28 मई। कोरोना के कारण न सिर्फ देश के लोगों को जानमाल का नुकसान हुआ बल्कि इसका असर दूसरे क्षेत्रों पर भी देखा जा रहा है। हकीकत ये है, कि लोगों की नौकरी गई, लाखों लोग बेरोजगार हुए लेकिन सबसे ज्यादा नुकसान पढ़ाई के क्षेत्र में हुआ है। बिहार भी इससे अछूता नहीं रहा। एक नए सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक कोविड 19 ने बिहार की स्कूली शिक्षा को काफी पीछे ढकेल दिया।
बुधवार को जारी की गई नेशनल अचीवमेंट सर्वे (एनएए ) 2021, की रिपोर्ट में खुलासा किया, कि राज्य को कोविड महामारी के दौरान कक्षा 3, 5, 8 और 10 में विभिन्न विषयों में छात्रों के प्रदर्शन के रूप में सीखने के गहरे संकट का सामना करना पड़ा। इन कक्षाओं के विद्यार्थियों के प्रदर्शन में 2017 में किए गए पिछले सर्वेक्षण की तुलना में भारी गिरावट दर्ज की गई है। कक्षा तीन में बिहार के छात्रों ने गणित में पिछले सर्वेक्षण में 318 की तुलना में औसतन 304 (500 में से) स्कोर किया। इसी तरह गणित में कक्षा पाँच के लिए अंक 2017 में 309 से नवीनतम रिपोर्ट में गिरकर 283 हो गया। बिहार में, आठवीं और दसवीं कक्षा के छात्रों के लिए औसत गणित स्कोर क्रमशः 262 और 229 दर्ज किया गया। जबकि 2017 में ये आँकड़ा 277 और 256 का था।
शिक्षा मंत्रालय के स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग ने 12 नवंबर को देश भर के सरकारी, निजी और सहायता प्राप्त स्कूलों में कक्षा 3, 5, 8 और 10 का मूल्यांकन शिक्षा व्यवस्था को समझने के लिए किया था। बिहार में 5,588 स्कूलों, 24,429 शिक्षकों और 1,70,564 विद्यार्थियों के प्रदर्शन का परीक्षण किया गया। कक्षा तीन में भाषा और पर्यावरण विज्ञान में बच्चों का प्रदर्शन 2017 में 336 और 317 था जो 2021 में गिरकर क्रमशः 317 और 301 हो गया। इसी तरह, कक्षा 5 में, छात्रों के प्रदर्शन में 2017 की तुलना में भाषा में 3.48 फीसदी और पर्यावरण विज्ञान में 9.9 फीसदी की गिरावट आई है। आठवीं कक्षा के मामले में भाषा (5.2 फीसदी) सहित सभी विषयों में गिरावट आई है।
दसवीं कक्षा में, छात्रों ने विज्ञान में (2017 में 239) और सामाजिक विज्ञान में 222 (पिछले सर्वेक्षण में 243) से औसतन 202 अंक हासिल किए। हालांकि, बिहार के छात्रों ने अंग्रेजी में अच्छा प्रदर्शन किया, 2017 में 230 के मुकाबले 259 और पिछली सर्वेक्षण रिपोर्ट में 230 की तुलना में आधुनिक भारतीय भाषा में 250 थे। एनएएस 2021 ने यह भी पाया कि सर्वेक्षण में शामिल 53 फीसदी छात्रों की डिजिटल उपकरणों तक पहुँच नहीं थी, जबकि 45 फीसदी को महामारी के दौरान घर पर पढ़ाई करने में कठिनाई का सामना करना पड़ा। 60 फीसदी ने कहा कि उन्होंने महामारी के दौरान चिंता और भय का अनुभव किया।
दरअसल एक गैरलाभकारी संस्था द्वारा शिक्षा की स्थिति पर हर साल एक रिपोर्ट जारी की जाती है, जिसे एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट यानी ‘असर’ कहा जाता है। बीते साल जारी असर की रिपोर्ट में कहा गया है, कि अभिभावकों ने आर्थिक तंगी के कारण अपने बच्चों का दाखिला निजी स्कूलों के बजाए सरकारी स्कूलों में कराया. इस वजह से सरकारी स्कूलों में 7 फीसदी एडमिशन बढ़ गया। ये इसलिए हुआ क्योंकि कोरोना में लोग आर्थिक रूप से कमजोर हुए हैं।
(MN News से साभार)