भगवत रावत की कविता

0
पेंटिंग : प्रयाग शुक्ल
भगवत रावत (13 सितंबर 1939 – 25 मई 2012)

जो रचता है वह मारा नहीं जा सकता

मारने से कोई मर नहीं सकता
मिटाने से कोई मिट नहीं सकता
गिराने से कोई गिर नहीं सकता

इतनी सी बात मानने के लिए
इतिहास तक भी जाने की जरूरत नहीं
अपने आसपास घूम-फिरकर ही
देख लीजिए

क्या कभी आप किसी के मारने से मरे
किसी के मिटाने से मिटे
या गिराने से गिरे

इसका उलटा भी करके देख लीजिए
क्या आपके मारने से कोई …..
ख़ैर छोड़िए

हाँ हत्या हो सकती है आपकी
और आप उनमें शामिल होना चाहें
तो आप भी हत्यारे हो सकते हैं
बेहद आसान है यह
सिर्फ मनुष्य-विरोधी ही तो होना है
आपको

इन दिनों खूब फल-फूल भी रहा है यह
कारोबार
हर जगह खुली हुई हैं उसकी एजेंसियाँ
बड़े-बड़े देशों में तो उसके
शो-रूम तक खुले हुए हैं

तोपों के कारखानों के मालिकों से लेकर
तमंचा हाथ में लिये
या कमर में बम बाँधे हुए
गलियों में छिपकर घूमते चेहरों में
कोई अंतर कहाँ है
इस सबके बावजूद
जो जीता है सचमुच
वह अपनी शर्तों पर जीता है
किसी की दया के दान पर नहीं
वह अर्जित करता है जीवन
अपनी निचुड़ती
आत्मा की एक-एक बूँद से

उसकी हत्या की जा सकती है
उसे मारा नहीं जा सकता

इस सबके बावजूद वह रहता है
दूसरों को हटा-हटा कर
चुपचाप ऊँचे आसन पर जा बैठे
दोमुँहे, लालची, लोलुप आदमी की तरह नहीं

अपनी जमीन पर उगे
पौधे की तरह,
लहराता
निर्विकल्प
निर्भीक

दुनिया का सबसे कठिन काम है जीना
और उससे भी कठिन उसे, शब्द के
अर्थ की तरह रचकर दिखा पाना

जो रचता है वह मारा नहीं जा सकता
जो मारता है, उसे सबसे पहले
खुद मरना पड़ता है।

Leave a Comment