— योगेंद्र यादव —
आखिर सरकार ने महॅंगाई की सच्चाई को स्वीकार कर ही लिया। क्या अब सरकार महॅंगाई यहॉं तक पहुॅंचने में अपनी जिम्मेवारी भी स्वीकार करेगी? बीमारी को काबू करने से पहले मोदी सरकार को उन चार बहानों को काबू करना होगा जिनके सहारे उसने अब तक अपनी जिम्मेवारी टाली है। महॅंगाई के कड़वे सच का सामना करना इस संकट के समाधान का पहला कदम होगा।
पहला बहाना
“महॅंगाई तो हमेशा घटती बढ़ती रहती है। जैसे चढ़ी है, वैसे उतर जाएगी। कोई चिंता की बात नहीं है।”
इस बहाने का भंडाफोड़ खुद सरकार के ऑंकड़े कर चुके हैं। पिछले सप्ताह जारी मुद्रास्फीति के ऑंकड़ों के अनुसार अप्रैल 2021 से 2022 के बीच महॅंगाई का थोक सूचकांक 15.1 फीसद और उपभोक्ता सूचकांक 7.8 फीसद बढ़ा था। उपभोक्ता सूचकांक में घरेलू इस्तेमाल की वस्तुओं (खाना, कपड़ा, पेट्रोल, सेवाएं आदि) के दाम शामिल किए जाते हैं जबकि थोक सूचकांक में उद्योग और व्यापार में इस्तेमाल की जानेवाली वस्तुओं (स्टील, बिजली, रसायन, धातु, औद्योगिक उत्पाद आदि) के थोक दाम भी शामिल किए जाते हैं । सरकारी ऑंकड़े बताते हैं कि घरेलू खर्च में इतनी महॅंगाई 2013 के बाद पहली बार हुई है। जबकि थोक वस्तुओं की महॅंगाई 1991 के बाद से पिछले 30 साल में इतनी अधिक कभी नहीं हुई। सरकार के अपने कानून के हिसाब से यह महॅंगाई उपभोक्ता सूचकांक में 6 फीसद की अधिकतम स्वीकार्य सीमा से बहुत ऊपर जा चुकी है। आटा, सब्जी, रसोई का तेल, केरोसीन, गैस आदि की महॅंगाई गरीब का जीवन दूभर कर रही है। रिजर्व बैंक की महॅंगाई रोकने वाली समिति (एमपीसी) कई महीनों से इसपर चिंता व्यक्त कर रही है। सभी अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि मामला यहॉं रुकनेवाला नहीं है। अभी महॅंगाई और बढ़ेगी।
दूसरा बहाना
“यह महॅंगाई यूक्रेन युद्ध की वजह से है। महॅंगाई पूरी दुनिया में है, भारत की क्या बिसात।”
यह बात पूरी तरह झूठ नहीं है लेकिन यह ऐसा अर्धसत्य है जो हमें भ्रमित कर सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया भर में सप्लाई चेन बाधित हुए हैं और महॅंगाई बढ़ी है। लेकिन भारत के सरकारी ऑंकड़े साफ करते हैं कि हमारी यहॉं महॅंगाई का थोक सूचकांक यूक्रेन युद्ध से बहुत पहले पिछले 13 महीनों से 10 फीसद का ऑंकड़ा पार कर चुका था। युद्ध की वजह से दुनिया में खाद्यान्न का दाम बढ़ा है, लेकिन इसका कोई असर भारत पर नहीं पड़ना चाहिए था, चूंकि हम गेहूॅं विदेश से आयात नहीं करते।
तीसरा बहाना
“अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम अचानक बढ़ गए जिससे हमारे यहॉं भी डीजल, पेट्रोल, गैस और उसके चलते बाकी चीजों के दाम भी बढ़े।”
यह बात सरासर झूठ है। सच यह है कि मई 2014 में जब श्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी उस वक्त अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम $106 प्रति बैरल था। फिर कई साल तक दाम बहुत गिरे और पिछले कुछ समय से वापस चढ़े। आठ साल बाद मई 2022 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम फिर से बराबर $106 प्रति बैरल ही है। लेकिन इस बीच पेट्रोल का दाम ₹71 से बढ़कर ₹102 (कटौती के बाद 97 रु), डीजल का दाम ₹55 से बढ़कर ₹96 (कटौती के बाद 90 रु) और गैस सिलिंडर का दाम रु 410 से बढ़कर 1000 रु हो गया है। मतलब यह कि पेट्रोल, डीजल और गैस के दाम में बढ़ोतरी की वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार नहीं बल्कि केंद्र सरकार और कुछ हद तक राज्य सरकारों द्वारा बढ़ाए गए टैक्स हैं। वर्ष 2014 में केंद्र सरकार पेट्रोल पर टैक्स से 99,000 करोड़ रुपया कमाती थी जो 2021 में बढ़कर 3,72,000 करोड रुपए हो गया।
चौथा और सबसे बड़ा बहाना
“महॅंगाई रोकने के लिए सरकार जो कुछ कर सकती थी उसने किया है। हाल ही में रिजर्व बैंक में ब्याज की दर बढ़ाई है और केंद्र सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स घटा दिए हैं। इससे ज्यादा सरकार क्या कर सकती है?”
सच यह है कि मोदी सरकार ने महॅंगाई को हल्के में लिया, शुरुआती चेतावनी को नजरअंदाज किया और इसे काबू करने की हर कोशिश में अड़ंगा लगाया। हाल ही में “रिपोर्टर्स कलेक्टिव” नामक समूह ने रिजर्व बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी के कामकाज को लेकर सनसनीखेज खुलासे किए हैं। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त किए इन कागजात से पता लगा है कि वित्त मंत्रालय ने 2019 और 2020 में महॅंगाई रोकने के लिए बनी समिति के काम में गैरकानूनी तरीके से दखल दिया और उद्योगपतियों के हितों की रक्षा के लिए ब्याज की दर बढ़ाने की सिफारिश को लागू नहीं होने दिया। यही नहीं, वित्त मंत्रालय के एक दस्तावेज में यह दावा किया गया कि महॅंगाई के बारे में चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसका असर गरीबों पर नहीं, चंद अमीरों पर पड़ेगा।
सच यह है कि इस मनःस्थिति के चलते सरकार ने महॅंगाई को रोकने में बहुत देरी कर दी। आज देश सरकार की इस कोताही का अंजाम भुगत रहा है। अब भी सरकार ने जो कदम उठाए हैं वे पर्याप्त नहीं हैं। पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स की जो कटौती हुई है वह पिछले कुछ हफ्तों की बढ़ोतरी को मुश्किल से बराबर करती है। आज भी केंद्र सरकार 2014 की तुलना में पेट्रोल पर दो गुना और डीजल पर चार गुना ज्यादा टैक्स वसूल रही है। आज भी सरकार गेहूं की पर्याप्त खरीद कर आटे के दाम को नियंत्रित नहीं कर पा रही है। आज भी रिजर्व बैंक ब्याज की दरें बढ़ाने में देरी कर रहा है। देखना है कि देरी से आने के बाद सरकार की चेतना दुरुस्त होने में अभी कितना वक्त लगेगा।
(नवोदय टाइम्स से साभार)