16 मार्च। जहाँ दुनियाभर के कुछ देशों में बने जेलों के कर्मचारी इसलिए बेरोजगार हो रहे हैं क्योंकि वहां की जेलों में एक भी कैदी नहीं है। यहाँ तक कि छोटे-मोटे अपराधी भी नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में अन्य देशों से कैदियों को खाली पड़े जेलों में लाया जा रहा है ताकि जेल कर्मचारियों को वेतन दिया जा सके। जबकि, भारत की जेलों में क्षमता से ज्यादा कैदी भरे हैं। गौरतलब है कि भारत की जेलों में कैदियों की संख्या बढ़ रही है और उनकी जरूरतें पूरा करने में मुश्किल हो रही है। जेलों में भीड़ कम करने के लिए न्यायिक प्रक्रिया में नए सुधार लागू करने को लेकर चर्चा तेज हो गई है। भारत की जेलों में बढ़ती भीड़ को देखते हुए, जानकार न्यायिक प्रक्रिया में नए सुधारों की मांग कर रहे हैं, ताकि मुकदमों को निपटाने में लगने वाले समय को कम किया जा सके। इससे जेल में रहने वाले कैदियों की संख्या घट सकती है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने हाल में ‘जेल सांख्यिकी’ रिपोर्ट जारी किया है। एनसीआरबी के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, भारत की जेलों में बंद हर चार में से तीन कैदी ऐसे हैं, जिन्हें विचाराधीन कैदी के तौर पर जाना जाता है। देश के जिला जेलों में औसतन 136 फीसद की दर से कैदी रह रहे है।एक सौ कैदियों के रहने की जगह पर 136 कैदी रह रहे हैं। फिलहाल, भारत के 410 जिला जेलों में 4,88,500 से ज्यादा कैदी बंद हैं।
एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2019 के मुकाबले 2020 में दोषी कैदियों की संख्या में 22 फीसद की कमी देखी गई है, लेकिन विचाराधीन कैदियों की संख्या बढ़ी है। दिसंबर में ‘कामनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव’ (सीएचआरआइ) की रिपोर्ट आई, जिसमें कहा गया कि बीते दो साल में जेल में रहने वालों की संख्या में 23 फीसद की वृद्धि हुई है। कोरोना महामारी के दौरान नौ लाख से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया। नतीजा ये हुआ कि जेल में रह रहे कैदियों की औसत दर 115 फीसद से बढ़कर 133 फीसद हो गई। सीएचआरआइ के जेल सुधार कार्यक्रम की प्रमुख मधुरिमा धानुका के मुताबिक, जेल में बंद कैदियों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। पिछले पांच साल में मुकदमे के नतीजे के इंतजार में जेल में बिताया जाने वाला उनका समय भी बढ़ गया है। वर्ष 2020 में जेल में बंद कैदियों में 20 हजार से ज्यादा महिलाएं थीं, जिनमें से 1,427 महिलाओं के साथ उनके बच्चे भी थे।
वर्ष 2020 में कोरोना महामारी की वजह से देशव्यापी पूर्णबंदी की घोषणा के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने जेलों की भीड़ को कम करने के उपाय सुझाने के लिए हर राज्य में समितियों का गठन करने का निर्देश दिया था। तब कई कैदियों को अस्थायी रूप से रिहा किया गया, लेकिन एक साल के भीतर उन्हें फिर से जेल में बंद कर दिया गया। विशेषज्ञों का कहना है कि अदालतों को जमानत की प्रक्रिया को आसान बनाने के नए मापदंड निर्धारित करने के लिए विशेष कदम उठाना चाहिए, खासकर उन मामलों में जहां मुकदमे लंबे समय तक चलते हैं और आरोपी वर्षों से जेल में हैं।
जानकारों के मुताबिक, सुनवाई में लगने वाला समय कम किया जाना चाहिए। फिलहाल, देश में ऐसा कोई तंत्र नहीं, जिसके जरिए कैदियों की बात सुनी जाए। तकनीकी तौर पर, जेल में बंद कैदी इस बात के हकदार हैं कि उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक सम्मान और अधिकार मिले। भारतीय जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों में से 70 फीसद से अधिक कैदी हाशिए पर मौजूद वर्ग, जाति, धर्म और लिंग से हैं।
दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के इलाके में सबसे ज्यादा विचाराधीन कैदियों की संख्या है। इसके बाद बिहार, पंजाब, ओड़ीशा और महाराष्ट्र का स्थान है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ ला एंड गवर्नेंस की एसोसिएट प्रोफेसर प्रतीक्षा बक्शी के मुताबिक, वर्ष 2020 में हिरासत में होने वाली मौतों की दर में सात फीसद की वृद्धि हुई है।
जेलों में अप्राकृतिक मौतों में 18 फीसद से अधिक की वृद्धि हुई है। इनमें आत्महत्या, दुर्घटनाएं और जेलों में होने वाली हत्याएं शामिल हैं। वर्ष 2020 में 56 कैदियों की मौत हुई। बक्शी के मुताबिक, सरकार और अदालतों को चाहिए कि वे विचाराधीन कैदियों के स्वास्थ्य और उनके लिंग के आधार पर संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाएं। हिरासत में होने वाली मौत और अन्य घटनाओं को लेकर जेल निरीक्षकों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
बीते एक साल में अदालतों में कैदियों की निजी शिकायतों से जुड़ी याचिकाएं खूब पहुंची हैं। ये याचिकाएं अस्पताल में भर्ती कराने से इनकार, पत्रों की जब्ती, घर के खाने की मांग, परिवार के लोगों से मिलने की मांग से जुड़ी हुई थीं। जानकारों के मुताबिक, जेलों में भीड़ बढ़ने की एक वजह लैंगिक है जिसकी अक्सर अनदेखी की जाती है, खासकर जब यह मामला जमानत, पैरोल, फरलो और नजरबंदी से संबंधित होता है।
(MN News से साभार)