23 अप्रैल। संघ-गिरोह अपने स्थापना-काल से ही मुसलमानों के खिलाफ अनर्गल दुष्प्रचार करने और नफरत फैलाने के गर्हित-घृणित कार्य में लगा हुआ है। सन् 2014 में सत्ता पाने के बाद इस गिरोह ने आक्रामक तरीके से इस जहरीले आभियान को और तेज कर दिया।
सत्ता-प्राप्ति के शुरुआती दौर में अयोध्या मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को यह कहकर देश के गले उतारा गया था कि इससे बहुसंख्यक आस्था संतुष्ट हो जाएगी। देश में सुकून फिर से कायम हो सकेगा। खुद प्रधानमंत्री ने फैसले का विरोध न करने के लिए मुस्लिम अवाम को शुक्रिया अदा किया। कहा गया कि इससे सबका साथ सबका विकास का रास्ता हमवार होगा। बावजूद इसके कि जमीन की मिल्कियत के उस विवाद का फैसला न्याय की कठोर शर्तों के अनुरूप न होकर समझौते और हिंदू-तुष्टीकरण पर आधारित था।
लेकिन फैसले के बाद से अब तक की घटनाएँ दिखा रही हैं कि शुकराने और सद्भाव का माहौल बनाने की जगह मुसलमान समुदाय के गैरीकरण की प्रकिया को लगातार तेज किया जा रहा है। इससे जाहिर है कि वह मामला शुरू से ही आस्था का नहीं, हिन्दू वोट बैंक की तामीर के लिए था।
2019 के बाद विशेष रूप से संघ-गिरोह और भाजपा-सरकार द्वारा पूरे देश में न केवल सुनियोजित ढंग से साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया जा रहा है, बल्कि मुसलमानों को धमकाया जा रहा है, उनके स्वाभिमान को कुचला जा रहा है।
निर्दोष मुसलमानों को विभिन्न झूठे मुकदमों में फँसाकर उनका पूरा जीवन बर्बाद किया जा रहा है, जीवन भर की संचित खून-पसीने की गाढ़ी कमाई से निर्मित आशियानों को बुल्डोजरों से गिराया जा रहा है, मन्दिरों के निकट या हिन्दू पर्व-त्योहारों में सामान बेचने के उनके संवैधानिक अधिकारों को प्रतिबन्धित किया जा रहा है, उनके खाने-पहनने के मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात किया जा रहा है, भगवा-गिरोह की भीड़ के द्वारा मस्जिद के सामने खड़े होकर मुसलमानों के विरुद्ध अश्लील गालियाँ बकी जा रही हैं, मस्जिदों पर भगवा झण्डा फहराया जा रहा है, मुस्लिम महिलाओं के साथ खुलेआम रेप करने की धमकी दी जा रही है और ‘धर्म-संसद’ (?) में मुसलमानों का संहार करने की शपथ ली जा रही है।
कभी-कभार मुसलमानों की मॉब लिंचिंग भी की जा रही है और हत्या का घनघोर वीभत्स और अमानवीय दृश्य वीडियो बनाकर बड़े गर्व के साथ प्रसारित (वायरल) भी किया जा रहा है।
गौमांस के सवाल पर भीड़ के द्वारा मुसलमानों की हत्या आम बात हो गयी है। कहना अनावश्यक है है कि ये सारी घटनाएँ केन्द्र-सरकार (और भाजपा की राज्य-सरकारों) के संरक्षण में हो रही हैं। इतना ही नहीं, भाजपा-सरकार के मन्त्रियों और नेताओं के द्वारा हत्यारों और दंगाइयों का वन्दन-अभिन्दन करने की घटनाएँ भी यदा-कदा होती रही हैं। कैसी घोर और क्रूर विडम्बना है कि जम्मू-कश्मीर के कठुआ में एक नाबालिग मुस्लिम बच्ची के साथ ब्लात्कार करनेवाले आरोपी के समर्थन में तत्कालीन जम्मू-कश्मीर-सरकार के एक भाजपाई मन्त्री राष्ट्रीय झण्डा लेकर जुलूस में शामिल हुआ।
