मोहम्मद अली जिन्ना अपने प्रारंभिक वर्षों में इंडियन नेशनल कांग्रेस के सदस्य थे। वे न केवल पक्के देशभक्त थे, बल्कि सभी किस्म के संकुचित और सांप्रदायिक विचारों से भी मुक्त थे। आरंभिक कई साल तक वे मुस्लिम लीग के सदस्य नहीं बने थे क्योंकि मुस्लिम लीग को वे एक बहुत पीछे-देखू और प्रतिक्रियावादी संस्था मानते थे। लेकिन 1912-13 के बाद मुसलमानों में जो नयी चेतना जगी, उसका मुस्लिम लीग पर भी असर हुआ और मुस्लिम लीग ने अपने उद्देश्यों में बुनियादी परिवर्तन किए। यह परिवर्तन करने के लिए मुसलमानों की जो प्रतिनिधिक बैठक बुलाई गई थी, उसमें जिन्ना साहब को भी आमंत्रित किया गया था। लीग के नेताओं ने जिन्ना साहब को यह आश्वासन दिया था कि मुस्लिम लीग के उद्देश्यों में इस तरह परिवर्तन किया जाएगा कि जिससे उसके उद्देश्य कांग्रेस के उद्देश्यों के समान हो जाएंगे। इसी आश्वासन पर जिन्ना साहब ने इस सम्मेलन में शिरकत की थी।
1916 में लखनऊ में मुस्लिम लीग का जो अधिवेशन हुआ उसमें जिन्ना साहब ने कहा था : “पूरे मुल्क में अपनी नियति (डेस्टिनी) के बारे में एक नई चेतना जग रही है। पूरा मुल्क नए क्षितिज की ओर आशाभरी नजरों से देख रहा है। एक किस्म की नयी जागृति, आत्मविश्वास फैल रहा है। सारी दिशाओं में नवजीवन की झलक दिखाई दे रही है। यह जो नयी आशा हिंदुस्तान के देशभक्तों को प्रेरित कर रही है उसमें हिंदुस्तान के मुसलमान यदि साझेदारी नहीं करेंगे या मुल्क की जो पुकार है उसको नहीं सुनेंगे तो वे अपने साथ और अपनी परंपराओं के साथ धोखा करेंगे। मुसलमानों की दृष्टि भी अपने हिंदू भाइयों की तरह अब भविष्य की ओर लगी हुई है।” (मोहम्मद अली जिन्ना :एन अंबेसडर आफ यूनिटी)
जिन्ना साहब का यह भाषण इस बात का परिचायक है कि वे स्वयं तो राष्ट्रवादी थे ही, मुसलमानों को भी भारतीय राष्ट्रवाद की मुख्यधारा में लाना चाहते थे। अलगाव की भावना उन्हें स्पर्श तक नहीं कर पायी थी।
उसी अधिवेशन में जिन्ना साहब आगे कहते हैं : “दूसरी बात यह याद रखनी चाहिए कि इस समय एक बहुत ही शक्तिशाली और हमें एकत्र करनेवाली प्रक्रिया अस्तित्व में आयी है। यों कहिए कि यह पश्चिम की शिक्षा का सबसे दिलचस्प और शक्तिशाली नतीजा है कि विभिन्न वंशों, धर्मों और जातियों से बना एक नया हिंदुस्तान अपने उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ रहा है। विचारों, उद्देश्यों, नजरिये और भौगोलिक देश-भक्ति और राष्ट्रीयता का जो तकाजा है, उसका मुसलमान भी साथ दे रहे हैं। एक नयी शक्ति का सृजन हो रहा है। नयी आकांक्षाओं का जन्म हो रहा है और पूरा देश एकरस होकर अपना जो जन्मसिद्ध अधिकार है, अपने शासन को अपने हाथ में लेने का, अपने घर में अपना मालिक बनने का, उसको सँभालने के लिए तैयार हो रहा है।”
जिन्ना साहब के भाषण से इस बात का पता चलता है कि उस समय वे स्वयं को इंडियन नेशनलिस्ट या हिंदुस्तानी राष्ट्रवादी कहलाने में गौरवान्वित महसूस करते थे और राष्ट्र-निर्माण के कार्य में जो बाधाएँ थीं, उनको नजरअंदाज करते हुए, इस कार्य को पूरा करने के लिए कृतसंकल्प थे। राष्ट्र-निर्माण के लिए उन्होंने नेशन-बिल्डिंग शब्द का प्रयोग किया है : “आज देश में विभिन्न हित संबंधों का टकराव हो रहा है। कई मूर्खतापूर्ण नारे दिए जा रहे हैं। फिर भी वस्तुनिष्ठ और शांतिपूर्वक ढंग से सोचनेवाले निरीक्षक हैं वे इस बात को जानते हैं कि हिंदुस्तान सबसे पहले और सबसे आखिर में हिंदुस्तानियों के लिए है। चाहे थोड़ा अधिक वक्त लगे या कम, हिंदुस्तान अब निश्चित रूप से स्वयंशासित राष्ट्र का दर्जा अवश्य पाएगा। दुनिया में कोई ऐसी शक्ति नहीं जो यहाँ की जनता को अपनी नियति से दूर रख सके।” (उपरोक्तः पृ. 41-42)
