मुक्ता की तीन कविताएं

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पेंटिंग : कौशलेश पांडेय


1. डफली बजाता आदमी

डफली बजाता आदमी गाता था झूमकर
पहाड़ों, नदियों को वह बुलाता था टेर दे देकर
डफली बजाते आदमी के गीतों पर पग धरते उतर आते थे …पहाड़ी झरने
पूरा जंगल सुर मिलाता था… डफली बजाते आदमी के साथ
डफली बजाते आदमी के अंदर…बसता था पूरा जंगल
डफली बजाता आदमी आज बेदखल है अपने घर से…
जंगल से
सूरज का तेल उतर आया है उसके झंवाये चेहरे पर
सड़क पर खड़े डफली बजाते आदमी के अंदर धधक रही है भूख की आग
तेज होती जा रही है आग .…भूख के साथ
डफली बजाते आदमी के थिरकते पैरों को देखने की आशा में –
खुलते हैं कितने ही दरवाजे
बजती रहती है डफली…
सीधे तने आदमी के हाथों में
शिथिल थके पैरों में बची नहीं है थिरकन….शेष है केवल कंपन
बंद होते हैं दरवाजे…. डफली बजाते आदमी की पीठ पर
बंद दरवाजों के साथ –
मरते हैं आत्मा के मंत्रोच्चार।

2. तनी हुई औरतें

औरतें…. डरी हुई औरतें नहीं
ये संगीनों के आगे तनी हुई औरतें हैं
औरतें छीन लेती हैं तालीम
हवा में घूमती किताबों से
औरतें पढ़ लेती हैं कुम्हार के हाथों को चाक पर
औरतों को नहीं डराती हैं संगीनें
लैंगिक इबारतों की वहशतें
भाँप लेती हैं वे आँखों से
औरतें ढक लेती हैं बच्चों को आँचल से
ताकि बच्चे सुरक्षित रहें –
इस नासूरी धुएँ से
औरतों को मालूम है किसी भी देश की भूमि
इस धुएँ के घूर्णन से
नहीं है मुक्त
विजय पताकाओं से नापी जाती रही हैं सीमाएं
औरत की देह की –
किसी भी युद्ध में जिसे रौंदना
– सबसे आसान होता है
युद्व के बाद….अपने अंदर के भय को ढकने के लिए –
औरतों की देह पर बढ़ाये जाते हैं वस्त्रों के बोझ
फिर भी ….नहीं कम होता है वहशी ऑंखों का नंगापन
औरतें, बच्चों को सीने में छुपाये देख रही हैं
आततायी बारूद का बढ़ता असर
तनी हुई औरतों के आगे झुकने लगती हैं संगीनें

औरतें बचा लेना चाहती हैं
मिट्टी, चाक और कुम्हार के हाथों को।

3. बिखरी शब्दावलियाँ

शोक संतप्त हृदय की बूँदें
नम आँखों की दृश्यावलियाॅं
शब्द देने से घटती है …व्यथा
शब्दों में सिमटा प्रेम का अथाह संसार
मृत्यु -हाहाकार के बीच खो न जाएं शब्द…..
बची रहें संवेदनाएं
गाते जीवन की ओर खिंचा रहे मन
जो चले गये…. दे न सके जिन्हें कंधा
बिखरी शब्दावलियाँ….
बूँदें अमृत की
अंजुली उड़ेल
भर दो…..
किंचित मन मुक्त हो दुख भार से

जो हाथ अंजलि देते हैं.. वही उठते हैं प्रार्थना के लिए
यह बल उन्हें भी… रोग शैया पर जो त्रस्त हैं
प्रेमिल प्रार्थनाओं के वृत्त बने रहें
चहुँ ओर
प्राणों में शब्द उभरेंगे जीवन राग बन
साथ-साथ ……खिलेंगे शब्द।

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