राष्ट्रीय चिह्न का विकृतिकरण एक दंडनीय अपराध भी है

0

अशोक स्तंभ का चार शेरों वाला स्तंभ भारत के राष्ट्रीय चिह्न के रूप में विख्यात है। पर जिस राष्ट्रीय चिह्न के नाम पर चार शेरो वाले प्रतीक का प्रधानमंत्री जी ने उदघाटन किया है, उसके शेरों के भाव और अशोक स्तंभ सारनाथ के शेरों के भाव से अलग दिख रहे हैं। शेरों के शरीर भी मूल स्तंभ के शेरों से अलग और बेडौल हैं, साथ ही उनके मुंह अधिक खुले हैं। मूल स्तंभ के शेरों में जो गरिमा, भव्यता और सिंहत्व, अकारण ही लोगों की नजर खींच लेता है वह इस नए बने प्रतीक में नहीं है। या तो इस प्रतीक को पत्थरों या जैसा कि कहा जा रहा है यह कांस्य में है तो इसको गढ़ने वाले मूर्तिकार, अशोक स्तंभ सारनाथ के चार शेरों के भाव को समझ नहीं पाए या वे उन्हें इस प्रतिमा में उतार नहीं पाए।

मूर्तिकला केवल पत्थरों, कांस्य, या किसी भी धातु को तराशना या उसे गढ़ना ही नहीं होती है बल्कि वह, प्रतिमा में, एक प्रकार से जान डाल देना भी होता है। सारनाथ म्यूजियम में जो मित्र, घूमने गए हैं, वे यह भलीभांति जानते हैं कि, म्यूजियम के मुख्य हॉल के बीच में रखा गया चार शेरो वाला भव्य स्तंभ, न केवल अपनी विलक्षण पॉलिश के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि भव्यता, राजत्व, गरिमा और मूर्तिकला का एक अनुपम उदाहरण भी है। साथ ही, अब तो, वह देश का मुख्य प्रतीक भी है। राष्ट्रीय चिह्न को जस का तस ही उतारा जाना चाहिए, बिलकुल उसी तरह जैसा कि संविधान ने उसे मान्यता दी है। राष्ट्रीय चिह्न के स्वरूप, हावभाव और उसके अनुपात में कोई भी परिवर्तन, उसका विकृतिकरण करना हुआ, और, राष्ट्रीय चिह्न का विकृतिकरण, एक दंडनीय अपराध भी है।

अंत में मित्र Soumitra Roy की टिप्पणी भी जोड़ दे रहा हूं।
“भारत के राष्ट्रीय प्रतीक का डिज़ाइन मेरे एमपी के बैतूल निवासी दीनानाथ भार्गव ने शांतिनिकेतन में नंदलाल बोस के सान्निध्य में बनाया। वे एक माह तक रोज़ 100 किमी दूर चिड़ियाघर जाकर शेरों के हाव-भाव देखते थे। डिज़ाइन नंदलाल बोस ने फाइनल किया था। 2014 के बाद से लगातार गलतियां हो रही हैं, क्योंकि मूर्खों को चारों शेरों में धम्म नज़र नहीं आएगा। बहरहाल, आज जिस कॉस्मिक एनर्जी से छेड़छाड़ हुई है, उसका कमाल जल्द दिखेगा।”

भारत के राष्ट्रीय चिह्न में चार शेर हैं जिसमे एक बराबर से छिपा हुआ रहता। यह, शक्ति, साहस और आत्मविश्वास के प्रतीक हैं और एक गोलाकार स्तंभ पर टिके हुये है। इस गोलाकार स्तंभ पर चार छोटे जानवर हैं, जिन्हें चारों दिशाओं का संरक्षक माना जाता है। उत्तर दिशा का सिंह, पूर्व दिशा का हाथी, दक्षिण दिशा का घोड़ा और पश्चिम दिशा का बैल माने गए हैं। इन पशुओं में से प्रत्येक को धर्म चक्र (कानून के शाश्वत पहियों) के बीच के पहियों द्वारा अलग किया गया है। बोध वाक्य ‘सत्यमेव जयते’, जो, मुंडक उपनिषद के सूक्त 3.1.6 से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘सत्य की ही जीत होती है’, देवनागरी लिपि में प्रतीक के नीचे अंकित है। यह बोध वाक्य, राष्ट्रीय चिह्न का अंग है।

– विजय शंकर सिंह

Leave a Comment