राजा रानी किसी का पानी
राजा रानी किसी का पानी नहीं भरते हैं हम
सींच कर बागों को अपने अब हरा करते हैं हम।
शर्म से सिकुड़ी हुई इस देह को हैं तानते
दोस्तो, अपने झुके कन्धे खड़ा करते हैं हम।
ऐसा करने में है जलता ख़ून, तुम मत खेल जानो
मोम जैसे दिल को पत्थर-सा कड़ा करते हैं हम।
मान जाएँ हार अपने ऐसी तो आदत नहीं
बाद मरने के भी काफ़िर मौत से लड़ते हैं हम।
आग भड़काने के पीछे अपना ही घर फूॅंक डालें
सोचिएगा मत कि ख़ाली शायरी करते हैं हम।