— श्वेता सैनी, सिराज हुसैन, पुलकित खत्री —
(कल प्रकाशित लेख का बाकी हिस्सा)
एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो) की 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक (यह आखिरी रिपोर्ट थी जिसमें आत्महत्या की वजहों का ब्योरा दिया गया था), लगभग 51 फीसद कृषक आत्महत्या का कारण था कर्ज, मुख्य रूप से संस्थागत स्रोतों से लिया गया कर्ज। इसके बाद अन्य वजहों से होनेवाली खुदकुशी थी- बीमारी के कारण (20 फीसद), पारिवारिक समस्याओं के चलते (9 फीसद), खेती से संबंधित परेशानियाँ जैसे फसल की बरबादी (7 फीसद), संपत्ति संबंधी झगड़े (6 फीसद), गरीबी (3 फीसद), शराबखोरी (2 फीसद), और अन्य कारण जैसे दांपत्य तथा सामाजिक प्रतिष्ठा के मामले (2 फीसद)।
जो बात थोड़ी उलझन में डालती है वह यह कि एक ऐसे देश में जहाँ 70 फीसद किसान परिवारों की पहुँच संस्थागत ऋण तक नहीं है (नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट के 2015-16 के सर्वे के मुताबिक सिर्फ 30.3 फीसद किसान परिवार संस्थागत स्रोतों से ऋण लेते हैं), 51 फीसद कृषक आत्महत्याओं का कारण संस्थागत ऋण है। प्रथम दृष्टया यह काफी अधिक मालूम पड़ता है।
पंजाब के किसानों का मानना है कि कर्ज के बजाय फसल का किसी वजह से चौपट हो जाना, खेती की बढ़ती जा रही लागत, आमदनी की अनिश्चितता, घटती पैदावार, बाजार से जुड़ी दिक्कतें, फसल बीमा न होना, फसल बरबाद होने पर कोई मुआवजा न मिलना और इनफ्रास्ट्रक्चर का अभाव उनके लिए संकट पैदा करनेवाले कहीं ज्यादा प्रमुख कारण हैं।
समग्र तस्वीर
पंजाब में खेती महँगी है, भुगतान की जानेवाली लागत और एक विकल्प चुन लेने के बाद अन्य विकल्प न होने से। यह स्थिति अधिक पैदावार के बाद भी बनी रहती है।
पंजाब के धान और गेहूँ का उदाहरण लें जिनकी पैदावार देश में सबसे ज्यादा पंजाब में है, धान की उत्पादकता प्रति हेक्टेयर 4 टन, और गेहूँ की प्रति हेक्टेयर 5 टन। लेकिन हाल के बरसों में इसमें अवरोध आ गया है। जहाँ रासायनिक खादों और जहरीले कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण मिट्टी और पानी में दिनोदिन बिगाड़ आ रहा है वहीं मजदूरों की कमी, सिंचाई के लिए डीजल से चलनेवाले ट्यूबवेल और महंगे फर्टिलाइजरों तथा कीटनाशकों के चलते खेती की लागत बढ़ती गयी है।
खेती की बढ़ती लागत ने पंजाब में कर्ज लेने की जरूरत बढ़ा दी है। वहां के किसान ज्यादा कर्ज ले सकते हैं क्योंकि उनकी जमीन की कीमत ज्यादा है। यह भी उनके द्वारा अधिक कर्ज लिये जाने का एक कारण है- बैंक अकसर जमीन गिरवी रखवा लेते हैं और कर्ज के तौर पर बड़ी राशि की पेशकश करते हैं।
पंजाब में कर्ज के लिए आढ़तिया (कमीशन एजेंट) जैसे गैर-संस्थागत स्रोतों पर किसानों की निर्भरता बहुत ज्यादा है। पंजाब में आढ़तिया को किसान का मित्र, सलाहकार और पथप्रदर्शक माना जाता है। वह उपज को बेचने में मदद करता है और किसानों को खर्च के लिए बिना किसी जमानत या गारंटी के कर्ज देने को तैयार रहता है। गेहूँ और धान की फसल एक ही साथ तैयार होकर जब एक ही समय इतनी भारी मात्रा में पैदावार बाजार में आती है तो आढ़तिया सरकारी एजेंसियों के हाथों उनकी खरीद करवाने में मदद करता है। इस तरह वे इस स्थिति में होते हैं कि अपने दिये गये कर्जों पर ऊंची ब्याज दर वसूल कर पाएँ। उनके पास किसानों को केमिकल्स और फर्टिलाइजर्स बेचने का लाइसेंस भी होता है।
इस तरह किसान, आढ़तियों से जुड़े होते हैं और यह रिश्ता बरस-दर-बरस मजबूत होता गया है। धान और गेहूँ उगानेवाले किसानों के मामले में यह रिश्ता काफी पुख्ता है। लेकिन कीनू जैसे फल और आलू उगानेवाले किसानों के मामले में, जहाँ उपज अमूमन एपीएमसी मंडियों के बाहर बेची जाती है, यह रिश्ता उतना प्रगाढ़ नहीं है।
इसके अलावा, पंजाब में बहुत सारे सामाजिक दबाव हैं जिनके चलते किसान न सिर्फ विवाह जैसे सामाजिक अवसरों पर काफी खर्च करना पड़ता है बल्कि खर्च का यह दबाव तब भी रहता है जब परिवार का कोई सदस्य इस दुनिया से विदा हो जाता है। ऐसे अवसरों पर होनेवाले अनुष्ठान, अन्य राज्यों की तुलना में, ज्यादा खर्चीले होते हैं। इसलिए यह हैरानी की बात नहीं है कि पंजाब में कर्ज की राशि को, जो कि कृषि के लिए मंजूर की गयी है उपभोग के मदों के लिए नहीं, गैर-कृषि मदों में खर्च किये जाने का अनुपात अन्य राज्यों से ज्यादा है।
