— सुनील कुमार —
केंद्र सरकार द्वारा घोषित टूर ऑफ ड्यूटी ने देश भर में सैनिक भर्ती अभ्यर्थियों के बीच आक्रोश पैदा कर दिया है। इस आक्रोश में इतनी ऊर्जा है कि बिना किसी नेतृत्व और संगठन के सैनिक सेवाओं के सपने पाले युवाओं ने अपने दम पर देश भर का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया है तथा केंद्र सरकार को कुछ दिन में योजना में संशोधन करने पड़े। अग्निपथ तथा अग्निवीर के भारी-भरकम शब्दों की आड़ में केंद्र सरकार ने जो छल करने का प्रयास किया, उस छलावे को युवा समझ गए और इस योजना की घोषणा होते ही उग्र विरोध शुरू कर दिया।
हर आंदोलन की भाँति अग्निपथ योजना के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों को भी अनेक दृष्टिकोण से देखा जा रहा है, जिनमें से प्रमुख हैं- बेरोजगारी, राष्ट्रीय सुरक्षा और पूँजीपतियों को लाभ। जो सबसे दुखद पहलू है वो है युवाओं के सपनों का कुचलना।
नागरिक सेवाओं की भाँति सैनिक सेवाओं पर आघात
अग्निपथ योजना द्वारा सैनिक सेवाओं के साथ खिलवाड़ करनेवाली भाजपा की पिछली सरकार द्वारा ही नागरिक सेवाओ में नयी-पेंशन योजना लाकर कर्मचारी वर्ग के अधिकारों का हनन किया गया था। अब भाजपा की वर्तमान केंद्र सरकार सैनिक वर्ग के अधिकारों के साथ भी खिलवाड़ कर रही है। कैसे?
1. इस योजना के अंतर्गत भर्ती होनेवाले अग्निवीरों को चार साल की सेवा अवधि पूरी होने के बाद कोई नौकरी या सामाजिक सुरक्षा प्रदान नहीं की जाएगी। केवल इतना कहा गया है कि ‘अग्निवीरो’ को अर्ध-सैनिक बलों और अन्य विभागों की भर्ती में ‘प्राथमिकता’ दी जाएगी। भर्ती और रोजगार की हालत देखकर यह मजाक ही प्रतीत होता है। आश्चर्य है कि प्रावधान अनुसार अग्निवीरों का चार साल का सेवाकाल पूरा होने के बाद, उनमें से अधिकतम 25 फीसद को ही नियमित भर्ती में शामिल किया जाएगा। दुखद है कि इस प्रकार से 21 वर्ष का युवक सेना में नियमित भर्ती के अधिकार से वंचित रह जाएगा, जबकि अधिकतर युवा इसी आयु में भर्ती होते हैं।
2. इस योजना के अंतर्गत भर्ती होनेवाले अग्निवीरों के शहीद या घायल होने की स्थिति में उनको या उनके आश्रितों को एक निश्चित रकम और शेष सेवाकाल (जो अधिकतम चार वर्ष है) के वेतन के अतिरिक्त कोई आर्थिक लाभ नहीं मिलेगा। देश के लिए जान देनेवाले सैनिकों को मिलनेवाले सम्मान क्या अग्निवीरों को मिलेंगे, इस सवाल पर भी कोई बात नहीं कही गयी है।
3. सबसे दुखद और आश्चर्य की बात, कि भर्ती होनेवाले अग्निवीरों को चार साल का सेवाकाल पूरा होने के बाद कोई पेंशन नहीं मिलेगी। यह तकरीबन उसी योजना की श्रृंखला है जो अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने नागरिक सेवाओ में लागू की थी।
इस योजना के प्रावधानों को समझने के बाद पता चलता है मोदी सरकार सैनिक भर्ती अभ्यर्थियों के अधिकारों का हनन कर रही है। भारतीय सेना में सैनिक स्तर पर अधिकतर गरीब और ग्रामीण घरों के युवा भर्ती होते हैं तथा उनके लिए सैनिक भर्ती, आर्थिक सुरक्षा का सबसे उपयुक्त उपलब्ध रोजगार होता है। परंतु अग्निपथ योजना ग्रामीण युवाओं से उनके रोजगार के सपने और अवसर छीन रही है। वैसे यह मोदी सरकार की आदत है कि जिस वर्ग के नाम का ढिंढोरा पीट वह राजनीतिक रोटी सेंकती है, उसको अवश्य निशाना बनाती है, पहले युवा, फिर किसान और अब सैनिक/फौजी।
सैनिक सेवा लाभों को किस प्रकार बचाया जाए?
