16 जुलाई। गांधीवादी समाजसेवी हिमांशु कुमार पर पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर देशभर में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। तमाम जनसंगठनों के प्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस फैसले को घोर अनुचित और एक चिंताजनक रुझान करार दिया है। सवाल उठ रहा है कि अदालत से न्याय मांगना या न्याय के लिए निर्देश देने की गुजारिश करना कब से गुनाह हो गया?
प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण ने अदालत के फैसले पर तंज कसते हुए ट्वीट किया है : “गरीबों के लिए आवाज उठानेवाले लोगों और सरकार के खिलाफ आवाज उठानेवाले लोगों को छोड़िएगा नहीं माय लॉर्ड, यह समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा है।”
अंग्रेजी के एक बड़े अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने ‘अनजस्टिस’ शीर्षक से एक संपादकीय लिखकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर चिंता और निराशा जताई है, साथ ही कहा है कि यह फैसला सर्वोच्च न्यायालय के अपने ही पिछले बहुत सारे फैसलों से उलट है।
हिमांशु कुमार पर जुर्माना लगाने के फैसले की आलोचना करते हुए बहुत से लोगों ने ट्वीट किए हैं, साथ ही दबे-कुचले लोगों के प्रति हिमांशु कुमार की संवेदनशीलता, उनकी समाज सेवा और अहिंसा में उनकी निष्ठा का हवाला भी दिया है। इस सिलसिले में वरिष्ठ समाजवादी शिवानंद तिवारी की टिप्पणी पर गौर फरमाएं –
“जेल से भेजे गये शिकायती पोस्टकार्ड को जनहित याचिका के रूप में सुनवाई करने की मान्यता देनेवाले उच्चतम न्यायालय ने आज अपने इतिहास को ही पलट दिया। 2009 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में माओवादियों के विरुद्ध पुलिस कार्रवाई में सत्रह आदिवासियों की मौत की सीबीआई जाँच की माँग करनेवाली याचिका को उच्चतम न्यायालय ने न सिर्फ खारिज कर दिया बल्कि याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार पर पाँच लाख रुपए का जुर्माना लगा दिया। हिमांशु जी उस इलाके में एक एनजीओ चलाते हैं।
उच्चतम न्यायालय द्वारा देश के सबसे उपेक्षित और वंचित समाज के लिए इंसाफ माँगनेवाले पर पाँच लाख रुपए का जुर्माना लगाना गंभीर चिंता का विषय है। अपने इस निर्णय से उच्चतम न्यायालय ने गरीबों पर होनेवाले जुल्म के विरुद्ध इंसाफ माँगनेवालों के लिए अपना दरवाजा बंद कर देने की घोषणा कर दी है। यह तो इन तबकों के लिए। हिमांशु कुमार ने उच्चतम न्यायालय के इस फैसले को मानने से इनकार किया है। उन्होंने कहा है कि वे जेल जाने के लिए तैयार हैं लेकिन जुर्माने की राशि नहीं देंगे। हिमांशु कुमार के इस साहसिक फैसले का हम समर्थन और स्वागत करते हैं। उच्चतम न्यायालय से भी नम्रतापूर्वक हम अनुरोध करते हैं कि अपने फैसले पर वह पुनर्विचार करे।”
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