जिन्ना साहब का विश्वास था कि “हिंदुस्तान में जवाबदेह और प्रातिनिधिक शासन स्थापित किया जाए। इसके लिए जो कई तर्क अनेक बार दिए गए हैं उनके अलावा सबसे महत्त्वपूर्ण तर्क यह है कि यहाँ देशभक्ति की तीव्र, जिंदा एवं शक्तिशाली भावना तथा राष्ट्रीय जागृति है जो तरह-तरह के प्रतिबंधों के बावजूद व्यापक और न्यायपूर्ण आत्मप्रकटीकरण का रास्ता खोज रही है। ऑल इंडिया मुस्लिम लीग और इंडियन नेशनल कांग्रेस कंधे से कंधा मिलाकर समूचे मुल्क की प्रगति के लिए, देशभक्ति की भावना से प्रेरित समप्रयास और साझेदारी के लिए तैयार है।” (उपरोक्त, पृ. 45)
इसी अभिभाषण में जिन्ना साहब कहते हैं : “नया हिंदुस्तान एक बिल्कुल नए किस्म के सार्वजनिक कार्यकर्ताओं की माँग कर रहा है। ये सार्वजनिक कार्यकर्ता उदारता से ओत-प्रोत और व्यापक दृष्टिकोण युक्त होने चाहिए। उनमें संप्रदाय के प्रति दुरभिमान नहीं होना चाहिए। न उनका दृष्टिकोण तंगदिलों का होना चाहिए। ये सार्वजनिक कार्यकर्ता ऐसे होने चाहिए जो दुर्बलों को दबाना न चाहें, न शक्तिशालियों के आक्रमण के सामने झुकें या काँपें। ये कार्यकर्ता तात्कालिक और छोटे स्वार्थों में उलझने के बजाय ऊँचे स्तर की निष्ठा और सेवा का परिचय देनेवाले होने चाहिए ताकि साधारण लोगों में श्रद्धा, स्वतंत्रता और शक्ति का संचार हो।”
जिन्ना के इन विचारों से पता चलता है कि उन दिनों गोपाल कृष्ण गोखले के व्यक्तित्व तथा आदर्शों से अत्यधिक प्रभावित थे। गोखले ने अपने भारत सेवक समाज में ऐसे ही कार्यकर्ताओं को भर्ती किया था।
पृथक मतदाता सूची के प्रश्न पर जिन्ना साहब की राय थी कि उस प्रश्न को न छेड़ा जाए। बम्बई प्रांतिक सम्मेलन, जो कि अक्तूबर 1916 में अहमदाबाद में हुआ था, के अध्यक्ष पद से दिए गए भाषण में जिन्ना साहब ने कहा था :“पृथक मतदाता सूची और मतक्षेत्रों का प्रश्न हमारे मुल्क के सामने 1909 से है। सही या गलत, मुसलमान समाज आज पृथक मतदाता सूची के लिए प्रतिबद्ध है। जब इस पर अधिकतर लोग कोई बहस या चर्चा नहीं चाहते। एक माने में मुसलमान समुदाय की इस पर व्यापक सहमति है। मुसलमानों के लिए यह रणनीति का मामला नहीं है बल्कि यह उनकी निरी आवश्यकता है। जिस गहरी नींद में मुसलमान समुदाय पड़ा हुआ है, उससे यदि उनको जागना है तो उनके लिए यह एक आवश्यकता है। इसलिए मैं अपने हिंदू भाइयों से अपील करना चाहता हूँ कि मुसलमानों का यकीन और विश्वास हासिल करने के लिए वे अब इस पर बहस न करें। आखिर मुसलमान इस देश में अल्पमत में हैं अतः यदि वे पृथक मतदाता सूची चाहते हैं तो उसका प्रतिरोध नहीं होना चाहिए।” (उपरोक्त, पृ. 99-100)
उपरोक्त उद्धरणों से स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान के निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना प्रारंभ में कट्टर राष्ट्रवादी थे। हिंदू-मुसलमान एक राष्ट्र के नागरिक हैं, ऐसा उनका कहना था। उनकी मान्यता थी कि “पाश्चात्य विद्या के प्रसार से मुल्क में एक नयी शक्तिशाली एकीकरण की प्रक्रिया ने जन्म लिया है। यह पश्चिमी शिक्षा तथा आदर्शों का अत्यन्त प्रभावशाली और दिलचस्प परिपाक हैं। उनका कहना था कि बावजूद पचासों किस्म की विभिन्नताओं के देश में विचार, उद्देश्य और दृष्टिकोण में उत्तरोत्तर एकता आ रही है, राष्ट्रीयता तथा भौगोलिक देशभक्ति की नयी भावना लोगों को आकर्षित कर रही है।”(उपरोक्त, पृ. 30)