संविधान सभा में हमारे सांसद हरि विष्णु कामथ साहब

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हरि विष्णु कामथ (1907 - 1982)


— कनक तिवारी —

संविधान बनाने में लगभग तीन सौ चुनिंदा सदस्यों में स्वतंत्रता संग्राम सैनिक, विधि विशेषज्ञ, नौकरशाह और राजेरजवाड़ों के प्रतिनिधि रहे हैं। लगभग तीन वर्षों चले वादविवाद बारह खंडों में मोटी जिल्दों में हैं। इन्हें कानून और राजनीतिविज्ञान के पाठ्यक्रमों में अमूमन शामिल नहीं किया जाता, जबकि किया जाना चाहिए। वे जनवादी आग्रहों के कुछ सूरमा हुए हैं। उनके नाम इतिहास भुला रहा है। मसलन प्रो. के.टी. शाह, काजी करीमुद्दीन, मौलाना हसरत मोहानी, नजीरुद्दीन अहमद, ब्रजेश्वर प्रसाद, विशंभरदयाल त्रिपाठी, दामोदर स्वरूप सेठ, आर. के. सिधवा, ठाकुर दास भार्गव, शिब्बनलाल सक्सेना और हरिविष्णु कामथ की ग्यारह सदस्यीय टीम इतिहास से अपनी पहचान, जांच, जिरह और मूल्यांकन मांगती है।

★ हरफनमौला हरि विष्णु कामथ मध्यप्रदेशीय उपलब्धि थे। संविधान के अनुच्छेद 1 को लेकर उनकी दुर्लभ प्रतिभा ने कहा कि देश का नाम ‘भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा‘ और अंगरेजी में ‘इंडिया दैट इज भारत होगा‘ लिखना घातक होगा। कामथ का दुर्लभ सुझाव था कहें ‘भारत अथवा अंगरेजी भाषा में इंडिया राज्यों का संघ होगा। यूं भी कह सकते हैं ‘हिन्द अथवा अंगरेजी में इंडिया राज्यों का संघ होगा।‘ पता नहीं सरकारी पक्ष के सदस्यों की मदद लेकर डाॅ. अंबेडकर प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में खारिज क्यों कर देते थे। उनके साथ नेहरू, सरदार पटेल, अलादि कृष्णास्वामी अय्यर, गोपाल स्वामी आयंगर, टी.टी. कृष्णमाचारी, के.एम. मुंशी, गोविन्द वल्लभ पंत, अनंतशयनम आयंगर, बालकृष्ण शर्मा नवीन जैसे लोग होते थे। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली गई है कि संविधान से इंडिया अंगरेजी शब्द हटा दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने उसे सरकार के पाले में डाल दिया। कामथ की बात मानी जाती तो यह कुछ नहीं होता।

★ प्राण और अस्तित्व को लेकर कामथ ने दो टूक कहा कि व्यक्ति की अप्रतिबंधित आजादी के पक्ष में मैं नहीं हूं लेकिन राज्य की सुरक्षा और व्यक्ति की आजादी के बीच तालमेल जरूरी है। उन्होंने तीखा सवाल पूछा यदि संसद ऐसा प्रावधान बना दे कि व्यक्ति को जीवन भर लामबन्द रखा जाना है, तब क्या होगा? चेतावनी दी किसी ने सोचा है कहीं ऐसे लोगों के हाथ शासन आ गया जो हमारे आदर्शों और लोकतंत्र संबंधी विचारधारा के पूरी तौर पर खिलाफ होने से संविधान का उपयोग करके नागरिक स्वतंत्रता को बुरी तरह कुचल देंगे तब क्या होगा। आज कामथ की चेतावनी जनता के सिर चढ़कर केन्द्र शासन की ओर से खतरे के रूप में बोल रही है।

★ गांधी की समझ के खिलाफ पंचायती राज व्यवस्था को खारिज कर व्यक्ति केन्द्रित हुकूमतशाही का गठन कर दिया गया। गांधी समर्थक कामथ ने इस मुद्दे को लेकर डा. अंबेडकर की सबसे कड़ी आलोचना की। यहां तक कहा अंबेडकर का अभिजात्य शहरी भद्र पुरुष की नकचढ़ी वृत्ति का प्रतीक है। ऐसे नजरिए से रचे गए संविधान के कारण देश का भगवान मालिक है। हरिविष्णु कामथ ने स्त्री और पुरुष की आजादी को लेकर कहा था कि मानिए कि बुद्धिमत्ता, आयु और लिंग पर निर्भर नहीं होती। आश्चर्यजनक हुआ कई सदस्यों ने उनके स्त्री समर्थक वक्तव्य से सहमति व्यक्त नहीं की। कामथ ने चुनौती देते कहा भारत में गार्गी, मैत्रेयी और उभयभारतीय जैसी दार्शनिक नारियों की परंपरा है। व्यक्ति केवल इसलिए बुद्धिमान नहीं होता कि उसके बाल सफेद हो गए हैं।

