उन्होंने कभी भी गलत चीजों से समझौता नहीं किया

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मधु लिमये और चंपा लिमये

— डॉ अनिल ठाकुर —

धु लिमये को आधुनिक भारत के बड़े राजनीतिज्ञों और विशिष्ट हस्तियों में गिना जाता है। वे भारत के स्वतंत्रता आंदोलन और फिर गोवा मुक्ति आंदोलन के एक बड़े सिपाही थे। वे एक अच्छे सांसद के साथ-साथ समाजवादी विचारधारा के वाहक भी थे; इसके अलावा वह नागरिक अधिकारों के लिए लड़नेवाले एक महान नेता थे। उन्होंने भारत में लोकतांत्रिक समाजवादी आंदोलन के लिए अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया। उनका जीवन सादगी से भरा था। वे सही मायने में गांधी-लोहिया की परंपरा के वाहक रहे। उन्होंने समाजवादी विचार के साथ-साथ गांधी के मूल्यों को स्थापित करने का कार्य किया है।

मधु लिमये चार बार लोकसभा के सदस्य ( 1964,1967, 1973 एवं 1977) रहे। वे महाराष्ट्र में जनमे एवं बिहार उनकी कार्यस्थली रहा। उन्हें एक अच्छे सांसद के रूप में जाना जाता है। उन्हें गांधी एवं डॉ लोहिया के विचारों को आगे बढ़ानेवाला एक अग्रणी नेता माना जाता रहा है। उनका जीवन सादगी से भरा था। उन्होंने गोवा मुक्ति आंदोलन में डॉ लोहिया के साथ 1955-57 का समय गोवा की जेल में बिताया। उन्होंने गोवा मुक्ति के लिए पुर्तगाली सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी। डॉ लोहिया के साथ मिलकर गोवा को आजाद कराया। इसके अलावा 1975-77 के आपातकाल में भी वह जेल में रहे। वे अपने जीवन में संघर्षशील इंसान की तरह लड़ते रहे। उन्होंने कभी भी गलत चीजों से समझौता नहीं किया।

मधुजी अपनी जीवन संगिनी चंपा लिमये के साथ स्वंतत्रता आंदोलन से लेकर आपातकालीन दौर तक बराबर संघर्ष करते रहे। चंपा जी ने भी मधुजी के साथ हर संघर्ष में उनका बराबर का साथ दिया। एकबार चंपा जी मधुजी के बारे में बता रही थीं कि कैसे उनकी मुलाकात मधुजी के साथ हुई। जब मधु जी उनके कालेज में छात्रों की बैठक एवं समाजवादी विचारधारा को लेकर शिक्षण शिविर में आते थे वहीं उन दोनों की मुलाकात हुई। फिर दोनों शादी के बंधन में बॅंध गए। लेकिन मधुजी ने अपने संघर्ष को कायम रखा। चंपा जी ने भी उनका पूरा साथ दिया। चंपा जी ने अपने छात्र जीवन से लेकर एक शिक्षक (मराठी एवं संस्कृत की विदुषी) के रूप में जो कार्य किया वो असाधारण है। उन्होंने एक मां की भूमिका भी असाधारण तरीके से पूरी की। साथ ही मधुजी के संघर्ष में उन्होंने पूरी तरह से समान भागीदारी निभाई।

मैं मधु जी एवं चंपा जी से उनके अंतिम दौर में मिला। मधुजी जितने गंभीर रहते थे, चंपा जी उतनी ही मिलनसार थीं।

