23 मई। गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा सरकार को एक बड़ा झटका लगा है। आदिवासियों के भारी विरोध के कारण राज्य सरकार को अपने महत्त्वाकांक्षी प्रोजेक्ट से कदम पीछे खींचना पड़ा है। राज्य सरकार ने पार-तापी नर्मदा रिवर लिंक प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया है। कुछ दिनों पहले तक भाजपा सरकार इस प्रोजेक्ट को राज्य की एक अहम योजना के रूप में चिह्नित कर रही थी। लेकिन आदिवासियों के लगातार विरोध के बाद उन्होंने इसे रद्द कर दिया है।
MN News के अनुसार, आदिवासी समुदाय इस प्रोजेक्ट का लंबे समय से विरोध कर रहा था। गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस परियोजना के चलते बीजेपी सरकार को आदिवासी वोट बैंक के छिटक जाने का खतरा पैदा हो गया था। हाल ही में तापी के सोनगढ़ में आदिवासी समुदाय द्वारा एक रैली का आयोजन किया गया था। इस दौरान पीएम मोदी के नाम पोस्टकार्ड लिखकर भी इस प्रोजेक्ट को रद्द करने की माँग की गयी थी। इस प्रोजेक्ट पर चल रहे भारी विरोध के बाद आज सूरत में मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने इसे रद्द करने की घोषणा की।
कांग्रेस ने इस परियोजना को आदिवासियों के हितों के विरुद्ध करार देते हुए इसे पूरी तरह रद्द किए जाने की माँग की थी। बीते दिनों कांग्रेस प्रवक्ता शक्ति सिंह गोहिल ने कहा था, कि कांग्रेस विकास के खिलाफ नहीं है, लेकिन चंद पूँजीपतियों को फायदा पहुँचाने के लिए हजारों आदिवासी परिवारों को नुकसान पहुँचाने की कोई बात करेगा, तो हम उसका पुरजोर विरोध करेंगे। इन परियोजनाओं को वर्ष 2010 में मंजूरी दी गयी थी, जब केंद्र सरकार, गुजरात और महाराष्ट्र के बीच त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
पार-तापी-नर्मदा लिंक परियोजना के जरिए पश्चिमी घाट के पानी को सौराष्ट्र और कच्छ के पानी की कमी वाले क्षेत्रों में भेजा जाना था। लंबे समय से दक्षिण गुजरात के आदिवासी इसका विरोध कर रहे थे। आदिवासी नेताओं का कहना है, कि गुजरात के डांग, वलसाड और महाराष्ट्र के नासिक जिले में छह जलाशय विकसित होने से गुजरात के करीब 50,000 लोग सीधे तौर पर प्रभावित होंगे। इनमें से तीन बांध डांग में, एक वलसाड में और दो महाराष्ट्र में विकसित किए जाने थे।
डांग जिले के वाघई तालुका में बननेवाले तीन बांधों के डूब क्षेत्रों में कम से कम 35 गाँवों के पूरी तरह से जलमग्न होने का खतरा था। आदिवासियों का कहना था, कि नदी जोड़ने की परियोजना की लागत 10,211 करोड़ रुपए है, और अगर सरकार सौराष्ट्र और कच्छ में सिंचाई के लिए बड़े बाँध बनाना चाहती है तो उन्हें वहाँ इन बाँधों को विकसित करना चाहिए। यहाँ बाँध बनाने और वहाँ पानी लेने का कोई मतलब नहीं है।
आदिवासी नेताओं का यह भी कहना है, कि केंद्र ने नर्मदा योजना की विफलता को छिपाने के लिए परियोजना को डिजाइन किया है। परियोजना के परिणामस्वरूप डांग, वलसाड और तापी जिलों में सैकड़ों आदिवासी विस्थापित होंगे। सागौन, बांस और अन्य लकड़ियों से भरपूर डांग के जंगल जलमग्न हो जाएंगे। आदिवासी नेताओं का कहना है, कि उन्होंने नर्मदा योजना, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी, उकाई आदि कई परियोजनाएं देखी हैं, जहाँ आदिवासियों को उनकी भूमि से विस्थापित होने के लिए मुआवजा दिया जाना बाकी है।