आगे का रास्ता
पंजाब के किसान अपनी हिम्मत और उद्यमशीलता के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने न सिर्फ देश को खिलाया है और खाद्य सुरक्षा मुहैया करायी है बल्कि इस सिलसिले को बरसों-बरस बनाए रखा है। लगभग सौ फीसद सिंचाई-सुविधा वाला राज्य होने के नाते, जब दूसरे राज्यों में सूखे के कारण पैदावार लड़खड़ा जाती है, पंजाब चावल और गेहूँ की अपनी आपूर्ति के कारण अच्छी स्थिति में रहा है।
लेकिन कई सालों से अनुसंधानकर्ता, अकादमिक जगत के विशेषज्ञ और नीति निर्माता जोर देकर यह कहते रहे हैं कि पंजाब की खेती के साथ सब कुछ ठीक नहीं है। अब जब खुदकुशी की घटनाएँ बढ़ रही हैं, तो किसानों ने भी खतरे की सीटी बजाना शुरू कर दिया है। अगर पंजाब की खेती के साथ सब कुछ ठीक नहीं है तो तुरंत कुछ किये जाने की जरूरत है, और हम यहां ऐसे कुछ कदम सुझा रहे हैं।
फसल बीमा या किसानों के लिए मुआवजा
बढ़ते तापमान और मौसम की अनिश्चितता बढ़ने के साथ ही, दूसरे राज्यों की तरह पंजाब में भी, कृषि में उतार-चढ़ाव की आशंका बढ़ गयी है। पंजाब केंद्र सरकार की फसल बीमा योजना में शामिल नहीं हुआ क्योंकि उसमें क्षतिपूर्ति पाने के लिए क्षति का स्तर बहुत ज्यादा है, 90 फीसद। जबकि पंजाब में फसल के नुकसान का स्तर अमूमन 10 फीसद से कम होता है। ऐसी स्थिति में क्षति की बाबत राज्य का कोई दावा मंजूर नहीं हो पाएगा। आपदा की सूरत में, राज्य अपने बजट से किसानों को मुआवजा देता आया है। खरीफ 2021 के लिए पंजाब सरकार ने कपास उगानेवाले किसानों के लिए, जिन्हें पिंक बुलवार्म कीटों के कारण पैदावार में नुकसान हुआ था, मुआवजे के तौर पर 101 करोड़ रु. दिये। रबी 2021-22 में गेहूँ की फसल को हुए नुकसान के लिए मुआवजे की घोषणा होना अभी बाकी है।
संकट के कारणों की निशानदेही
जलवायु परिवर्तन की नयी चुनौती और कोई फसल बीमा न होने के मद्देनजर पंजाब सरकार को किसानों की दुर्दशा के कारणों का तेजी से पता लगाना चाहिए। राज्य स्तर पर किसानों की परेशानियों का एक गतिशील इंडेक्स बनाकर सरकार पैदावार की प्रगति पर नजर रखने के साथ ही किसानों के लिए कल्याण के लिए उठाये गये कदमों का मूल्यांकन भी करती रह सकती है, कि किसानों को समय से मदद मिल पायी या नहीं। सरकार यह जायजा भी लेती रह सकती है कि कहीं फसल को किसी हद तक नुकसान तो नहीं पहुंचा है और किसानों को एहतियाती कदम उठाने की सलाह भी दे सकती है। आंकड़ों और विश्लेषण की मौजूदा व्यवस्था के बल पर ऐसा त्वरित तंत्र बनाना संभव है।
विविधीकरण
कई विशेषज्ञों ने अपनी रिपोर्टों में गेहूँ-धान के चक्र से बाहर आने की जरूरत जतायी है। पंजाब के किसानों को नए बाजारों और नयी फसलों की ओर मुड़ना होगा और राज्य सरकार की खरीद पर अपनी निर्भरता घटानी होगी। पंजाब में हरित क्रांति की पहल केंद्र सरकार ने की थी ताकि देश के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। उसी तरह की पहल की अब फिर जरूरत है ताकि पंजाब देश के लिए कृषि उपज देता रह सके। कुछ कदम उठाए भी गये हैं। मसलन, पंजाब सरकार ने 2021 में टिश्यू आधारित सीड पोटैटो एक्ट-2020 पास किया ताकि आलू बीज के प्रमाणीकरण को अनिवार्य बनाया जा सके। आज पंजाब देश में आलू बीज की राजधानी बन गया है।
कर्ज की प्रगतिशील व्यवस्था बनाएँ
संस्थागत ऋण तक पहुँच बढ़ाना पंजाब के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। एक नवाचारी ऋण भुगतान व्यवस्था बनाने की जरूरत है ताकि किसानों को गैर-कृषि मदों के लिए भी पर्याप्त मात्रा में कर्ज उपलब्ध हो। किसानों को फसली कर्ज को गैर-उत्पादक कामो में लगाने से हतोत्साहित करना होगा।
तीन कृषि कानूनों (जिन्हें 2020 में लागू किया गया था) को निरस्त करने की घोषणा करते समय केंद्र सरकार ने एक कमेटी बनाने का वादा किया था जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के प्रतिनिधि, किसान और विशेषज्ञ होंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि कमेटी के विचार-विमर्श में पंजाब को वह महत्त्व मिलेगा जिसका वह हकदार है।
(theIndiaforum.in से साभार)
अनुवाद : राजेन्द्र राजन