★ कामथ ने आरोप लगाया संविधान लिखने की उपसमिति के सभी सदस्यों के कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी को छोड़कर आजादी के सिपाही नहीं रहने के कारण उनकी आत्मा में देश के लिए वह गरमी ही नहीं रही, जिससे गांधी ने पूरे देश को अभिभूत किया है। कामथ ने अम्बेडकर से असहमति का इजहार कर कहा, ‘‘मैं डाक्टर अम्बेडकर का विरोध करता हूं। उन्होंने गांवों का उल्लेख ‘‘स्थानीयता की गंदी नालियां तथा अज्ञानता, विचार संकीर्णता और साम्प्रदायिकता की कन्दराओं‘‘ के रूप में किया है और ग्रामीण जनता के लिए हमारे करुण विश्वास का श्रेय किसी मेटकाॅफ नाम के व्यक्ति को दिया है। मैं यह कहूंगा कि यह श्रेय मेटकाॅफ को नहीं है, वरन् उससे कहीं ज्यादा उस महान व्यक्ति को है जिसने अभी हमें हाल ही में स्वतंत्र कराया है। गांवों के लिये जो प्रेम हमारे हृदय में लहरा रहा है, वह तो हमारे पथप्रदर्शक तथा राष्ट्रपिता के कारण पैदा हुआ था। उन्हीं के कारण ग्राम जनतन्त्र में तथा अपनी देहाती जनता में हमारा विश्वास बढ़ा और हमने अपने सम्पूर्ण हृदय से उसका पोषण किया। यह महात्मा गांधी के कारण है। यह आपके कारण है और यह सरदार पटेल, पंडित नेहरू और नेताजी बोस के कारण है कि हम अपने देहाती भाइयों को प्यार करने लगे हैं।‘‘

★ संविधान सभा ने 5 नवंबर 1948 को ही कामथ ने उन बुद्धिजीवियों की खिल्ली उड़ाई जो आजाद भारत की रचनात्मकता के लिए विदेशी मूल्यों के प्रति अपनी नतमस्तकता का प्रचार करते रहे। उन्होंने भारतीय प्रतिनिधि श्रीमती विजय लक्ष्मी पण्डित के कथन का प्रतिवाद किया जब श्रीमती पण्डित ने संयुक्त राष्ट्र संघ में गौरवान्वित होकर कहा था कि भारत स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्शों को फ्रांस से ग्रहण कर अहसानमन्द है। कामथ ने कहा अम्बेडकर आभिजात्य कुल के शहरी भद्रपुरुषों की नकचढ़ी समझ के प्रतीक हैं। इस दृष्टिकोण से संविधान की रचना की गई तो देश का भगवान मालिक है।

★ भारत राष्ट्रमंडल का सदस्य बना। तब तेजतर्रार, सजग, वाचाल और समाजवादी हरिविष्णु कामथ ने कहा एक स्वतंत्र गणराज्य का राष्ट्रमंडल के साथ, जिसका प्रमुख सम्राट है, राजनीतिक सिद्धांत में नई घटना है। उन्होंने नेहरू के निर्णय का खुलकर विरोध किया। हरफनमौला कामथ ने यह भी कहा था भारत के राष्ट्रपति का नामकरण हिन्दी में ही राष्ट्रपति ही होना चाहिए। यह भी हरिविष्णु कामथ ने कहा था कि हर हालत में कार्यपालिका और न्यायपालिका को बिल्कुल अलग अलग रखा जाए। न्यायपालिका पर कार्यपालिका का किसी तरह प्रतिबंध होगा तो खतरा तो होगा। कामथ ने यह भी दमखम के साथ कहा था कि राज्य धर्म को नष्ट करने या उसके हेठी करने के लिए नहीं है। अंत में यही विचार हुआ कि राज्य प्रत्येक धर्म के प्रति समान आदर रखेगा।

★ हरिविष्णु कामथ ने नागरिक आजादी को लेकर सनसनी भी पैदा कर दी। वे दस्तावेजों को विस्तार और ध्यान से पढ़ते रहे हैं। बदले कभी कभी ऐसी अटपटी लाक्षणिकताओं को भी अपने भाषण में जिरह में उल्लेखित कर देते थे ऐसा ही वाकया हुआ जब कामथ ने हर नागरिक को हथियार रखने के अधिकार दिए जाने की यक ब यक पैरवी कर दी। उन्होंने याद दिलाया कि खुद कांग्रेस ने कराची अधिवेशन में नागरिकों को हथियार रखने की बात मंजूर की है। साथ ही कांग्रेस ने हथियार अधिनियम के खिलाफ महीनों तक सत्याग्रह भी किया है। गांधी ने खुद कहा है कि बचाव और मुकाबला अहिंसक तरीके से तो करो लेकिन संभव नहीं हो, तो हिंसात्मक तरीके से अपनी रक्षा तो करनी है, क्योंकि मैं कायरता से नफरत करता हूं। कामथ ने कहा सरदार पटेल ने भी अपने देशव्यापी दौरों में जनआह्वान किया है कि लोग कायरों की तरह पीठ नहीं दिखाएं। जरूरी हो तो हत्यारों, गुंडों, अपराधियों का हर हाल में हर तरीके से और हर कीमत पर मुकाबला करें।

★ कामथ सहित कई सदस्यों ने जो संभावनाएं और आशंकाएं जाहिर की थीं। मौजूदा भारत में वे सब घटित हो रही हैं। उनकी बात मान ली गई होती तो देश को कई अनावश्यक मुसीबतों से बचाया जा सकता था। ऐसे उपेक्षित किए जा रहे संविधान नायकों के संबंध में मुनासिब पुस्तकें भी लिखी जाएं।

(फेसबुक से)

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