9 अक्टूबर। वाराणसी में नदेसर स्थित विश्व ज्योति जनसंचार केंद्र स्थित साझा संस्कृति मंच कार्यालय में प्रख्यात समाजवादी स्व. प्रोफेसर सोमनाथ त्रिपाठी की पुण्यतिथि पर स्मृति सभा हुई। साझा संस्कृति मंच ने ‘राजनीति में प्रतिरोध का धर्म’ विषयक व्याख्यान आयोजित करके सोमनाथ जी के चिंतन और कर्म पर चर्चा के बहाने से उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार योगेंद्र नारायण ने कहा की प्रो सोमनाथ त्रिपाठी स्मृति व्याख्यान के आयोजकों को मैं हृदय से धन्यवाद देना चाहता हूँ। प्रतिरोध की राजनीति को अपना जीवन समर्पित करने वाले सोमनाथ जी का कर्मक्षेत्र तो बहुत व्यापक हो गया था लेकिन उनकी राजनीतिक सक्रियता बनारस से ही शुरू हुई और फैली। पूरे देश के सहमना कार्यकर्ताओं के लिए वह जीवन पर्यन्त ठेठ बनारसी ही रहे। आज की परिस्थितियों में प्रतिरोध की राजनीति पर चर्चा सोमनाथ जी की स्मृति के साथ न्याय करती है।
हम सबको प्रतिरोध की राजनीति की राह दिखाने वालों ने हमें जेल फावड़ा संगठन के बारे में बताया है, निराशा के कर्तव्य समझाए हैं और जिन्दा कौमों के गुणधर्म सिखाये हैं। लेकिन मुख्यधारा की विपक्षी राजनीति एक चुनाव के बाद अगले चुनाव का इन्तजार करने तक सीमित होकर रह गई दिखती है।
सोशलिस्ट नेता राधेश्याम सिंह ने कहा कि प्रतिरोध की राजनीति पर बात तब सार्थक होगी जब परमिशन की राजनीति को खारिज किया जाएगा। बनारस में गाँधी जयंती कार्यक्रम को पुलिस ने परमिशन न होने का हवाला देकर रोक दिया। और ये बेहद गलत बात शहर में हो रही है। लगातार शहर में धारा 144 लगे रहना, बात बात में अशांति भंग की आशंका जताना, प्रतिनिधियों का चालान करना, ये सब निंदनीय है।
वरिष्ठ पत्रकार तुलसीदास ने कहा कि आज की सरकार प्रतिरोध की राजनीति तो दूर, मतभेद की सार्वजनिक अभिव्यक्ति के लिए भी कोई गुंजाइश छोड़ने को तैयार नहीं है। ऐसे में हमें प्रतिरोध को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाने के लिए नए रास्ते खोजने होंगे।
सोमनाथ जी के राजनीतिक सहकर्मी रहे प्रो. राकेश कुमार सिन्हा ने अपने सन्देश में कहा कि भारत जोड़ो यात्रा से एक माहौल बनना शुरू हुआ लगता है लेकिन नीतियों, खासतौर पर अर्थनीति पर स्पष्टता के अभाव में इस प्रयास से प्रतिरोध की राजनीति को बल मिलने की संभावना क्षीण प्रतीत होती है।
वरिष्ठ समाजवादी विजय नारायण ने कहा कि सोमनाथ ने अपनी तरुणाई से लेकर जीवन के अंतिम पहर तक समाज को बेहतर बनाने के लिए योगदान किया और विचार, संगठन और आंदोलन के संदर्भ में अनुकरणीय प्रतिबद्धता का जीवन जिया। सोमनाथ का जन्म 15 अगस्त 1947 को देवरिया में हुआ था। सम्पूर्णानन्द विवि में कर्मचारी और फिर अध्यापन का कार्य करते हुए उन्होंने पूरा जीवन समाजवादी आंदोलनों को दिया। कोविड के दौरान 2020 में उनकी असमय मृत्यु हो गयी।
समाजविज्ञानी प्रो आनंद कुमार ने अपने सन्देश में लिखकर भेजा कि हम दोनों की राजनीतिक यात्रा का पहला पड़ाव समाजवादी युवजन सभा थी और अंतिम दौर में स्वराज अभियान ने हमें एकजुट रखा। मेरे मन में पांच दशकों के सक्रिय संबंध के आधार पर उनकी एक हंसमुख छबि है – मददगार साथी, समर्पित समाजवादी और कर्तव्यनिष्ठ नायक। सोमनाथ जी की स्मृति को विनम्र नमन। युवावस्था के सबसे आत्मीय और निकटस्थ मित्रों में एक थे सोमनाथ जी। मित्र कहने से बेहतर होगा कि उन्हें भाई कहूँ। सुख-दुख के साथी थे वे। वे सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय में सक्रिय थे और मैं बीएचयू में। इस फासले को दूर किया समाजवादी युवजन सभा ने, जिसका नेतृत्व श्री किशन पटनायक जी कर रहे थे उस समय। लोहिया जी और किशन जी के विचारों और उनके विचारोत्तेजक साहित्यों का आदान-प्रदान करते करते हम दोनों के निजी रिश्ते कब प्रगाढ़ हो गए, बताना कठिन है लेकिन यह बेहिचक कह सकता हूँ कि भाई सोमनाथ जी समाजवादी विचारधारा के प्रति जीवनपर्यंत समर्पित रहे। यह बात दीगर है कि संगठन टूटते-बिखरते गए और उसमें बदलाव आता गया।
सोमनाथ जी के अनन्य मित्र और आपातकाल में जेल गए लोकतंत्र सेनानी अशोक मिश्र ने मोबाइल से सन्देश में कहा कि वर्तमान समय में जब उस साथी की सख्त जरूरत है, वे भौतिक संसार से अलग हो गए…अत्यंत दुखद है। हम दोनों एकसाथ कोरोना के शिकार हुए। मैं हूँ, वो नहीं, लेकिन आज हमारी स्थिति ऐसी है कि उनकी स्मृति में आयोजित आयोजन में भी हिस्सा लेने में असमर्थ हूँ।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में सुनील सहस्रबुद्धे ने कहा कि सोमनाथ जी की सबसे बड़ी विशेषता थी साथियों से अनवरत सम्पर्क बनाए रखना, जो संगठन को मजबूत बनाने के लिए जरूरी होता है। मुझे याद नहीं कि जिस व्यक्ति से वे जुड़े उससे उनका संबंध टूटा हो। विचारधारा से सोमनाथ जी ने कभी समझौता नहीं किया। स्वराज इंडिया में सक्रिय रहे हों या समता संगठन के लिए काम किया हो, चरित्र समाजवादी योद्धा का ही रहा।
कार्यक्रम में उपर्युक्त वक्ताओं के साथ ही वल्लभ पांडेय, संजीव सिंह, नन्दलाल मास्टर, राधेश्याम सिंह, प्रह्लाद तिवारी, अफलातून, प्रो महेश विक्रम सिंह, रामजनम, अशोक श्रीवास्तव, रंजू सिंह, सुरेंद्र सिंह, एड राजेश यादव, एकता शेखर, डॉ इंदु पांडेय, महेश, दीनदयाल, वरुण, जसवीर सिंह, राजेंद्र चौधरी, विमल त्रिपाठी आदि की प्रमुख भागीदारी रही। कार्यक्रम का संचालन फादर आनंद और धन्यवाद ज्ञापन रवि शेखर ने किया।
– वल्लभ
साझा संस्कृति मंच