पुश्तैनी गाँव के लोग
वहाँ वे किसान हैं जो सोचते हैं
अब मज़दूरी करना कहीं बेहतर है
जबकि मानसून भी ठीक–ठाक ही है
पार पाने के लिए उनके बच्चों में से कोई
दो मील दूर सड़क किनारे
प्रधानमंत्री योजना में दुकान खोलेगा
बैंक ब्याज और फ़िल्मी पोस्टरों से
दुकान भर जाएगी धीरे-धीरे
कोई किसी अपराध के बारे में सोचेगा
इन हालात में यह बहुत कठिन है
लेकिन मुमकिन है वह कुछ अंजाम दे ही दे
पुराने बाशिंदों में से कोई न कोई
कभी कभार शहर की मंडी में मिलता है
सामने पड़ने पर कहता है तुम्हें सब याद करते हैं
कभी गाँव आओ
अब तो जीप भी चलने लगी है
तुम्हारा घर गिर चुका है लेकिन हम लोग हैं
मैं उनसे कुछ नहीं कह पाता
यह भी कि घर चलो
कम से कम चाय पीकर जाओ
कह भी दूँ तो वे चलेंगे नहीं
एक, दूरी बहुत है और शाम से पहले उन्हें लौटना है
दूसरे, वे जानते हैं कि शहर में
उनका कोई घर हो नहीं सकता।
2. ज़िलाधीश कार्यालय परिसर में
घर-गाँव छोड़े हुए चार दिन
अहाते के पेड़ के नीचे बैठा है हलवाहा
घरवाली ने रखी थीं जितनी भी जुवार की रोटियाँ
हो चुकी हैं ख़त्म
नाज़िर कहता है अभी रुको दो दिन और!
बाबू माँगता है कलेक्टर की नाक के नीचे
दो सौ रुपये की रिश्वत
सारे हाकिम रोज़ आते-जाते हैं पेट हिलाते
हँसते भूखे असहाय हलवाहे के सामने
उधर सरपंच का लड़का दुनाली टाँगकर
हर किसी के खेत में चरने देता है अपने बैल
तलुओं में काँटे लेकर जोतता आया है
वह खेत और किसी के
जिस धरती पर सोता रहा वह अब तक
उतनी धरती भी उसकी नहीं
सरकारी आकाश के नीचे भूखा लेटा हलवाहा
याद करता है अपने घर पर बँधी गाय
जो नहीं देती दूध और होगी भूखी
उसके बच्चे उजड़ रहे जंगल में
ढूँढ़ रहे होंगे करौंदे
चार दिन से चकरघिन्नी हो रहा हलवाहा
अब लेटा है अशक्त।