19 जून। आँगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका कल्याण संघ एवं आँगनवाड़ी कार्यकर्ता तथा सहायिका यूनियन के साझा मंच ने मिलकर छत्तीसगढ़ की समस्त आँगनवाड़ी बहनों की ज्वलंत समस्याओं को केंद्र में रखकर 7 से 11 जुलाई तक अपने-अपने संभाग में एक-एक दिन और राजधानी रायपुर में पाँचों दिन पुनः धरना देने का निर्णय लिया है।
पुनः इसलिए क्योंकि हाल ही में 9 व 10 जून को प्रदेश की एक लाख से अधिक आँगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका और मिनी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने भूपेश बघेल सरकार की नाक के नीचे रायपुर में धरना दिया था। ये महिलाएं अपने-अपने घरों में छोटे-छोटे बच्चों और पूरे परिवार को छोड़कर राजधानी की सड़कों पर खुले आसमान के नीचे भीषण गर्मी में भूखी-प्यासी पूरी रात बैठी रहीं। लेकिन भूपेश सरकार का दिल नहीं पसीजा।
जिला जशपुर आँगनवाड़ी खटंगा की कार्यकर्ता और यूनियन की जिलाध्यक्ष लीलावती चौहान बताती हैं, कि हम सब यूं ही नहीं बैठे थे, बल्कि हमारे पास मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की लिखित चिट्ठी है, जिसमें उन्होंने राज्य सरकार का मानदेय बढ़ाने की बात कही थी। यह तो दो दिन की बात है, इससे पहले वर्ष 2018 में 50 दिन तक प्रदेश की सारी आँगनवाड़ी कार्यकर्ता व सहायिका हड़ताल पर बैठी थीं और रमन सिंह सरकार को मजबूरन पंडाल पर आकर मानदेय बढ़ाने की घोषणा करनी पड़ी थी। परंतु उनका आश्वासन केवल जुमला बनकर रह गया। हम लोगों का मानदेय नहीं बढ़ाया गया।
अगर सरकार हमारी सुनती तो बहनों को रात भर इस भीषण गर्मी में सड़क पर क्यों बिताना पड़ता। उस समय सबसे ज्यादा दिक्कत तो शौचालय की रही। जमीन तप रही थी, पैदल चल नहीं पा रहे थे, आटो में बैठकर सुलभ शौचालय में बार-बार पैसे देकर फारिग होने जा रहे थे। भूपेश सरकार को तब भी शर्म नहीं आई। लेकिन हमलोग जुझारू महिलाएं हैं, घबराते नहीं, चाहे रात में शराबी तंग करे, मच्छर काटे, भूख-प्यास सब सह लेंगे, परंतु अपनी माँगों को सरकार से मनवाकर रहेंगे।
दरअसल छत्तीसगढ़ में मानदेय सबसे कम है। उन्हें केंद्र सरकार की आईसीडीएस योजना के तहत साढ़े 4 हजार रुपये मानदेय और राज्य सरकार की ओर से कार्यकर्ता को दो हजार एवं सहायिका को केवल एक हजार प्रतिमाह मानदेय दिया जाता है। जबकि मध्यप्रदेश में 10,500, हरियाणा में 12 हजार 800, पंजाब में 12 हजार 500, तमिलनाडु में 12 हजार 500, आंध्र प्रदेश में 12 हजार 500, तेलंगाना में 13 हजार, केरल में 13 हजार 500 रु. मानदेय आंगनवाड़ी बहनों को मिलता है। हालांकि यह मानदेय सरकारों ने अपने मन से नहीं बढ़ाया, इसके लिए बहनों को लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी।