22 फ़रवरी। झारखंड में पेसा कानून (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) 1996 पूरी तरह लागू होने के बाद भी सभी अनुसूचित जिलों में पंचायत चुनाव पूर्ववत कराए जाएंगे। पेसा कानून की नियमावली अभी तक नहीं बनी है। इसे लेकर लोगों ने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। नियमावली बनने और इसे प्रभावी बनाने के बाद भी पंचायत राज व्यवस्था लागू होगी। झारखंड निर्माण के बाद अब तक दो बार पंचायत चुनाव कराया जा चुका है।
तीसरी बार पंचायत चुनाव कराने की तैयारी पूरी कर ली गई है। इस वर्ष कभी भी चुनाव कराया जाएगा। इस बीच लंबे समय से पेसा कानून के तहत नियमावली बनाने की मांग की जा रही है। साथ ही अनुसूचित क्षेत्रों में ग्रामसभा को और ज्यादा प्रभावी बनाने तथा इन क्षेत्रों में पंचायत चुनाव नहीं कराने की भी मांगें उठती रही हैं। संविधान के 73वें संशोधन तथा पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार) अधिनियम 1996 ने एक नया द्वार खोला है।
इसने कुछ बातों को अनिवार्य कर दिया है। जैसे ग्रामसभा को मान्यता, मध्य स्तरीय पंचायत तथा जिला पंचायत का चुनाव, अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए, पंचायत विशेष में उनकी जनसंख्या के आधार पर और महिलाओं के लिए (सभी वर्ग की महिलाएं शामिल) कम-से-कम एक तिहाई और अधिकतम 50 प्रतिशत पदों पर आरक्षण, ग्राम पंचायत, मध्यवर्ती पंचायत और जिला पंचायत के लिए प्रत्यक्ष चुनाव का प्रावधान किया गया है।
पारंपरिक व्यवस्था
झारखंड के कई जिलों में जो संविधान की पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आता है, उनमें पांरपरिक व्यवस्था अंग्रेजों के समय से पहले से है।कोल्हान में मानकी-मुंडा, संतालपरगना में मांझी-परगनैत तथा खूंटी, सिमडेगा, गुमला, लोहरदगा और रांची में मुंडरी खुंटकटी और भुइंहरी व्यवस्था लागू है।
अनुसूचित क्षेत्रों में भी तीन स्तर की पंचायत राज व्यवस्था
नए कानून में ग्राम सभा को ही प्रधानता मिली है। दूसरे स्तर की पंचायतों के मामले में संविधान के भाग-9 की व्यवस्था को ही लागू किया गया है। इस तरह अनुसूचित क्षेत्रों भी तीन स्तर की पंचायतें होंगी। ग्राम पंचायत, मध्य स्तर की पंचायत और जिला पंचायत।
1. ग्राम पंचायत: प्रत्येक गांव के लिए एक ग्रामसभा की भी व्यवस्था है और ग्राम सभा एक तरह से सर्वाधिकार संपन्न है। इसलिए ग्राम पंचायत का अलग से संस्थागत रूप से मान्य होने के बावजूद यह पूरी तरह से ग्रामसभा के निर्देशन में काम करेंगी। उसके अपने कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं हो सकते।
2. मध्यवर्ती पंचायत: इस कानून में मध्यवर्ती पंचायतों के बारे में कुछ भी नहीं कहा गया है। इसलिए उनकी स्थिति सामान्य क्षेत्रों के मध्यवर्ती पंचायतों जैसी होगी।
3. जिला पंचायत: कानून में जिला पंचायतों को तत्काल किसी भी तरह के विशेष अधिकार देने की बात नहीं कही गई है। अतः अनुसूचित क्षेत्रों की जिला पंचायतें राज्य की दूसरे इलाकों की पंचायतों की तरह गठित की जाती है।
वरीय अधिवक्ता व संविधान विशेषज्ञ रश्मि कात्यायन ने कहा, ‘पेसा संविधान का हिस्सा है। संविधान के 73वें संशोधन में पंचायत व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा दिया है। 26 दिसंबर 1996 से पेसा लागू है। राज्य में दो बार पंचायत चुनाव हो चुका है। अभी तक इसमें कोई बाधा नहीं आयी है। अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत चुनाव कराने का इसलिए विरोध है कि पेसा नियमावली यहां के आदिवासियों की रीति-रिवाजों के आधार पर बनाकर, उसे अब तक क्रियान्वित नहीं किया गया है। झारखंड में पेसा कानून राजनीतिक कारणों से लागू नहीं हो पा रहा है। हाईकोर्ट ने नियमावली नहीं होने का स्पष्टीकरण मांगा है
(हिंदुस्तान से साभार)