8 मार्च। एक तरह जहां दुनिया भर में गरीबी घट रही है तो वहीं दूसरी तरफ भारत में गरीबी रिकार्डतोड़ बढ़ रही है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कोरोना वायरस संक्रमण ने केवल साल 2020 के दौरान 23 करोड़ भारतीयों को गरीबी में धकेल दिया। इसकी सबसे ज्यादा मार युवाओं और महिलाओं पर पड़ी वहीं कोरोना वायरस की आने वाली तीसरी लहर ने संकट को पहले से कहीं ज्यादा बढ़ा दिया है। बेंगलुरु की अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2020 से भारत में लगाए गए सख्त लॉकडाउन ने करीब 10 करोड़ लोगों से रोजगार छीन लिया। इनमें 15 फीसदी को साल खत्म होने तक काम नहीं मिला। महिलाओं पर इसका बहुत बुरा असर पड़ा। करीब 47 फीसदी महिलाएं पाबंदियां के खत्म होने के बाद भी रोजगार हासिल नहीं कर पाईं।
यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में उन लोगों को गरीब माना गया है, जिनकी दैनिक आमदनी 375 रुपये से कम है। इसमें कहा गया है कि सबकी आमदनी घटी है, लेकिन महामारी का प्रकोप गरीबों पर सबसे ज्यादा पड़ा है। एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थ्या कोविड-19 के पहले से ही सुस्ती के दौर से गुजर रही थी, लेकिन महामारी ने इसे और धीमा कर दिया। एक अनुमान था कि पिछले साल 5 करोड़ लोग गरीबी रेखा से ऊपर उठ जाते, लेकिन इसके बजाय 20 फीसदी परिवारों की आमदनी 2020-21 में पूरी तरह खत्म हो गई। हालात कितने बदतर हो गए इसका अनुमान एक अध्ययन में शामिल 20 फीसदी लोगों से लगाया जा सकता है जिन्होंने बताया कि 1 साल बाद भी उनके खाने-पीने में सुधार नहीं हुआ है।
(MN news से साभार)