11 मई। स्वराज इंडिया राजद्रोह कानून को निलंबन में रखे जाने सम्बन्धी माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है। यह फैसला लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा में ऐतिहासिक न्यायिक कदम है। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को इस कानून (124 ए आईपीसी) की समीक्षा करने, और समीक्षा की अवधि में इस कानून के तहत पहले से चल रहे मामलों को निलंबन में रखने का आदेश दिया है। साथ ही न्यायालय ने उम्मीद व विश्वास जताया कि इस दौरान केंद्र व राज्य सरकारें राजद्रोह के इस कानून के तरह मुकदमा दर्ज नहीं करेंगी।
राजद्रोह के कानून का सत्तारूढ़ दलों द्वारा असंतोष को दबाने और आलोचकों को दंडित करने के लिए अक्सर दुरुपयोग किया जाता है। 2014-19 के बीच दर्ज किए गए 326 राजद्रोह के मामलों में से सिर्फ 6 लोगों को सजा हुई है। इसका इस्तेमाल नागरिकता आंदोलन और किसान आंदोलन में प्रदर्शनकारियों के खिलाफ और यहां तक कि हाथरस बलात्कार मामले में रिपोर्टिंग के लिए भी किया गया है।
राजद्रोह कानून औपनिवेशिक युग का अवशेष है, जिसका इस्तेमाल महात्मा गांधी और लोकमान्य तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ किया गया था। संवैधानिक लोकतंत्र में इसका कोई स्थान नहीं है। स्वराज इंडिया ने उम्मीद जताई है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगायी गयी इस रोक के दौरान संसद दफा 124 के इस प्रावधान को निरस्त कर देगी, या फिर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया जाएगा।