भारत गंभीर सांस्कृतिक संकट से गुज़र रहा है।हम सब सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं और विभिन्न विषयों पर लिख रहे हैं।लेकिन सोशल मीडिया पर छाए ‘सेक्स उद्योग’ और ‘सेक्स कल्चर’ पर हमारी कलम चुप है। क्या ‘सेक्स कल्चर’ और ‘सेक्स उद्योग’ का विचार योग्य प्रासंगिक विषय नहीं हैं ? सोचो आख़िर आप अब तक चुप क्यों रहे ? फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम पर सेक्स बाढ़ आई हुई है। इसका समाज, युवा, संस्कृति, राजनीति, धर्म आदि पर गहरा असर पड़ रहा है।हमारे भारतीय बुद्धिजीवी इसे लेकर बेफिक्र क्यों हैं ? क्या पोर्न पर बात करने से मान -मर्यादा नष्ट हो जाएगी ? यदि हम सब बात नहीं करेंगे तो कौन बात करेगा ? फ़ेसबुक पर रील्स में पोर्न की आंधी चल रही है और यह सुनियोजित ढंग से चलाई जा रही है।वहां सेक्स रील और धर्म रील ये दो प्रमुख फिनोमिना हैं।
जिस फ़ेसबुक जिस पन्ने पर आप लिख रहे हैं उसके दूसरे पन्ने पर पोर्न चल रहा है।पहले किताब पढ़ते या लिखते समय जो विषय पढ़ते थे उससे जुड़ी सामग्री ही सामने होती थी या फिर हमारी पुस्तकों की रैक में जो उपलब्ध किताबें हैं वे होती थीं। उनका इस्तेमाल करते थे। लेकिन इन दिनों सोशल मीडिया पर जो लिख रहे हैं,उसकी रैक में सिर्फ आपका ही लेखन नहीं है ,अन्य का भी है।इसमें पोर्न सेक्स रील -धर्म रील भी हैं।पहले रील्स में मनोरंजक रील्स ही रहती थीं।लेकिन विगत 12 सालों में पोर्न-सेक्स-धर्म की बाढ़ आ गयी है। पोर्न रील-धर्म रील ने बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित किया है। इसके गंभीर सामाजिक-सांस्कृतिक असर पड़ रहे हैं। इनकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए।पर, बुद्धिजीवियों की नज़र इधर नहीं जा रही।संघी बुद्धिजीवी और धर्मनिरपेक्ष बुद्धिजीवी इनके बारे में चुप हैं।
विचारणीय सवाल यह है कि कम्प्यूटर और इंटरनेट क्रांति ने विश्व में विभाजनकारी आंदोलनों और पोर्न को ही हवा क्यों दी ? सबसे अधिक इनके ही लोग यूजर हैं।इंटरनेट आने के बाद विभाजनकारी, लोकतंत्र विरोधी और आतंकी आंदोलनों का कवरेज सबसे अधिक सामने आया है।
इंटरनेट ने संसार को आत्माहीन परिचय में डुबो दिया है।आत्म- प्रचार, आत्म- प्रेम, स्व-शरीर प्रेम,और स्व की भाव – भंगिमाों से प्रेम ,स्व की हरकतें और गतिविधियां बार बार देखना ही महान काम हो गया है! रील संस्कृति को समझने के लिए नव्य-आर्थिक उदारीकरण और उसमें आए आंदोलनों को समझें और उनके द्वारा पैदा किए परिवर्तनों को गंभीरता से लें तो चीजें साफ़ समझ में आएंगी। रील पर यह पहला लेख है। नव्य आर्थिक उदारीकरण का पहला बड़ा साइड इफेक्ट है अस्मिता की राजनीति से जुड़े आंदोलनों और नेताओं का अंत।अस्मिता के अंत को इसने सुनिश्चित किया है।दूसरा ,कम्युनिस्ट और उदारतावादी पार्टियों को अप्रासंगिक बनाया है।तीसरा ,धर्म को धार्मिक उद्योग में रूपांतरित किया है।
चौथा, अधिनायकवादी राजनीति का वर्चस्व स्थापित किया है। पांचवां , सभी कला रुपों को कम्युनिकेशन बनाया है।छठा, साहित्य के विभिन्न विधा रुपों का अंत करके इनको लेखन बनाया है,साथ ही राजनीति,अर्थशास्त्र,इतिहास आदि पर लिखे पत्रिका-अखबार लेखन को लेखन में रूपांतरित किया है।
