी, कटे गन्ने को गाड़ियों पर भरते हैं। कई बार रोटी खाने के लिए भी समय नहीं मिलता और न ही उनकी नींद पूरी हो पाती है। गर्भवती और नवजात शिशु वाली महिलाएं और बच्चे भी काम करते हैं। तीन माह होने पर जब मजदूर हिसाब माँगते हैं, उन्हें डराया-धमकाया जाता है और बताया जाता है कि जब तक सेठ चाहे, उन्हें काम करना पड़ेगा। कानून के मुताबिक, यह बंधुआ मजदूरी है। पर एक भी मामले में बड़वानी की पुलिस या प्रशासन ने कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की है ।

यौन शोषण : बेलगावी में ग्राम सेमलकोट (जिला खरगोन) के मजदूरों से न सिर्फ बंधुआ मजदूरी करवाया गया, बल्कि 3 महिलाओं और 3 नाबालिग लड़कियों का ठेकेदारों द्वारा कई बार यौन शोषण एवं बलात्कार किया गया। किसी तरह अपनी जान बचाकर लौटे मजदूरों की शिकायतों पर हफ्तों तक खरगोन पुलिस द्वारा एफ़आईआर नहीं दर्ज की गयी । आखिरकार, जब मामला दर्ज किया गया, तो बंधुआ मजदूरी एवं अत्याचार अधिनियम के अंतर्गत धाराएँ नहीं लगायी गयीं। इसी तरह, बड़वानी लौट चुके सभी मजदूरों द्वारा उनकी बकाया मजदूरी दिलवाने, कार्रवाई करने और उनसे बेगारी करवाने वाले ठेकेदारों तथा फैक्टरी मालिकों पर कार्रवाई की मांग शासन-प्रशासन से की जा रही है, जिस पर शासन-प्रशासन मौन एवं निष्क्रिय है।

(संघर्ष संवाद से साभार)

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