वाराणसी में हुई ज्ञान पंचायत

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28 मार्च। पिछले वर्ष 26 नवम्बर से शुरू हुए और साल भर चले ऐतिहासिक किसान आन्दोलन ने न्यायप्रिय परिवर्तन के आकांक्षी लोगों और समूहों को इस अन्धकार काल में प्रकाश दिखाया है। राजनीति और उच्चशिक्षित विशेषज्ञों को नकार कर यह आन्दोलन, जिस तरह समाजों के सहयोग और आपसी संवाद को प्रमुखता देते हुए संगठित हुआ उसने समाजों की शक्ति को समझने का एक बहुत बड़ा फलक सामने खोल दिया है। न केवल लोगों के संख्याबल का अद्भुत प्रदर्शन हुआ बल्कि इन समाजों के नैतिक दर्शन और तर्क की विधाओं का भी सशक्त प्रदर्शन हुआ। इस आन्दोलन का असर आनेवाले दिनों में कई रूपों में दिखाई देगा ऐसा लगता है। इसी उम्मीद में समाजों की शक्ति के स्रोत और इस शक्ति के स्वरूप को समझने के प्रयासों पर इस गोष्ठी का आयोजन किया गया।

लोकविद्या सत्संग के साथ 27 मार्च को हुई इस गोष्ठी में चार सत्र रखे गए थे, जो क्रमशः इस प्रकार थे- किसान-समाज, कारीगर-समाज, स्त्री-समाज और छोटी पूँजी से जीविका चलानेवाले समाज।

विषय प्रवेश करते हुए विद्या आश्रम के अध्यक्ष सुनील सहस्रबुद्धे ने कहा कि हमारे देश में आधुनिक राज्य और राजनीति थोपी गयी व्यवस्था हैं। पश्चिम के देशों की तरह यहाँ राजनीतिक समाज नहीं बन पाया। यहाँ तो हम अभी भी अपने समाजों के मार्फत ही अपने जीवन और दर्शन को गढ़ते हैं। ऐसे में बृहत्(राष्ट्रीय)-समाज और विविध समाजों के बीच द्वंद्व बना रहता है। यह द्वंद्व कई तरह से प्रकट होता रहता है। वर्तमान किसान आन्दोलन इसी द्वंद्व का उदहारण है, जिसमें समाजों ने राष्ट्रीय राज्य-सत्ता को समझौते के लिए बाध्य किया है। समाजों की शक्ति राज्यसत्ता को मर्यादित करती है। समाज को दो ढंग से समझा गया है, एक, समाज समाजों से बना है और दूसरा, समाज जातियों में बंटा है। वह सामाजिक कार्यकर्ता जो व्यापक जनशक्ति का पक्षधर है, समाज को पहले ढंग से समझना चाहेगा। समाजों की शक्ति उनके ज्ञान और दर्शन में होती है; इसे किसानों, कारीगरों, स्त्रियों, आदिवासियों और ठेले-पटरी-गुमटी और छोटे दुकानदारों के समाजों के ज्ञान और दर्शन में हमें देखते आना होगा। इनके ज्ञान में सत्य का स्वरूप देखते आना होगा, यह उनकी शक्ति के आधार हैं।

किसान-समाज सत्र में भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के वाराणसी जिला अध्यक्ष लक्ष्मण प्रसाद, किसान सभा के वाराणसी अध्यक्ष रामजी सिंह और भाकियू वाराणसी मंडल अध्यक्ष जितेन्द्र तिवारी ने किसान आन्दोलन के अनुभवों पर अधिक मनन करने और स्थानीय समाजों की शक्ति को पहचानने पर जोर दिया। इस सत्र में संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा घोषित 28-29 मार्च को श्रमिक संगठनों के द्वारा देश भर में हो रही हड़ताल को समर्थन करने की अपील करते हुए समाजों के बीच सहयोग के धागे मजबूत करने का आह्वान किया गया।

समाजवादी जन परिषद के अफलातून ने समाजों की शक्ति के साथ ही जाति पर संवाद की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा कि समाजों में ही समाज का शोषण करनेवाले लोग भी होते हैं इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

बुनकर साझा मंच से फ़ज़लुर्रहमान अंसारी और माँ गंगा निषाद राज सेवा समिति से हरिश्चंद्र बिन्द ने कारीगर-समाजों के ज्ञान और आय के बीच सम्बन्ध को उजागर करते हुए इस बात पर जोर दिया कि उद्योग नीति में कारीगर-समाजों के ज्ञान को जायज जगह मिले तो बेरोजगारी और गरीबी का सवाल हल हो सकता है।

स्त्री-समाज सत्र में पारमिता, एकता शेखर और प्रेमलता सिंह ने लोकविद्या समाज की स्त्रियों के समृद्ध ज्ञान को उजागर करते हुए कहा कि स्त्रियाँ किसान भी हैं, कारीगर भी हैं, दुकानदार भी हैं और आदिवासी तो हैं ही साथ ही चिकित्सक, शिक्षिका और प्रबंधक भी हैं जिसके चलते उन्हें जीवन को समग्रता में देखने और चलाने की क्षमता हासिल होती है। स्त्रियों की इस क्षमता को समाज के पुनर्निर्माण और संचालन का आधार बनाया जाना चाहिए।

अंतिम सत्र छोटी पूँजी से व्यवसाय करनेवाले समाजों पर केन्द्रित था। स्वराज अभियान से रामजनम ने कहा कि भारत का भविष्य छोटी पूँजी में है। यहाँ की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा, लगभग 70-80 फीसदी, छोटी पूँजी के व्यवसाय में है। यहाँ का बहुसंख्य किसान, बुनकर, और तमाम ठेले-पटरी-गुमटी के दुकानदार और स्थानीय बाजारों के बहुसंख्य दुकानदार छोटी पूंजी के ही प्रबंधक हैं। छोटी पूँजी के व्यवसाय के संरक्षण में बेरोजगारी को खत्म करने का आधार है, पर्यावरण और प्रकृति को विनाश से बचाने की अद्भुत शक्ति भी है।

वाराणसी ज्ञान पंचायत की ओर से आयोजित इस गोष्ठी का संचालन करते हुए चित्रा सहस्रबुद्धे ने कहा कि वाराणसी ज्ञान पंचायत वह स्थान है, जहाँ विविध समाजों की शक्ति के स्रोतों और उनके ज्ञानगत आधारों पर चर्चा होती है। नव वर्ष के साथ हम इस शक्ति की अवधारणा और स्वरूप को निखारने का कार्य शुरू कर रहे हैं। आगे की ज्ञान पंचायतों में इस चर्चा को विस्तार दिया जाएगा।

गोष्ठी में कृष्ण कुमार, मणिचंद चतुर्वेदी, गीता कुमारी, विनोद कुमार, एहसान अली, रवि श्रीवास्तव, गोरखनाथ और मोहम्मद अहमद ने भी अपने विचार रखे। गोष्ठी की अध्यक्षता नगर के वरिष्ठ समाजवादी चिन्तक और पत्रकार विजय नारायण ने की।

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