रामदेव सिंह यादव को नमन, जिन्होंने मधु जी की जान बचायी थी

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स्मृतिशेष रामदेव सिंह यादव

— अमरीष कुमार —

न 1967 में मधु लिमये मुंगेर लोकसभा से दोबारा चुनाव लड़ रहे थे। चुनाव प्रचार के दौरान मुंगेर जिला मुख्यालय के पास शंकरपुर ग्राम में मधु जी पर जानलेवा हमला हुआ था। मधु जी के साथ मुंगेर के पहलवान सोशलिस्ट कार्यकर्ता रामदेव सिंह यादव प्रचार में शामिल थे। रामदेव सिंह यादव ने मधु लिमये के शरीर पर लेटकर लाठी-डंडे का सामना करते हुए घायल होकर उनकी जान बचाई थी। इस हमले में मधु लिमये और रामदेव सिंह यादव दोनों घायल हो गए थे, जिन्हें मुंगेर के सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुंगेर सदर अस्पताल में विशेष फोन लगवाकर मधु जी के स्वास्थ्य का हालचाल जाना था। इस तरह से रामदेव सिंह यादव की मधु जी से काफी घनिष्ठता हो गयी।

मुंगेर के लोग बताते हैं कि जनसंघ के कार्यकर्ता रवीश चन्द्र वर्मा ने साजिश रची थी और शंकरपुर के ब्रह्मदेव यादव समेत कई लोगों ने मिलकर मधु लिमये पर हमला किया था। इसी हमले के बाद रवीश चन्द्र वर्मा को 1969 में जनसंघ ने मुंगेर विधानसभा से टिकट दिया और वह विधायक बने‌। ब्रह्मदेव यादव भागलपुर विश्वविद्यालय के अंतर्गत केडीएस कालेज गोगरी के इतिहास विभाग में व्याख्याता बने। रवीश चंद्र वर्मा का जब निधन हुआ था तो मुश्किल से दस व्यक्ति भी अंतिम यात्रा में शामिल नहीं हुए थे।

रामदेव सिंह यादव ने मुंगेर विधानसभा का कई बार प्रतिनिधित्व किया और 1990 से 1994 तक बिहार सरकार में सहकारिता मंत्री बने। अपने मंत्रित्वकाल में किसानों का दस हजार रु. तक का ऋण माफ किया। बिहार के लगभग सभी जिलों में प्रखर समाजवादी लोगों को कोआपरेटिव का अध्यक्ष बनाया। एक बार उनसे पूछा कि यदि आप अबतक लालू या नीतीश जी की पार्टी में साथ रहते तो आप आजतक मंत्री बने रहते, तो उनका जबाव था मैं भी भ्रष्ट तंत्र की साजिश का शिकार होकर जेल से बाहर भीतर होता रहता। रामदेव बाबू ने अपने आवंटित सरकारी आवास का कुछ हिस्सा पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता मंगनीलाल मंडल को रहने के लिए दिया था जो खुद बिहार सरकार में मंत्री बने।

तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव, रामदेव जी की विभागीय फाइलों पर प्राथमिकता देकर काम पेंडिंग नही रखते थे। रामदेव बाबू के विभाग से संबंधित कार्य में लालू यादव ने मुख्यमंत्री रहते हुए कभी हस्तक्षेप नहीं किया, अगर किसी तरह की पैरवी मुख्यमंत्री के पास आती थी तो वह खुद उसपर निर्णय या अमल नहीं करते थे, सिफारिश सीधे मंत्री रामदेव बाबू के पास भेज देते थे‌। कुछ सामंती प्रवृत्ति के पत्रकारों ने रामदेव बाबू को उकसाकर, गलतबयानी देकर लालू जी एवं उनकी सरकार के प्रति गंभीर टिप्पणी सरकार में रहते हुए करवाते रहे और कुछ चाटुकार पत्रकार रामदेव बाबू को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने लगे।

मीडिया में इस तरह की रोज चल रही खबरों के बीच अचानक लालू जी रामदेव बाबू के आवास पर रात दस बजे पहुंचे। काफी देर बाद दरवाजा खुला। रामदेव बाबू को लालू जी ने पैर पकड़ते हुए कहा कि भैया हमसे क्यों नाराज हैं? मैं तो आपके विभाग की फाइल को कभी पेंडिंग नहीं रखता हूं और ना आपके विभाग में हस्तक्षेप करता हूं? भैया इस तरह की टिप्पणी से सरकार की छवि पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। फिर एक गिलास पानी मांगा, किसी कार्यकर्ता ने बाहर के चापाकल से लाकर पानी दिया। आखिर में रामदेव सिंह यादव विधायकी एवं मंत्रिमंडल से बाहर हो गए और धीरे धीरे पारंपरिक राजनीति से समझौता नहीं करने के कारण सक्रिय राजनीति से दूर हो गए।

समाजवादी विचारधारा की वैकल्पिक राजनीति खड़ा करने के लिए योगेन्द्र यादव के संपर्क में आए और कुछ दिनों के लिए स्वराज अभियान के बिहार प्रदेश अध्यक्ष भी बने।

रामदेव सिंह यादव की चिता को सलामी

हाल में ही में 17 मार्च 2022 को रामदेव बाबू का मुंगेर में निधन हो गया। मुंगेर में ही गंगा तट पर पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इनके अंतिम दर्शन एवं अंत्येष्टि में जनसैलाब उमड़ पड़ा जिसमें पूर्व सांसद राजनीति प्रसाद एवं विजय कुमार विजय, मुंगेर विधायक प्रणव कुमार, मुंगेर के डीएम,एसपी, एसडीएम, एसडीपीओ, कोतवाली इंस्पेक्टर समेत दर्जनों सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता शामिल हुए।

रामदेव सिंह यादव के कारण रामविलास पासवान की राष्ट्रीय पहचान बनी। मुंगेर के एक दुकानदार जो सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े थे, वहीं पर रामदेव सिंह यादव से रामविलास पासवान का परिचय हुआ था। पासवान जी की तेजतर्रार और बेहतर ढंग से बात करने की शैली से रामदेव सिंह यादव प्रभावित हो गये। रामदेव सिंह यादव ने बाद में दुकानदार से कहा कि रामविलास से पूछकर बताओ कि वह सुरक्षित अलौली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ेगा? दुकानदार द्वारा पूछने पर रामविलास ने कहा कि मुझे कौन टिकट देगा? तब रामदेव सिंह यादव ने मधु लिमये और रामजीवन बाबू से बात करके रामविलास पासवान को संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से 1967 में अलौली विधानसभा सीट से पहली बार टिकट दिलवाया था। लेकिन इस चुनाव में पासवान कद्दावर कांग्रेसी नेता मिश्री सदा से नौ सौ से भी कम वोट से चुनाव हार गए। पार्टी ने पुनः 1969 में अलौली विधानसभा क्षेत्र से रामविलास को उम्मीदवार बनाया और जीतकर वह पहली बार विधायक बने। फिर 1977 के आम चुनाव में हाजीपुर सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र से विश्व में सबसे अधिक वोटों से जीतने का रिकार्ड पासवान जी ने बनाया। इस तरह राजनीति में वह आगे बढ़ते गये पर उन्हें राजनीति का ककहरा पढ़ाने वाले रामदेव बाबू थे।

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