25 फ़रवरी। जलवायु परिवर्तन से होने वाली आपदाओं ने दुनियाभर में एक बड़ी आबादी के सामने अभूतपूर्व पलायन अथवा विस्थापन का संकट खड़ा कर दिया है।
2020 में कोविड-19 महामारी ने मनुष्यों को कुछ ऐसा करने पर मजबूर किया जो सैकड़ों वर्षों में कभी अनुभव नहीं किया गया। उन्होंने आवागमन बंद कर दिया। करीब 100 देशों ने शटडाउन और लॉकडाउन का सहारा लिया। इससे दुनिया की आधी से अधिक आबादी की गतिशीलता को प्रतिबंधित कर दिया गया। यह अभूतपूर्व था क्योंकि गतिशीलता मौलिक गतिविधि रही है जो दुनिया और उसकी अर्थव्यवस्था को संचालित करती है। उम्मीद की जा रही थी कि इस अभूतपूर्व स्थिति ने पलायन और आव्रजन को भी रोक दिया होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। संक्रमण के डर से शुरू हुए प्रतिबंधों के बीच ऐसी अन्य घटनाएं भी हुईं जिन्होंने लोगों को पलायन पर मजबूर किया। यहां तक कि उन्हें विस्थापित भी कर दिया।
हर दूसरे साल संयुक्त राष्ट्र के इंटरनेशनल ऑर्गनाइजेशन फॉर माइग्रेशन (आईओएम) द्वारा प्रकाशित वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2022 में कहा गया है, “आपदाओं, संघर्षों और हिंसा के कारण आंतरिक विस्थापन में तब नाटकीय वृद्धि हुई है, जब वैश्विक गतिशीलता में कोविड-19 के कारण ठहराव था। 2020 में आपदाओं, संघर्षों और हिंसा के कारण विस्थापित लोगों की संख्या 2019 में 31.5 मिलियन से बढ़कर 40.5 मिलियन हो गई। आईओएम के निदेशक जनरल एंटोनियो विटोरिनो ने इस स्थिति पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए इसे “मानव इतिहास में पहले नहीं देखा गया विरोधाभास” बताया। विटोरिनो ने कहा, “जहां अरबों लोगों को कोविड-19 ने प्रभावी ढंग से जमीन पर थामे रखा, वहीं दसियों मिलियन लोग अपने ही देशों के भीतर विस्थापित हो गए हैं।” यह विरोधाभास इस उभरते हुए तथ्य को और प्रबल करता है कि आपदाएं आंतरिक विस्थापन की प्रमुख वजह बनकर उभर रही हैं। हाल के वर्षों में आपदाएं विस्थापन के ऐतिहासिक कारणों अर्थात संघर्ष और हिंसा से अधिक लोगों को विस्थापित कर रही हैं। यह विस्थापन मुख्यत: जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है जिसके परिणामस्वरूप लगातार मौसम से संबंधित आपदाएं आती हैं। इन आपदाओं से विस्थापित होने वाले लोगों को लोकप्रिय भाषा में “जलवायु शरणार्थी” कहा जाता है।
जिनेवा स्थित एक गैर-सरकारी संगठन इंटरनल डिस्प्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) ने 2018 में आपदाओं से विस्थापित लोगों के आंकड़ों का संकलन शुरू किया था। ऐसे लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है। उस साल के अंत तक आपदाओं से विस्थापित लोगों का आंकड़ा 1.6 मिलियन था (देखें, विस्थापन की टीस,)। ये लोग उस समय अपने घर से दूर शिविरों में रह रहे थे। वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2020 ने प्रवासन में प्राकृतिक आपदाओं की भूमिका स्थापित की थी। रिपोर्ट में कहा गया था, “संघर्ष और हिंसा से नए विस्थापित लोगों की तुलना में किसी भी वर्ष में आपदाओं से अधिक लोग विस्थापित होते हैं और अधिक देश आपदा विस्थापन से प्रभावित हो रहे हैं।” रिपोर्ट का ताजा संस्करण इस स्थिति को पुन: दोहराता है। वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार, “2020 में 145 देशों और क्षेत्रों में आपदाओं से 30.7 