1992-93 में मैं जब पीएचडी (दिल्ली विश्वविद्यालय से) कर रहा था, मेरे शोध का विषय समाजवादी आंदोलन का इतिहास था। उसी शोधकार्य के दौरान मैं तीनमूर्ति पुस्तकालय जाया करता था। एक समाजवादी होने एवं समाजवादी विचारधारा के ऊपर काम करने के दौरान श्री हरदेव शर्मा से मेरी मुलाकात हो चुकी थी। वे आरंभ में तीनमूर्ति पुस्तकालय एवं म्यूजियम के डिप्टी डायरेक्टर तथा बाद में डायरेक्टर बने। उन्होंने पीएचडी के मेरे कार्य में बहुत मदद की। उसी दौरान उन्होंने कहा कि मधु जी गोवा आंदोलन पर किताब लिख रहे हैं। आप उसमें थोड़ी मदद कर दीजिए। मैंने हां कह दिया। क्योंकि इसी बहाने मधु जी जैसे व्यक्तित्व से मिलने का मौका था।

मेरा काम तीन मूर्ति पुस्तकालय के अंदर गोवा मुक्ति आंदोलन के बारे में माइक्रो फिल्म (स्लाइड) के द्वारा कुछ सामग्री इकठ्ठा करने का था। इस दौरान दिन भर मैं अपना पीएचडी का काम करता फिर शाम को दो घंटा स्लाइड पर काम करता। इसी कार्य को लेकर हर दूसरे तीसरे दिन उनसे मिलने पंडारा रोड शाम को उनके निवास पर जाता था। उनके साथ चाय पीना तथा समाजवादी आंदोलन के बारे में बातें करना शामिल था।

उस दौरान मधु जी एवं चंपा जी से मिलकर मैंने अपने को गौरवान्वित महसूस किया। वो उनका अंतिम दौर था। उस दौर में उनका सिर्फ पठन-पाठन एवं लेखन का काम चल रहा था। उन्होंने सौ से ज्यादा पुस्तकें लिखी हैं।

मधु जी ने शुरुआती दौर में स्वतंत्रता आंदोलन, गोवा मुक्ति आंदोलन से लेकर समाजवादी विचारधारा एवं समाजवादी राजनीति के बारे में कार्य किया। लेकिन 1980 के बाद उन्होंने सक्रिय राजनीति से करीब-करीब संन्यास ले लिया था। उसके बाद उनका जीवन पूरी तरह से पठन-पाठन के अलावा लेखन में लग गया था जो अंतिम समय तक चलता रहा। इसी दौरान लगातार मधु जी के साथ शाम को मिलना तय था। कभी-कभी ऐसा होता था कि मधुजी अपने लेखन कार्य में व्यस्त होते थे तो चंपा जी के साथ चाय पर बहुत लंबी बातचीत होती थी। वह अपनी जिंदगी के बहुत सारे किस्से सुनाया करती थीं। यदि सारी यादों को समेटा जाए तो एक पूरी किताब बन सकती है।ऐसी सरल स्वभाव एवं महान कोई अन्य महिला शायद ही मैंने अपनी जिंदगी में देखी हो। अपने बच्चों की तरह व्यवहार करती थीं। फिर मधु जी जब अपने कार्य से फ्री होकर आते तब हमसे बातें करते थे। ऐसा व्यक्तित्व मैंने बहुत ही कम देखा है।

अंत में मैं एक वाकया बताकर यह लेख समाप्त करना चाहता हूं। 8 जनवरी1995 को मधु जी ने जब इस संसार से विदा ली तब मैं भी उनके पंडारा रोड स्थित निवास पर पहुंचा था। उस समय मुलायम सिंह जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। वह उत्तर प्रदेश की पुलिस बटालियन के साथ मधु जी को अंतिम सलामी देने के लिए पहुंचे थे। लेकिन चंपा जी बड़ी नाराज हुईं कि जो मधु जी अपनी जिंदगी इतनी सादगी से जिए , उन्हें ये सब पसंद नहीं था। बाद में बटालियन को लौटना पड़ा। उनका अंतिम संस्कार विद्युत शवदाह गृह में किया गया। क्योंकि वे पर्यावरण प्रेमी भी थे। ऐसे महान आत्माओं (मधु जी एवं चंपा जी) को शत-शत प्रणाम।

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