हम किस तरह की ब्लात्कारी, दंगाई, साम्प्रदायिक और फासिस्ट संस्कृति का निर्माण कर रहे हैं? इस बार रामनवमी (14 अप्रैल) के अवसर पर देश के कई हिस्सों में साम्प्रदायिक हिंसा भड़काई गई या भड़काने की कोशिश की गयी।
ऐसे जहरीले और खौफनाक परिवेश में शान्तिकामी, संवेदनशील और विवेकी व्यक्तियों की नींद उड़ गयी है। अतः दिल्ली के नागरिक-समाज और लोकतान्त्रिक संगठनों की संयुक्त पहलकदमी पर दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर पिछले दिनों प्रदर्शन का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शन में हर वर्ग के करीब 200 लोग शामिल हुए।
पहले नारे लगाए गए और फिर सभा का आयोजन किया गया। इस सभा को संबोधित करनेवाले वक्ताओं में कविता कृष्णन, अपूर्वानन्द, उमा राग, शुद्धव्रत सेनगुप्त आदि के नाम प्रमुख हैं। वक्ताओं ने यह सवाल जोरदार ढंग से उठाया कि यह देश संविधान से चलेगा या किसी संगठन की मर्जी से? इस बात पर भी जोर दिया गया कि धार्मिक जुलूसों से पहले सभी सभी धर्मों के लोग मिल-बैठकर बात करें।
प्रदर्शन-स्थल पर सड़क के किनारे दुनिया भर के मशहूर बुद्धिजीवियों, कवियों और क्रान्तिकारियों के द्वारा लिखित किताबें बेची जा रही थीं तो वहीं सड़क पर कविताएँ लिखी जा रही थीं, चित्र बनाए जा रहे थे और कुछ लोग बाईट भी दे रहे थे ।
प्रदर्शन की समाप्ति के बाद मोमबत्ती जलाकर नारे लगाए गए। नारे तरह-तरह के लगाए जा रहे थे, जैसे⸺ इन्कलाब जिन्दाबाद; आरएसएस/बीजेपी/ मोदी सरकार मुर्दाबाद; मुस्लिम पर हमला नहीं चलेगा; हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई, आपस में हैं भाई-भाई; सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है आदि-आदि। इसी प्रकार प्लेकार्डों पर भी बहुत तरह के नारे लिखे हुए थे, जैसे⸺ फासीवाद का एक जवाब इन्कलाब जिन्दाबाद; जाति-धर्म में नहीं बँटेंगे, मिलजुलकर संघर्ष करेंगे; गरीब मुसलमानों पर हो रहे दमन को नहीं सहेंगे; जो हिटलर की चाल चलेगा वह हिटलर की मौत मरेगा, ‘From JNU to Karauli, violence unleashed all in the name of ‘celebrations’ आदि। सड़क पर बनाए गए पेन्टिंग में मुसलमानों पर होनेवाले इन हमलों को पूँजीवाद के संकट से जोड़कर दिखाया गया था। अन्त में हम होंगे कामयाब’ गीत से इस प्रदर्शन का समापन हुआ।
प्रदर्शन समाप्त होने के बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को जाने के लिए मजबूर किया और प्रदर्शनकारी जब शान्तिपूर्वक जाने लगे तो कुछ सिपाहियों ने जबरन प्रदर्शनकारियों से प्लेकार्ड छीनने की कोशिश की, लेकिन प्रदर्शनकारी अड़ गए कि जब हम शान्तिपूर्वक जा रहे हैं तो हमारा प्लेकार्ड क्यों छीन रहे हैं। प्रदर्शनकारियों के अड़ने के बाद प्लेकार्ड छीननेवाला दिल्ली पुलिस का सिपाही शान्त हो गया। यह घटना दिल्ली-पुलिस के अलोकतान्त्रिक चरित्र का छोटा-सा उदाहरण है।
कहना न होगा की मानवता-विरोधी होने के कारण फासिस्ट और साम्प्रदायिक शक्तियाँ स्वभावतः साहित्य-संस्कृति, कला और बौद्धिकता-विरोधी होती हैं, वहीं क्रान्तिकारी शक्तियाँ अनिवार्यतः साहित्य-संस्कृति, कला और बौद्धिकता की पोषक।
– अभय