मिलियन नए विस्थान हुए हैं।” इसके अलावा आपदाओं, संघर्षों और हिंसा के कारण कुल आंतरिक विस्थापन 2019 की तुलना में बढ़ा है। रिपोर्ट में आईडीएमसी के आंकड़ों का हवाला दिया गया है। नए विस्थापन के नवीनतम आंकड़े में उन लोगों को शामिल किया गया है जो अचानक शुरू होने वाली आपदाओं के कारण और संबंधित देश के भीतर विस्थापित हुए हैं। आईडीएमसी के मुताबिक, धीरे-धीरे होने वाली आपदाओं और अंतरदेशीय विस्थापन के आंकड़े इसमें शामिल नहीं है, इसलिए आंकड़े अभी पूर्ण नहीं हैं।
दरअसल, ज्यादातर नए विस्थापन जलवायु से जुड़ी घटनाओं के कारण होते हैं। 2020 में तूफानों ने 14.6 मिलियन और बाढ़ ने 14.1 मिलियन लोगों को विस्थापित किया। अत्यधिक तापमान ने करीब 46 हजार और सूखे ने 32 हजार लोगों का विस्थापन किया। आईओएम की रिपोर्ट में कहा गया है, “2008-2020 की अवधि में बाढ़ के कारण 2.4 मिलियन से अधिक और चरम तापमान के चलते 1.1 मिलियन नए लोगों का विस्थापन हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार, “किसी भी वर्ष में संघर्ष और हिंसा से नए विस्थापितों की तुलना में आपदाओं से अधिक लोग विस्थापित हो रहे हैं।”
नए आंतरिक विस्थापन का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 2020 में हुए कुल विस्थापन में 76 प्रतिशत योगदान आपदाओं का रहा। करीब 42 देशों ने संघर्षों और हिंसा के कारण नए विस्थापन की सूचना दी, जबकि 144 देशों ने आपदाओं के कारण विस्थापन की सूचना दी। दिसंबर 2019 में प्रकाशित वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट में पाया गया, “2018 में 148 देशों में कुल 28 मिलियन आंतरिक विस्थापन हुआ। इनमें से 61 प्रतिशत विस्थापन आपदाओं के कारण था।” वर्ल्ड माइग्रेशन रिपोर्ट 2022 के अनुसार, फिलीपींस ने 2020 में सबसे अधिक लगभग 5.1 मिलियन नए लोगों का विस्थापन देखा। एशिया ने प्राकृतिक आपदाओं के कारण सबसे अधिक विस्थापन की सूचना दी। चीन ने 2020 के अंत तक 5 मिलियन नए आपदा विस्थापन की सूचना दी। भारत में यह आंकड़ा 4 मिलियन के आसपास था।
जलवायु परिवर्तन से संबंधित आपदाओं के कारण प्रवासन या विस्थापन को तेजी से राजनीतिक स्वीकार्यता प्राप्त हो रही है। इस दिशा में हो रहे अनुसंधान भी इनके बीच सीधा संबंध स्थापित करते हैं। फरवरी 2021 में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने शरणार्थियों को फिर से बसाने के लिए “रिबिल्डिंग एंड एनहेंसिंग प्रोग्राम टु रिसेटल रिफ्यूजी एंड प्लानिंग फॉर द इम्पैक्ट ऑफ द क्लाइमेज चेंज ऑन माइग्रेशन” नामक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए। इस आदेश में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को निर्देश दिया गया है कि जलवायु परिवर्तन और पलायन पर इसके प्रभाव पर रिपोर्ट तैयार करें। इससे पहले शरणार्थियों पर संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त ने कहा था कि 2008 से 2016 के बीच अचानक आने वाली आपदाओं के फलस्वरूप हर साल औसतन 21.5 मिलियन लोग विस्थापित हो रहे हैं। साथ ही इसके धीमे प्रभाव के कारण और हजारों लोग इसके शिकार हैं। विश्व बैंक ने सितंबर 2021 में जारी नवीनतम ग्राउंडवेल रिपोर्ट में कहा था कि जलवायु परिवर्तन दुनियाभर के छह क्षेत्रों में करीब 216 मिलियन लोगों को 2050 तक अपने ही देशों में बेघर कर सकता है।
(डाउन टू अर्थ से साभार)