युवाओं के आक्रोश के साथ ही एक सवाल सबके मन में उठ रहा है- देश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों का समाधान क्या है? क्या तीन कृषि बिलों की पूर्ण वापसी की तरह ‘अग्निपथ योजना’ को वापस लेना एकमात्र समाधान होगा? इन सवालों के जवाब इस बात पर निर्भर करते हैं कि केंद्र सरकार किस समय प्रतिक्रिया देती है। अगर केंद्र सरकार द्वारा आनेवाले दिनों में कुछ सार्थक कदम नहीं उठाये गये तो समाधान खोजना मुश्किल हो जाएगा, परंतु क्या ‘अग्निपथ योजना’ मे ही कुछ सुधार की सम्भावना है?
मेरा निजी मत है कि इस योजना में कुछ बदलाव करके युवाओं को शांत किया जा सकता है। केंद्र सरकार अग्निपथ योजना में दो मुख्य बदलाव करके युवाओं को संतुष्ट कर सकती है-
1. युवाओं के रोष का मुख्य कारण चार वर्ष का सेवाकाल है। योजना के अनुसार 4 वर्ष का सेवाकाल पूरा होने के बाद सेना में नियमित भर्ती करने के लिए 25 फीसद की सीमा लगाई गयी है अर्थात् केवल 25 फीसद अग्निवीरों को ही सेना में नियमित भर्ती किया जाएगा। अगर सरकार इस 25 प्रतिशत की सीमा को समाप्त कर दे तो युवाओं का रोष कम हो सकता है, क्योंकि इससे सेना में उनके भर्ती होने की सम्भावना बरकरार रहेगी। इसी के साथ योजना में भाग लेनेवाले युवाओं को नियमित सेना भर्ती में प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
2. अगली समस्या अग्निवीर के शहीद या चोटिल होने से जुड़ी है। शहीद या चोटिल होने की स्थिति में केवल एकमुश्त आर्थिक मुआवजा देने का प्रावधान किया गया है। जबकि देश की सुरक्षा के लिए बलिदान देनेवालों तथा उनके आश्रितों को नियमित रूप से आर्थिक एवं अन्य सुरक्षा देना जरूरी है। केंद्र सरकार योजना में बदलाव कर शहीद या चोटिल होनेवाले अग्निवीरों और उनके परिवारों को नियमित सैनिकों की भाँति सम्मान, आर्थिक लाभ और सुरक्षा का प्रावधान कर युवाओं को शांत कर सकती है।
सरकार इन बदलावों के द्वारा अभ्यार्थियों के मध्य उपजे रोष को शांत कर सकती है, परंतु यह सब सरकार की मंशा पर निर्भर करता है। क्या वह सच में इस योजना द्वारा देशसेवा और राष्ट्र सुरक्षा के उद्देश्य से काम कर रही है? या इसके द्वारा केवल अपनी किसी कुंठित राजनीति को अंजाम देना चाहती है?
सरकारों द्वारा पारित योजनाओं को जब जनता या प्रभावित वर्ग द्वारा मंजूर न किया जाए तो सत्तासीनों की नैतिक जिम्मेदारी होती है कि संवाद स्थापित कर विरोध प्रदर्शन तथा आंदोलन को शांत किया जाए। परंतु मोदी सरकार के समय में हुए आंदोलन बताते हैं कि केंद्र सरकार संवाद के स्थान पर अपनी बात मनवाने पर ज्यादा ऊर्जा लगाती है। इस अनुभव के आधार पर क्या यह माना जाए कि केंद्र सरकार अपना रुख नही बदलेगी?
नहीं, सरकार को विरोध प्रदर्शनों के आगे झुकना पड़ेगा, परंतु ‘अग्निपथ योजना हटाओ’ आंदोलन को शांतिपूर्ण रुख अपनाना होगा। उग्र और हिंसक आंदोलन ज्यादा लम्बा नहीं चल सकता, जिसकी इस आंदोलन को जरूरत है। इसके अतिरिक्त, हिंसा से सरकार को दमन और बदनाम करने का मौका मिलेगा।