4 मई। सुप्रीम कोर्ट ने 25 अप्रैल, 2022 को गुजरात के आँगनवाड़ी केंद्रों में एक लाख से अधिक श्रमिकों को राहत दी, जब एक बेंच ने श्रमिकों के ग्रेच्युटी भुगतान के अधिकार को स्वीकार किया। स्थानीय आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं द्वारा लगभग 16 साल की कानूनी कार्यवाही का का समापन हुआ। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अदालत का फैसला हाल के बजट आवंटन के खिलाफ आँगनवाड़ी समूहों के विरोध को महत्त्व देता है।
15 मार्च के आसपास, दिल्ली की आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं (AWW) ने एकीकृत बाल विकास सेवाओं (ICDS) के तहत बजट आवंटन में वृद्धि, और आँगनवाड़ी सहायिकाओं (AWH) के लिए न्यूनतम मजदूरी, पेंशन की माँग की। उस समय ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ आँगनवाड़ी वर्कर्स एंड हेल्पर्स (एआईएफएडब्ल्यूएच) के महासचिव ए.आर. सिंधु ने बताया कि 26 लाख आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और आँगनवाड़ी सहायिका ग्रामीण परिवारों को भोजन और स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करते हैं। कोविड -19 के दौरान, कुछ आँगनवाड़ी वर्कर्स, आँगनवाड़ी सहायिका, आशा और मध्याह्न भोजन वर्कर्स की पर्याप्त सुरक्षा के बिना जान भी चली गयी थी।
सिंधु ने कहा, “AWWs, AWH और मिड डे मील वर्कर्स ने [ICDS, MDM, NHM] लाभार्थियों को डोर-टू-डोर सेवा दी है। सरकार ने कोई जोखिम भत्ता नहीं दिया है, और न ही उन्हें कोई सुरक्षा उपकरण मुहैया कराया है। कोविड -19 से लड़ते हुए कई आशा, आँगनवाड़ी कार्यकर्ता और आँगनवाड़ी सहायिका शहीद भी हुई हैं।”
AIFAWH के अनुसार, इन योजनाओं के माध्यम से 14 वर्ष से कम उम्र के 20 करोड़ से अधिक बच्चों और 3 से 5 करोड़ महिलाओं को भोजन और स्वास्थ्य का मूल अधिकार मिलता है। हालांकि, 2021-22 के केंद्रीय बजट में मोदी सरकार ने ICDS आवंटन में 30 प्रतिशत की कमी की। इसी तरह एमडीएम योजना को इस साल ₹1,400 करोड़ और फिर ₹1,200 करोड़ की कटौती का सामना करना पड़ा। इस तरह की वित्तीय कटौती के कारण कर्मचारियों को कई महीनों तक मामूली पारिश्रमिक का भुगतान भी नहीं किया जाता है।
आँगनवाड़ी योगदान को स्वीकार करते हुए अपने फैसले में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति अभय एस. ओका ने आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और आँगनवाड़ी सहायिकाओं को सौंपे गए “सर्वव्यापी कर्तव्यों” को मान्यता दी। इनमें लाभार्थियों की पहचान, पौष्टिक भोजन पकाना, लाभार्थियों को स्वस्थ भोजन परोसना, 3-6 साल के बच्चों के लिए प्री स्कूल आयोजित करना और विभिन्न कारणों से घर-घर जाना शामिल है। इन सबके लिए, गुजरात की आँगनवाड़ी कार्यकर्ता 7,800 रुपये मासिक पाती हैं, और आँगनवाड़ी सहायिका को केवल ₹3,950 मासिक मिलते हैं। मिनी आँगनवाड़ी केन्द्रों में आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को ₹ 4,400 प्रतिमाह मिलते हैं।
अदालत ने आदेश में कहा, “इसके तहत निर्दिष्ट कर्तव्यों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, यह पूर्णकालिक रोजगार है। इसके अलावा, प्री-स्कूल शिक्षा प्रदान करना एक कर्तव्य है। इन सबके लिए उन्हें केंद्र सरकार की एक बीमा योजना के तहत बहुत कम पारिश्रमिक और मामूली लाभ दिया जा रहा है। समय आ गया है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारें आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सहायिकाओं की दुर्दशा को गंभीरता से लें, जिनसे समाज को ऐसी महत्त्वपूर्ण सेवाएँ देने की उम्मीद की जाती है।”
(‘सबरंग इंडिया’ से साभार)