उदाहरण के रुप में राममंदिर आंदोलन को लें और उस पर इंटरनेट के परिप्रेक्ष्य में सोचें। यह सिर्फ मंदिर का मामला नहीं था बल्कि उसके पीछे अधिनायकवादी राजनीति का पूरा प्रकल्प काम कर रहा था। आम लोगों से कहा गया राम मंदिर का मसला धार्मिक आस्था का मसला है, लेकिन उसका धार्मिक आस्था से कम और अधिनायकवादी राजनीतिक आस्था और संस्कृति से अधिक संबंध था।राम मंदिर आंदोलन का रूपान्तरण फासिस्ट राजनीतिक तंत्र में हुआ है। इसी तरह पोर्न-सेक्स रील का जिस गति से प्रचार-प्रसार हुआ है उसने राम को काफी पीछे छोड़ दिया है।असल में धर्म, पोर्न, फासिज्म में गहरा अन्तस्संबंध है।राम के वर्चस्व और पोर्न के वर्चस्व में गहरा संबंध है। ये दोनों एक ही समय में भारत में व्यापक स्तर दाखिल होते हैं।दोनों ही कम्प्यूटर क्रांति के केन्द्रीय तत्व हैं।
कम्प्यूटर क्रांति,राम क्रांति और पोर्न क्रांति ये तीनों एक ही दौर में समाज में दाखिल होते हैं और समाज के विभिन्न वर्गों,जातियों और समुदायों को अपने साथ बांधते हैं। समाज का बड़ा अंश इनके अबाध संचार प्रवाह का उपभोक्ता है। इसने एक भिन्न किस्म के मध्यवर्ग को जन्म दिया है। यह मध्यवर्ग प्रेस क्रांति वाले मध्यवर्ग से बुनियादी तौर पर अलग है।
हम सब राम मंदिर पर बातें कर रहे हैं, राम के दर्शन कर रहे हैं ,पर, फासिस्ट राजनीति पर बातें नहीं कर रहे।राम प्रत्यक्ष हैं,चर्चा में हैं ,लेकिन फासिस्ट राजनीति भी प्रत्यक्ष है।आज राम फासिस्ट राजनीति का अंग है।पोर्न भी फासिस्ट राजनीति का अंग है। ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।सतह पर भिन्न पर प्रवृत्तिगत रुप में एक समान हैं।
इन दिनों पोर्न रील और धर्म रील देख रहे हैं, पर फासिस्ट राजनीति पर बातें नहीं कर रहे।इसका पहला सबक यह है कि कम्प्यूटर कल्चर-साइबर कल्चर के प्रोडक्ट अपनी राजनीति और विचारधारा को छिपाती है।इसके वैचारिक असर पर बातें नहीं करने देती,या फिर सोचने की क्षमता खत्म कर देती है।वैचारिक तौर पर हम सबकी चेतना पर राम और सेक्स रील का गहरा असर है। इन दोनों के राजनीतिक पहलू ,उससे जुड़े नीतियों के संसार पर चुप हैं।
मजेदार बात है राम का समाहार अयोध्या टूरिज्म में हुआ और पोर्न आंदोलन का समाहार सेक्स टूरिज्म में हुआ। राम और पोर्न दोनों टूरिज्म का अंग हैं। दोनों का लक्ष्य है अधिक से अधिक मुनाफा कमाना। उपभोक्ता बढ़ाना। जो लोग सोच रहे थे राम आस्था की चीज़ हैं वे ग़लत साबित हुए हैं, इंटरनेट ने उन्हें मुनाफे की चीज़ बना दिया।राम आज धार्मिक उद्योग का सबसे बड़ा प्रोडक्ट या माल है।आर्थिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक तीनों ही स्तरों पर इसने जबर्दस्त मुनाफा दिया है, और आगे भी मुनाफा देगा।
राम की आस्था का मुनाफे और फासिस्ट राजनीति में रूपान्तरण महत्वपूर्ण पैराडाइम शिफ्ट है।अब राम की पहचान धर्म के रुप में कम टूरिज्म की सुविधाओं की दृष्टि से अधिक हो रही है।राम-अयोध्या टूरिज्म पर सरकार ने 32 हज़ार करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए हैं।जाहिर है यह पैसा धर्म पर खर्च नहीं हुआ है, टूरिज्म के साजो-सामान-सुविधाओं के ऊपर खर्च किया गया है। नव्य-आर्थिक उदारीकरण ने राम मंदिर को धर्म स्थल नहीं रहने दिया उसे धार्मिक उद्योग में रुपान्तरित कर दिया है,अब इस धार्मिक स्थल की उद्योग की तरह व्यवस्था की जा रही है।
