8 मई। दिनांक 2-3 मई 2022 की रात सिवनी जिले (मप्र) के कुरई पुलिस थाना के बादलपार पुलिस चौकी अन्तर्गत सिमरिया गांव में गाय काटने के शक में बजरंग दल और श्रीराम सेना की उग्र भीड़ ने आदिवासियों पर हमला कर दिया। बीच-बचाव करने आयी घर की महिलाओं के साथ अभद्रता की गयी। इस घटना में बजरंग दल और श्रीराम सेना के 20 से अधिक कार्यकर्ताओं ने शेर सिंह चौहान के नेतृत्व में यह अंजाम दिया। अत्यधिक मारपीट करने से धानसा इनवाती और संपत बट्टी की पुलिस हिरासत के दौरान में मौत हो गयी और एक अन्य व्यक्ति नाजुक हालत में अस्पताल में भर्ती है।
जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) ने बजरंग दल और श्रीराम सेना के हमले की कड़ी निन्दा करते हुए एक बयान जारी किया है। बयान इस प्रकार है-
ज्ञात हो कि आदिवासी समुदाय सबसे बड़ा पशुपालक समाज है। ये अपने पशु को परिवार का हिस्सा मानते हैं। महाकौशल के आदिवासी समाज में गोमांस खाने की कोई परम्परा नहीं रही है। अगर कोई शक था तो इस जानकारी कुरई थाना प्रभारी को देना चाहिए था और उनके साथ जाकर पकड़वाना चाहिए था। खुद कानून व्यवस्था हाथ में लेना यह जंगल राज का प्रतीक है। हम इसकी घोर भर्त्सना करते हैं। आदिवासियों का प्रकृति धर्म रहा है। इसके प्रणेता बिरसा मुंडा थे। जहां शासन बिरसा मुंडा की जयंती करोड़ों रुपया खर्च कर मनाता है, उसी प्रदेश में आदिवासियों की संस्कृति पर हमला कैसे?
संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत आदिवासियों को मिली सुरक्षा और पेसा के तहत मिले जनतांत्रिक अधिकार को कुचला जा रहा है। जीने के अधिकारों को भी नकारात्मक सोच से दरकिनार किया जा रहा है।
आदिवासियों पर अत्याचार की यह पहली घटना नहीं है। साल सितंबर 2021 में बिस्टान (खरगोन) और ओंकारेशवर (खंडवा) के बिसन भील और किशन निहाल की पुलिस हिरासत में मौत हो गयी। न्यायिक जाँच में पुलिसकर्मी दोषी पाया गया। अगस्त 2021 में नीमच में गरीब आदिवासी मजदूर कन्हैयालाल भील को सड़क पर घसीटा गया और पीट-पीटकर कर मार डाला गया। इसी प्रकार मई 2021 में नेमावर के कोरकु आदिवासी परिवार की हत्या की गयी। केन्द्रीय जनजातीय मंत्रालय की 2020-21 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक आदिवासियों के खिलाफ अपराध और अत्याचार देश में सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश की हिस्सेदारी 23 फीसदी है।
एक आंकड़े के अनुसार 2017 से 2020 के बीच मध्यप्रदेश में आदिवासियों के खिलाफ अपराध और अत्याचार के 8480 मामले दर्ज हुए हैं। उपरोक्त घटनाओं के संदर्भ में ‘जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय’ (एनएपीएम) मध्यप्रदेश सरकार से मांग करता है कि आदिवासी क्षेत्रों में धर्मान्ध प्रचार और हिंसा को रोका जाए। आदिवासी संस्कृति एवं परम्पराओं की रक्षा की जाए। इस हत्याकांड के मामले को फास्ट ट्रैक कोर्ट में चलाकर पीड़ित परिवार को त्वरित न्याय दिलाया जाए। जिले में कानून व्यवस्था को संभालने वाले अक्षम अधिकारियों पर दंडात्मक कार्रवाई की जाए।
– राजकुमार सिन्हा, मेधा पाटकर