गोम्पाड़ जनसंहार की निष्पक्ष जांच की माँग को लेकर हिमांशु कुमार के समर्थन में उतरे छात्र संगठन

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17 जुलाई। साल 2009 में छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के गोम्पाड़ में 16 आदिवासियों के मारे जाने की निष्पक्ष जांच की माँग करते हुए शनिवार को जन्तर-मन्तर पर संयुक्त प्रदर्शन आयोजित किया गया। प्रदर्शन में सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार के अलावा दिशा छात्र संगठन, विश्वविद्यालय छात्र फडरेशन (VCF) और क्रान्तिकारी युवा संगठन ने प्रदर्शन में भागीदारी की।

प्रदर्शकारियों की माँग है, कि केंद्र सरकार के प्रभाव में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए इस फैसले को तत्काल रद्द किया जाए और गोम्पाड़ में हुए आदिवासियों की हत्या की जांच निष्पक्ष तरीके से की जाए। इसके अलावा हिमांशु कुमार समेत तमाम जनवादी व नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं पर थोपे गये सभी मामलों को तुरन्त प्रभाव से वापस लिया जाए और सभी को दोषमुक्त करार दिया जाए।

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नंदिता नारायण व सरोज गिरी ने भी प्रदर्शन में शामिल हो इस मुद्दे पर अपनी बात रखी। ज्ञात हो, कि सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने वर्ष 2009 में दंतेवाड़ा में अलग-अलग जगह मारे गये 16 आदिवासियों की हत्या के मामले में छत्तीसगढ़ पुलिस और केन्द्रीय सुरक्षा बलों के खिलाफ सीबीआई जांच की माँग की थी।

इसके लिए उन्होंने उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की थी। अब 13 साल बाद इन 16 आदिवासियों की हत्या की जाँच के मुद्दे पर दायर याचिका को उच्चतम न्यायालय ने रद्द कर दिया है। यही नहीं, उच्चतम न्यायालय ने हिमांशु कुमार पर पाँच लाख रुपये का जुर्माना लगा दिया है। इसके अलावा छत्तीसगढ़ सरकार को हिमांशु कुमार के खिलाफ भारतीय दण्ड संहिता की दफा 211 के तहत मामला दर्ज कर कार्रवाई करने का निर्देश भी दिया है।

16 आदिवासियों के मारे जाने के मामले में झूठा आरोप लगाने की दलील केन्द्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी। इसी साल अप्रैल में केंद्र सरकार की ओर से हिमांशु कुमार और अन्य याचिकाकर्ताओं के खिलाफ अदालत में आवेदन दिया गया और याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ही सीबीआई या एनआईए से जांच की माँग की गई थी।

इससे पहले गुजरात नरसंहार के मामले में न्याय के लिए आवाज उठाये जाने पर सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को भी गिरफ्तार किया गया है। सरकारी और गैर-सरकारी झूठों का भण्डाफोड़ करनेवाले ऑल्ट न्यूज के मोहम्मद जुबैर को भी बड़ी मुश्किल से जमानत मिली है। आज इंसाफ के लिए उठाई जानेवाली आवाजों को दबाया जा रहा है। यह हमारी न्याय व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न लगाता है और कई सवाल खड़े करता है।

(‘वर्कर्स यूनिटी’ से साभार)

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