इन दिनों धर्म पूजा-उपासना आदि गौण है, टूरिज्म और मुनाफा प्रधान है।इससे धर्म को संस्कृति के क्षेत्र से बाहर निकालकर मासकल्चर के क्षेत्र में स्थापित कर दिया गया है।अब अयोध्या और धर्म, संस्कृति का नहीं, मास कल्चर का अंग हैं। वहां जाने वाले अब भक्त नहीं,उपभोक्ता कहलाते हैं। यह नया सांस्कृतिक शिफ्ट है।यह रुपान्तरण किया है इंटरनेट-कम्प्यूटर और नव्य-आर्थिक उदारीकरण ने।उसने राम को मासकल्चर और साइबर कल्चर का अंग बनाया है। यह ग्लोबल आर्थिक-सांस्कृतिक -राजनीतिक पैकेज का अंग है।
उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में पोर्न-सेक्स और रील को देखने की जरुरत है।यह मनुष्य की कामुक-वासनामूलक प्रवृत्तियों की अभिव्यक्ति है।यहां पर बहुराष्ट्रीय मीडिया कंपनियों-साइबर कंपनियों का वर्चस्व है,यह माध्यम साम्राज्यवाद का अंग है।राम मंदिर आंदोलन और पोर्न-रील आंदोलन में पहला बुनियादी साम्य है कि दोनों में अनालोचनात्मक आस्था और अनुकरण पर ज़ोर है। इसने समाज में चौतरफा अनालोचनात्मक आस्था और अनुकरण का व्यापक प्रचार-प्रसार किया है। ख़ासकर मध्यवर्ग और समाज के अन्य तबकों में इन दोनों चीजों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।इन दोनों आंदोलनों को सामाजिक सरोकारों से नफ़रत है।दोनों के निशाने पर हैं स्त्रियां,युवा और बेकार लोग।दोनों में ‘सॅाफ्ट’ पर ज़ोर है।दोनों के उपभोक्ता और अनुयायी ‘सॅाफ्ट’ टारगेट हैं।सॅाफ्ट है-स्त्रियां और युवा।वे ही इन दोनों आंदोलनों की धुरी हैं।
धर्म और पोर्न सब कुछ कृत्रिम है।नकली है। आस्था और अनुकरण भी कृत्रिम और नकली है।दोनों (धर्म और पोर्न) की राजनीति है अधिनायकवाद या फासिज्म। दोनों के यहां व्यक्तिगत सूचनाओं ,निजता ,निजी लगाव ,निजी मान्यता और निजी संस्कारों-मान्यताओं के प्रदर्शन का बड़ा महत्व है।दोनों में संस्कारों को लेकर प्रतिगामिता है,दोनों प्रतिगामी संस्कारों के सर्जक हैं। दोनों में एडिक्शन है। दोनों में अबाध अहर्निश इमेज वर्षा होती रहती है,इमेजें बाँधे रखती हैं, व्यस्त रखती हैं और बार बार लौटने को मजबूर करती हैं।इंटरनेट ने इन दोनों को प्रभावशाली और आक्रामक बनाया है।दोनों की धुरी है पर्सुएशन और एडिक्शन। दोनों ने समाज के सौंदर्यबोधीय मूल्यों को गंभीरता से प्रभावित किया है।इसने धर्म,सेक्स और फासिज्म के गठजोड़ को जन्म दिया है।
एक जमाना था भगवान के दर्शन करने के लिए मंदिर जाना होता था, सेक्स करने के लिए स्त्री के पास जाना होता था।इंटरनेट आने के बाद कहीं जाने की जरूरत नहीं है।सेक्स और भगवान इमेजों के ज़रिए अहर्निश अबाध रुप में घर में ही उपलब्ध हैं।लाइव उपलब्ध हैं।घर से निकलने की जरुरत नहीं है।इनकी इमेजों का व्यापक उपभोग हो रहा है।यह नए किस्म की साइबर कल्चर है इसमें बहलाने-फुसलाने-पटाने और फिर ग़ुलाम बनाने की शक्ति है।हम सब इसके ग़ुलाम हैं, उपभोक्ता हैं और फासिज्म के वोटर हैं।